स्वामी रामतीर्थ जापान यात्रा पर थे। उन दिनों वे उपवास पर थे और केवल फलाहार लेते थे। कहीं स्थानीय यात्रा के लिए वे रेलवे स्टेशन पहुंचे। ट्रेन चलने में काफी वक्त था, इसलिए वे फलों के लिए काफी दूर गए, लेकिन उन्हें फल नहीं मिले। लौटकर अपने सहयोगी से बोले, ‘भाई! जापान तो फलों के मामले में काफी गरीब देश लगता है, खोजने पर भी मुझे फल नहीं मिले।’ कुछ ही देर में एक युवक फलों की टोकरी लेकर डिब्बे में आया और स्वामी जी को सौंप दी। आश्चर्य में डूबे स्वामी जी ने जब युवक से पूछा, तो युवक ने बताया कि वह उनकी बातें सुन रहा था। वह नजदीक ही अपने घर से फल ले आया है। स्वामीजी को काफी प्रसन्नता हुई। उन्होंने फलों का मूल्य देना चाहा, तो युवक ने मना कर दिया। तब स्वामीजी ने कहा कि मैं मुफ्त में ये फल नहीं लूंगा, तो युवक ने उत्तर दिया, ‘इन फलों की कीमत उससे कहीं ज्यादा है, जो आप मुझे दे रहे हो।’ स्वामीजी ने कौतूहलवश पूछा, ‘बताइए, इनकी क्या कीमत है?’ युवक ने कहा, ‘आप अनेक देशों का भ्रमण करते हैं, तो कृपया कहीं भी जाकर यह न बतायें कि हमारा जापान फलों के मामले में गरीब देश है।’
प्रस्तुति : डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’