बुद्ध उन दिनों वैशाली प्रवास पर थे जहां उनके भक्तों की संख्या बढ़ती जा रही थी। दूसरी ओर उनके विरोधियों की गिनती भी कम न थी। एक बार विरोधियों ने उन्हें नीचा दिखाने के लिए एक पतिता स्त्री को तैयार किया। उसने पेट पर बहुत सारे वस्त्र बांध कर गर्भवती होने का ढोंग करते हुए, बुद्ध की सभा में पहुंचकर हंगामा शुरू कर दिया—देखो, मेरे पेट में इस साधु का पाप पल रहा है। यह ढोंगी है और इसका कपट यहां नहीं चलेगा। वहां बैठे श्रोताओं और भिक्षुओं में खलबली मच गई। उनके शिष्य आनन्द ने पूछा—भगवन, यह तो झूठा बवाल कर रही है, अब क्या होगा। बुद्ध मुस्कुराए और वहां बैठी महिलाओं से उस पतिता को अपने पास लाने को कहा। उस स्त्री से धक्कामुक्की के बीच उसके पेट पर लगाए सारे वस्त्र नीचे गिर गए और उसका सफेद झूठ सबके सामने आ गया। लज्जित होकर वह स्त्री वहां से भागने लगी तो वहां बैठे लोग उसे मारने को दौड़े। बुद्ध उन्हें रोकते हुए बोले—शांत हो जाइए। यह स्त्री अपने वश में नहीं है और इसकी आत्मा भी मर चुकी है। और जो मर चुका है, उसे दोबारा मारने से कोई लाभ नहीं, इसे छोड़ दो।
प्रस्तुति : मुकेश कुमार जैन