पंजाब के राय बहादुर लालचंद की गणना देश के बड़े समाज-सुधारकों में होती है। एक बार उन्होंने जब कन्या गुरुकुल को बहुत बड़ी धनराशि दान में दी, तो वहां के प्रधानाचार्य कृतज्ञता व्यक्त करने उनके घर जा पहुंचे। काफी खटखटाने पर भी जब दरवाज़ा नहीं खुला, तो उन्होंने धक्का देकर दरवाज़ा खोल दिया। देखा कि एक बूढ़ा व्यक्ति दूसरे बूढ़े के पैर दबाकर सेवा कर रहा है। उन्होंने पैर दबाने वाले से पूछा, ‘रायबहादुर लालचंद जी कहां मिलेंगे?’ तो पैर दबाने वाले बूढ़े ने कहा, ‘कहिए, क्या बात है? मैं ही लालचंद हूं।’ आश्चर्य में डूबे प्रधानाचार्य ने पूछा कि जिनके आप पैर दबा रहे हैं, वे कौन हैं? तो उत्तर मिला कि यह मेरा सेवक है, जो 40 साल से मेरी सेवा करता आया है। आज जब यह बुखार में तप रहा है, तो क्या मुझे इसकी सेवा नहीं करनी चाहिए? प्रधानाचार्य रायबहादुर लालचंद के चरणों में गिर पड़े और बोले, ‘आज आपने सच्ची सेवा का अर्थ मुझे समझा दिया है।’
प्रस्तुति : योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’