परशुराम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। वे वर्ण से ब्राह्मण और कर्म से योद्धा थे। भगवान परशुराम धर्म और नीति की प्रतिमूर्ति, समता और न्याय के प्रतीक, शस्त्र और शास्त्र के अद्भुत समन्वय थे। एक बार एक आत्मीय ने उनके क्रोधी स्वभाव पर नाराजगी जताते हुए कहा- एक ऋषि के लिए क्रोध या हिंसा कार्य करना नीति विरुद्ध है। तुम्हें अपने स्वभाव में परिवर्तन करना चाहिए। परशुरामजी ने जवाब दिया- वही क्रोध करना वर्जित है, जो अपने स्वार्थ या अहंकार की रक्षा के लिए किया जाए। अन्याय के विरुद्ध क्रोध करना तो मानवता के हित में और धर्म-सम्मत है। अन्याय के विरुद्ध क्रोध-अक्रोध जैसे नीति-नियमों में उलझे रहने का कोई प्रयोजन नहीं। नम्रता और ज्ञान से सज्जनों पर और प्रतिरोध व दंड से दुष्टों पर विजय पाई जा सकती है। यही सनातन नीति है। प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा