एक बार गुरु नानक मुल्तान पहुंचे तो वहां पर पहले से ही अनेक धर्म प्रचारक मौजूद थे, तथा वे गुरु नानक से मन ही मन ईर्ष्या करते थे। गुरु नानक के पास एक संदेशवाहक के हाथों संकेत रूप में उन्होंने एक जल से भरा पात्र भेजा। नानक समझ गये और उन्होंने उस जल में फूल की कुछ पंखुरी तैरा दीं तथा वह पात्र उसी संदेशवाहक के हाथों वापस भेज दिया। इसे देखकर धर्म प्रचारक साफ समझ गये कि नानक बेहद विनम्र हैं। वह यही कहना चाहते हैं कि जिस तरह इस जल पात्र को फूलों की पंखुरियों से नुकसान नहीं होगा उसी तरह नानक के मुल्तान आने से किसी भी धर्म प्रचारक का कोई घाटा नहीं बल्कि शोभा ही बढ़ेगी।
प्रस्तुति : पूनम पांडे