अखिलेश आर्येन्दु
श्राद्ध-तर्पण कर्मकांड की पौराणिक परंपरा है। वैदिक और पौराणिक कर्मकांडों का मानव जीवन के साथ गहरा रिश्ता है। सोलह संस्कारों और प्रतिदिन किए जाने वाले पंचयज्ञों से जीवन को पूर्ण बनाने का विधान वेद-शास्त्रों में विस्तार से किया गया है। इन्हीं पंचयज्ञों में ब्रह्मयज्ञ (ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना), पितृयज्ञ (माता-पिता व बड़ों की सेवा), अतिथि यज्ञ (मेहमानों का सम्मान), देव यज्ञ (यज्ञ-हवन) और भूतयज्ञ (प्राणियों को जल व भोजन देना) का विधान किया गया है। शास्त्रीय विधान के अनुसार ‘श्रत्सत्यं दधाति यया क्रियया साश्रद्धा, श्रद्धया यत क्रियते तच्छाद्धम’ यानी जिस कर्म या क्रिया से सत्य का ग्रहण किया जाए, उसको श्रद्धा और श्रद्धा के साथ जो कर्म किया जाए उसे श्राद्ध कहते हैं। तर्पण के संबंध में वेद का विचार है कि ‘तृप्यन्ति तर्पयन्ति येन पितृन्तत्तर्पणम।’ यानी जिस-जिस कर्म से माता-पिता व गुरुजन सुखी या प्रसन्न हों, उसे तर्पण कहा गया है। पितृयज्ञ में पितरों (वेद में पितर जीवित माता-पिता को कहा गया है) को प्रतिदिन भोजन और दूसरी जरूरी चीजों का श्रद्धा व भक्ति के साथ देने का विधान कर्तव्य के रूप में किया गया है। पितरों के लिए श्रद्धा के साथ किए जाना वाला कर्तव्य ‘श्राद्ध’ कहा गया है और उन्हें हर तरह से संतुष्ट यानी तृप्त करना ‘तर्पण’ कहा गया है।
पौराणिक परम्परा में क्वार (अाश्विन माह) में श्राद्ध और तर्पण का विधान कर्मकांड के रूप में किए जाने का विधान है। श्राद्ध और तर्पण का वैदिक और पौराणिक विधान अलग-अलग तरह का है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में पितर का विस्तार से वर्णन किया गया है। श्लोक में कहा गया है कि अन्न देने वाला, भय से रक्षा करने वाला, विद्या देने वाला, पत्नी का पिता और जन्म देने वाला, ये पांच मनुष्य के पितर या पिता हैं। वेदों में पिता या पितर शब्द रक्षा करने, पालन करने और जन्म देने वाले के अर्थ में आया है। इसके अलावा स्व-कर्तव्य करते हुए उम्र के अनुसार निर्बल बृद्ध जन भी पितर कहे गए हैं। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है-‘योऽपक्षीयते स पितरः’ यानी जो कमजोर हों, वे पितर हैं। शास्त्र के मुताबिक दिन को देव, रात को पितर, दिन के पहले भाग में देव और उत्तर भाग को पितर कहा गया है। वेद में पितर की विस्तार से चर्चा की गई है। जिसमें पितृलोक की बात कही गई है। पितृ लोक का मतलब पितरों के विभाग और रहने की जगह है। यानी परिवार में माता-पिता जहां रहते हैं, वही पितृलोक है। यजुर्वेद में कहा गया है- स्वयं की आधारित शक्ति और ज्ञान भाग और स्वभाव ‘स्वधा’ कहा गया है। स्वधा का विस्तार करते हुए कहा गया है- जो स्वधा के अधिकारी पिता, पितामह (बाबा), प्रपितामह (परबाबा) जो जीवित हों, उन्हें श्रद्धा और भक्ति के साथ भोजन, वस्त्र आदि देकर तृप्त करना श्राद्ध और तर्पण है। गौरतलब है पितरों को भोजन, वस्त्रादि श्रद्धा और भक्ति के साथ ही देने से स्व-कर्तव्य का पालन हो पाता है।
संतान को चाहिए कि पितरों के प्रति शास्त्र सम्मत कर्तव्य करते हुए उन्हें हर तरह से सन्तुष्ट करे। वेद में इन कर्तव्यों को इस तरह समझाया गया है कि यज्ञ यानी परोपकार करना, ज्ञान हासिल कर उनकी जरूरत के मुताबिक उन्हें उनका भाग देना। माता-पिता व आचार्य का किसी भी तरह अनादर न करना और उनके साथ सम्माननीय व्यवहार करना, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना और उनके अनुभवों का लाभ लेना, राष्ट्र रक्षा में निपुण लोगों के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था करना। परिवार व समाज के सभी ज्ञानवान वृद्धों और बड़ी उम्र (आयुवृद्ध) के लोगों के लिए स्थायी जीविका और दूसरी जरूरी चीजों की व्यवस्था करना। मतलब संतान अपने बड़ों के लिए उन सभी चीजों की व्यवस्था करे जो उनके लिए जरूरी हों।
जैसे संतान का कर्तव्य पितरों को श्रद्धा व भक्ति से हर तरह से तृप्त करना है, उसी तरह संतान के प्रति पितरों का भी कर्तव्य वेद में बताया गया है। इसलिए जब तक पितर संतान के लिए और संतान पितर के लिए अपने कर्तव्य पूरा नहीं करते, तब तक श्राद्ध और तर्पण की क्रिया पूरी नहीं होती। वेद में पितरों के खास तरह के कर्तव्य गिनाए गए हैं। जिसमें संतान का पालन-पोषण करना, उनको शिक्षा-दीक्षा देना प्रथम कर्तव्य बताया गया है। अन्य कर्तव्यों में विद्या का दान, बौद्धिक विकास, मानसिक विकास तथा आत्मिक विकास करना है। युद्धकला, राष्ट्ररक्षा, शत्रुओं का दमन और संतान को वीर साहसी योद्धा बनाने वाले कार्य करते रहने का भी विधान है।
पौराणिक परम्परा में श्राद्ध व तर्पण अाश्विन में गया जाकर स्वर्गलोक गए परिवार के पूर्वजों के लिए पिंडदान करने का विधान है। जलांजलि देकर पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का भाव रखना खास बताया गया है। इसके अलावा कुत्ते-बिल्ली, कौए और दूसरे प्राणियों को भोजन खिलाने की परम्परा है। लेकिन सारे कर्मकांड श्रद्धा और भक्ति के साथ करने चाहिए। परिवार की अच्छी परम्परा आगे बढ़ाने के लिए भी यह पक्ष जाना जाता है।