सन् 1925 में ब्रिटेन के युवराज प्रिन्स ऑफ वेल्स भारत आए। ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि भारत की जनता युवराज का भगवान की तरह श्रद्धा-भक्ति के साथ सम्मान करे तथा जहां वे जाएं लोग उनके स्वागत में पलक-पांवड़े बिछा दें। ब्रिटिश सरकार जानती थी कि भारत की धर्मपरायण जनता अपने धर्माचार्य के आदेशों का पालन करने को तत्पर रहती है। अतः सरकार की ओर से पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ से अनुरोध किया गया कि वे राजा को विष्णु का प्रतिनिधि मानने के हिंदू धर्म के सिद्धांत के अंतर्गत अपने अनुयायियों को राजकुमार वेल्स का भगवान के प्रतिनिधि के रूप में स्वागत करने का आदेश जारी करें। शंकराचार्य जी ने पत्र पढ़ा तथा निर्भीकता से उत्तर दिया, ‘अंग्रेज विदेशी हैं, वे प्रजापालक राजा नहीं हैं। जिन्होंने हमारी मातृभूमि को छल-कपट से गुलाम बना लिया है, उन्हें विष्णु का प्रतिनिधि कैसे घोषित किया जा सकता है?’ ब्रिटिश शासन उनके उत्तर से क्रोधित हो उठा तथा शंकराचार्य जी को जेल में बंद कर उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार