ईसप जिस जमींदार का गुलाम था, वह किसी दूसरे जमींदार से शर्त हार गया। अतः शर्त के अनुसार हारे हुए जमींदार को एक विचित्र सजा भुगतनी पड़ी। समुद्र का पूरा पानी पीने की सजा शर्त हारने वाले जमींदार को मिली। यह कैसे संभव है? ईसप ने अपने मालिक को परेशान देखकर कहा, ‘यदि आज्ञा दें, तो मैं मुक्ति का उपाय बतलाता हूं। जमींदार बोला, ‘यदि इससे वह पीछा छुड़ा दे, तो वह ईसप को मुक्त कर देगा।’ सायंकाल सभा आयोजित की गई। सभी समुद्र तट पर पहुंचे। शर्त बताई गई व ईसप के मालिक को समुद्र का पूरा पानी पीने के लिए कहा गया। तभी ईसप बोल उठा, ‘यदि आप लोग पहले समुद्र में निरंतर गिरने वाली नदियों को थोड़े समय के लिए रोक दें, तो हमारे मालिक निश्चित ही समुद्र का पानी आनन-फानन में पी जाएंगे।’ ईसप की यह चतुराई भरी बात सुनकर सभी ताकते रह गए। ईसप ने अपनी बात को नीतियुक्त बताते हुए समझाया कि मानव जीवन भी इसी प्रकार है। जब तक मन की इच्छाओं की पूर्ति होती रहती है, तब तक वह आपा-धापी में लगा रहता है। मनरूपी समुद्र में यदि वासनाओं की नदियों को न बहाने दिया जाए, तो वासनाएं स्वतः तिरोहित हो जाएंगी। ईसप न केवल मुक्त हो गए, बल्कि उनके अंदर तभी से नीति कथाकार के रूप में उनका नया अवतार हुआ।
प्रस्तुति : मुकेश ऋषि