जैनमुनि सुदर्शन जी महाराज के पास एक साधु पहुंचे। उन्होंने कहा, ‘महाराज, मुझे एक भक्त पांच एकड़ भूमि दान देना चाहते हैं, साथ ही आश्रम बनाने के लिए धनराशि भी। इस आश्रम का किसी अच्छे कार्य में उपयोग किया जा सकता है।’ मुनि श्री ने साधु से पूछा, ‘आपने अपना परिवार क्यों छोड़ा था? संयम के लिए ही तो। यदि जमीन लेकर फिर से भवन बनाने के चक्कर में पड़ना था, तो फिर अपने भरे-पूरे परिवार को छोड़ने की आवश्यकता क्या थी?’ मुनिश्री के इन शब्दों से साधु की आंखें खुल गईं। उन्होंने संकल्प लिया कि वे अपना जीवन संयम और तपस्या में बिताएंगे। भूमि, धन और आश्रमों के चक्कर में पड़कर अपने साधु बनने के लक्ष्य में बाधा नहीं आने देंगे।
प्रस्तुति : डॉ. जयभगवान शर्मा