स्मृति शर्मा
हिन्दू संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति, जड़-चेतन, चल-अचल सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। तुलसी, वटवृक्ष, पीपल, केले के वृक्ष जैसे पेड़-पौधों की पूजा की परंपरा सदियों पुरानी है। मान्यता है कि नीम के वृक्ष पर देवी शीतला माता का निवास होता है। वैदिक युग में गाय, बैल और घोड़ा आदि पशु महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। भारत में नाग देवता की पूजा का प्रचलन भी प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। नाग देवता को समर्पित कई अनुष्ठानिक नृत्य भी किए जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि कश्यप मुनि की पत्नी कद्रू ने सर्पों को जन्म दिया। धार्मिक महाकाव्यों में सांपों का महत्वपूर्ण स्थान है। पुराणों में एक कथा अनुसार समुद्र मंथन में सर्प वासुकी का प्रयोग रस्सी के रूप में किया गया था। भगवान शंकर के गले में सर्पों की माला शोभा देती है, वहीं भगवान विष्णु की शय्या ही शेषनाग है। सिंधु घाटी के लोगों, मिस्र, ग्रीस और प्राचीन हड़प्पा में भी सांप की पूजा की जाती थी।
नाग पूजा को भारत में नागा पंथ के रूप में जाना जाता है। मत्स्यपुराण, पद्मपुराण आदि ने भी नागा पंथ की महिमा का वर्णन किया है। बौद्ध साहित्य में उन्हें विभिन्न जातक कहानियों में चित्रित किया गया है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेषनाग का छत्र देखा जाता है।
नागा पंथ की उत्पत्ति : पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार नाग पंचमी के दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी, जिसके वंशज आज भी हैं। महाभारत काल में पूरे भारतवर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। उनके देवता सर्प थे। असम, नगालैंड, मणिपुर, केरल और आंध्रप्रदेश में नागा जातियों का वर्चस्व रहा है। अग्निपुराण में 8 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है। नाग वंशावलियों में ‘शेषनाग’ को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेषनाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है। श्रीमद्भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- मैं नागों में अनंत (शेषनाग) हूं। शेषनाग के बाद आए वासुकी, फिर तक्षक और पिंगला। मान्यता है कि वासुकी का कैलास पर्वत के पास ही राज्य था और तक्षक ने ही तक्षशिला बसाकर अपने नाम से ‘तक्षक’ कुल चलाया था।
नागपंचमी : बिहार, बंगाल, उड़ीसा, राजस्थान में लोग कृष्ण पक्ष में नागपंचमी का त्योहार मनाते हैं, जबकि देश के बाकी हिस्सों में श्रावण शुक्ल पंचमी को यह पर्व मनाया जाता है। उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में नागपंचमी के दिन नाग की मूर्तियां बनाकर विधि-विधान से इनकी पूजा की जाती है। पश्चिम बंगाल और झारखंड के सीमावर्ती जिलों में नागपंचमी के दिन राजा परीक्षित को नागराज तक्षक द्वारा काट लिये जाने की कहानी पर नृत्य नाटिका होती है। पूर्वी बिहार में नागपंचमी के दिन बिहुला सती की पूजा की जाती है। लोक विश्वास अनुसार जब बिहुला की स्तुति पर आधारित लोक गाथा बाललखन्दर गायी जाती है, तो सांप आकर यह गाथा सुनते हैं।
