बाबा नागार्जुन बहुत सरल और सादगीभरा जीवन जीते थे। उनको फिजूलखर्ची बिल्कुल पसंद नहीं थी। एक बार बनारस में उनके परिचित युवा पुत्र उन्हें अपनी परेशानी बताने लगा कि ‘रुपया बचता नहीं है क्या उपाय करना चाहिए।’ नागार्जुन ने कहा, ‘कल से एक महीना मैं जो कहूं वह मान लोगे तो अगले महीने उपाय जरूर बता दूंगा।’ वह मान गया। अब महंगी गाड़ी की जगह वह रोज बस से दफ्तर आने-जाने लगा। बस में धूम्रपान नहीं कर सकता था, इसलिए सिगरेट का भी रुपया बचा। बस में अपने जैसे मगर काफी खराब आर्थिक हालात वाले लोगों को देखकर महंगे होटल मे खाना बंद कर दिया और घर पर ही ताजा खाना बनाकर खाने लगा। एक सप्ताह ही गुजर पाया था तो नागार्जुन ने उससे पूछा, ‘अगर चाहो तो कल तुमको उपाय बता दूं। मैं बस एक सप्ताह ही बनारस था और कल जा रहा हूं।’ युवक बोला, ‘मान्यवर! मुझे और कोई उपाय की आवश्यकता नहीं है। देखिये ना एक सप्ताह में ही पूरे एक हजार रुपये बच गये हैं जो जीवन आपके साथ इन सात दिनों मे जिया वह बहुत ही बढ़िया रहा। इस तरह तो मैं हमेशा धनवान रहूंगा।’ नागार्जुन मुस्कुराते हुए बोले, ‘अगर कोई इंसान नियंत्रण, त्याग एवं आडम्बर-दिखावामुक्त जीवन को प्राथमिकता देता है तो इसी आचरण में उसकी अनेक समस्याओं का समाधान निहित है।’ प्रस्तुति : पूनम पांडे