स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के अनन्य भक्त थे। लेकिन वे केवल उन्हीं बातों को स्वीकार करते थे, जो उन्हें तार्किक लगती थीं। यदि कोई बात उन्हें उचित नहीं लगती थी, तो वे तुरंत प्रश्न-प्रतिप्रश्न किया करते थे। दरअसल, स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे कि धन उन्हें स्वीकार्य नहीं है। धन उन्हें मानसिक और शारीरिक कष्ट दोनों देता है। स्वामी विवेकानंद ने इस बात की परीक्षा लेने का निर्णय किया कि क्या वाकई परमहंस जी को धन से कष्ट होता है? एक बार विवेकानंद जी ने चुपके से एक सिक्का परमहंस जी के बिस्तर के नीचे छिपा दिया। जब परमहंस जी बिस्तर पर लेटे, तो उन्हें शारीरिक कष्ट महसूस हुआ और वे बिस्तर से उठ गए। उनके शिष्यों ने बिस्तर को झाड़ा तो वह सिक्का नीचे गिर गया। फिर जब रामकृष्ण परमहंस जी बिस्तर पर पुनः बैठे, तो उन्हें अब कोई कष्ट नहीं हुआ। स्वामी विवेकानंद ने अन्य शिष्यों के साथ इस घटनाक्रम को देखा और इस घटना के बाद उनके मन में अपने गुरु के प्रति आस्था और अधिक बढ़ गई।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा