नवनिर्मित कुएं की सपाट सतह पर पनिहारिन ने कोरा मटका रखने की चेष्टा की, किंतु मटका समतल जगह पर स्थिर न रह सका। कुएं की जगत का पत्थर हंसा और अभिमान से फूलकर बोला, ‘कहीं गोल आधार की वस्तु भी क्या समतल जगह पर स्थिर रह सकती है?’ घड़ा मौन था। पनिहारिन जगती की बात सुनकर मुस्कुरा दी। काफी दिनों बाद जगत के पत्थर पर स्वतः एक खड्डा बन गया था। पनिहारिन नित्य आती और उस खड्डे में अपना घड़ा रख देती। अब घड़ा अपनी जगह स्थिर रहता। फिर एक दिन घड़े ने जगत के पत्थर से कहा, ‘बंधु! एक वह दिन था जब तुम मेरी अस्थिरता देखकर मुझ पर हंस रहे थे। आज देखो मैंने निरंतर सुकोमल रगड़ से तुम्हारे कठोर हृदय में अपनी गोलाई के अनुरूप खड्डा बना लिया है।’ इस बार जगत का पत्थर मौन था। उसके पास कहने के लिए कुछ न था। पनिहारिन दोनों की बात सुनकर मुस्कुरा भर दी। प्रस्तुति : राजकिशन नैन