नाग देव से जुड़े प्राचीन मंदिर और शहर : मन्नारसला मंदिर- केरल, भुजंग नाग मंदिर- भुज (गुजरात), वासुकी नाग मंदिर- डोडा (जम्मू), नागमंदिर- पटनीटॉप (कश्मीर) और उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के ऊपर 11वीं शताब्दी का नागचंद्रेश्वर मंदिर, देश के प्रमुख नाग देवता मंदिरों में शामिल हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर केवल नागपंचमी के दिन ही खुलता है। भारत के कई शहरों के नाम नागों के आधार पर ही रखे गए हैं, जैसे नागपुर, अनंतनाग, नगालैंड, भागसूनाग आदि। नाग के मंदिर, नागवंश तथा नागलोक से जुड़ी कहानियां, नाग की पूजा-व्रत, नाग नृत्य-नाट्य, नाग मंत्र, भारतीय जीवनशैली का अभिन्न अंग हैं।
पैम्पु अट्टम (सांप नृत्य) : पैम्पु अट्टम तमिलनाडु का एक लोक नृत्य है। सांप हिंदू देवता मुरुगन से संबंधित हैं। आमतौर पर लड़कियां सांप की त्वचा जैसी पोशाक के साथ यह नृत्य करती हैं। कलाकार सांपों की हरकतों का अनुकरण करता है, सिर और हाथों को तेजी से चलाता है। हाथों को एक साथ रखा जाता है, जिससे कोबरा का फ़न दिखाया जा सके।
सरपम थुललाल : यह एक अनुष्ठान नृत्य है, जो केरल के पुल्लुवर समुदाय द्वारा किया जाता है। यह नृत्य आमतौर पर उन घरों के आंगन में किया जाता है, जहां सर्प मंदिर बना हो। इन छोटे सर्प मंदिरों को कावु कहते हैं। पूजा के दिन, 2-3 सांपों के साथ एक चित्र बनाते हैं, जिसे कोल्लम कहते हैं, फिर तेल का दीपक जलाते हैं, धान-चावल कोल्लम पर चढ़ाते हैं। फिर सांप की मूर्ति को पंचवद्य के संगीत पर कावु से निकाल कोल्लम पर रखा जाता है। पुजारी पूजा-अनुष्ठान करते हैं, कोल्लम के किनारों पर दो पंक्तियों में लड़कियां सांपों के फन की तरह बालों को सजाकर बैठती हैं। पुजारी कोल्लम के चारों ओर पैरा, नन्थुनी नामक वीणा, कुडम और एलाथलम आदि वाद्ययंत्रों की लयबद्ध ताल पर नृत्य करते हैं। औरतें एवं मर्द भक्ति विशेष गीत गाते हैं, लड़कियां नृत्य करती हैं।
कालबेलिया : परंपरागत रूप से राजस्थान के कालबेलिया जनजाति के पुरुष बेंत से बनी टोकरी में नाग को बंद कर घर-घर घूमते थे और महिलाएं नाच-गाकर भिक्षा मांगती थी। महिलाएं काले घाघरे, सिर पर ओढनी पहन कर सांप की गतिविधियों की नकल करते हुए नाचती हैं।
नागमण्डला : यह दक्षिण कर्नाटक में लोक पर्व नागार्धने के दौरान नागों की आत्मा को शांत करने के लिए किया जाने वाला अनुष्ठान नृत्य है। जिस अखाड़े में यह नृत्य किया जाता है, उसे पारंपरिक रूप से रंगोली से सजाया जाता है। यह नृत्य पुरुष नर्तकों द्वारा नागकन्या की वेशभूषा धारण करके किया जाता है। इसे मुख्य पुजारी द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
कुड नृत्य : कश्मीर में बांसुरी, ढोल और पारंपरिक वाद्यंयंत्रों की तान पर नाग देवताओं के सम्मान में अनुष्ठान और अन्य समारोहों के अवसर पर कुड नृत्य किया जाता है। पुरुष आमतौर पर कुर्ते और चूड़ीदार पायजामा के साथ सिर पर पगड़ी पहनते हैं। कूल्हे के पास कपड़े का एक टुकड़ा बांधते हैं।
गुग्गा नृत्य : भादों के महीने में मनाए जाने वाले गुग्गा उत्सव पर गुग्गा नृत्य किया जाता है। यह नृत्य केवल पुरुष भक्तों द्वारा किया जाता है। यह नृत्य बहुत ही सरल है और हरियाणा समेत देश के उत्तरी भागों में प्रचलित है। भगत अपने साथ एक लम्बा डंडा लेकर चलते हैं, जिसे माला, रंग बिरंगे कपड़ों से सजाया जाता है।
(लेखिका शास्त्रीय नृत्यांगना हैं)