भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को किसी ने पत्थर का बना सुंदर फाउंटेन पेन भेंट किया। वह अपना लेखन कार्य उसी पेन से करते थे। काम समाप्ति के बाद स्वयं उसे संभाल कर मेज पर रख देते थे। एक दिन उनके ऑफिस का प्रमुख सेवक उनकी मेज की सफाई कर रहा था। सफाई करते समय अचानक उससे वह पेन नीचे गिर गया और टूट गया। स्याही के कुछ छींटे कमरे में बिछे कालीन और राष्ट्रपति के कपड़ों पर जा गिरे। राष्ट्रपति को उसकी लापरवाही पर क्रोध आ गया और उसको डांटते हुए अपने निजी कार्य से हटा कर दूसरी जगह भेज दिया। सेवक चला तो गया, किन्तु राजेन्द्र प्रसाद जी बेचैन हो उठे। अन्दर ही अन्दर उनका मन उन्हें बुरा-भला कहने लगा। वे उदास हो गये। इसी बीच कई मिलने वाले लोग आये, किन्तु उनकी उदासी दूर नहीं हुई। उन्हें अपने सेवक से बुरा-भला कहने पर बड़ी ग्लानि हो रही थी। सेवक से अनजाने में हुई गलती के कारण उसे डांटना उन्हें उचित नहीं लगा। वे उससे क्षमा मांगना चाहते थे। दूसरे दिन उन्होंने सेवक को बुलाया और उससे क्षमा याचना करने लगे। भारत का राष्ट्रपति एक सेवक से क्षमा मांगे, यह देखकर सेवक श्रद्धा से उनके चरणों में झुक गया। उनकी आंखें भर आई। उन्होंने उसी दिन उस सेवक को फिर से निजी कार्य पर रख लिया।
प्रस्तुति : निशा सहगल