लाहौर में आयोजित दरबार में महाराजा रणजीत सिंह जी का राजतिलक समारोह हो रहा था। जब उन्हें ‘महाराजा’ शब्द से संबोधित किया गया तो उन्होंने कहा, ‘मैं राजा नहीं, सबका सेवक हूं। महाराजा तो वह ऊपर वाला है। मुझे मेरे नाम से ही पुकारो।’ इसके बाद रस्म के मुताबिक उनके सिर पर हीरों का हार रखा जाना था। लेकिन उन्होंने हीरों से जडि़त ताज पहनने से भी इनकार कर दिया। परंपरानुसार उनके नाम पर ‘महाराजा रणजीत सिंह सिक्का’ चलाने का अवसर आया। लेकिन उन्होंने कहा यह सिक्का मेरे नाम पर नहीं, गुरुनानक देव जी महाराज के नाम पर चलाया जाना चाहिए और तब पहली बार नानकशाही सिक्का चलाया गया। रणजीत सिंह ने न्याय को सर्वोपरि धर्म घोषित कर प्रत्येक नागरिक को निष्पक्ष न्याय और आवश्यक सुविधाएं दिए जाने का आदेश जारी किया। वे धर्म का असली मर्म समझते थे।
प्रस्तुति : जयगोपाल शर्मा