अलका ‘सोनी’
हिंदू धर्म, जो अत्यंत प्राचीन और गहरा है, एक साथ गूढ़ और सरल दोनों है। यह न केवल ब्रह्मांड के संचालन के लिए एक अदृश्य शक्ति की कल्पना करता है, बल्कि हर कार्य की प्रेरणा के लिए एक ईश्वरीय शक्ति भी मानता है। इस संदर्भ में, भगवान विश्वकर्मा की पूजा का विशेष महत्व है। उन्हें देवताओं का इंजीनियर और सृष्टि के पहले शिल्पकार के रूप में पूजा जाता है।
विश्वकर्मा का योगदान
भगवान विश्वकर्मा, जिन्हें देवताओं का इंजीनियर माना जाता है, ने सृष्टि के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भगवान ब्रह्मा के 7वें पुत्र हैं और ब्रह्मा की सहायता से ब्रह्मांड की रचना की। पौराणिक कथाओं के अनुसार, विश्वकर्मा ने इंद्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका, और जगन्नाथपुरी जैसे पौराणिक इमारतों का निर्माण किया। उन्होंने भगवान शिव का त्रिशूल और विष्णु का सुदर्शन चक्र भी तैयार किया था।
पूजा का महत्व
प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा को, जिसे हिंदी पंचांग में 17 सितंबर को मनाया जाता है, भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। इस दिन, सूर्य जब कन्या राशि में प्रवेश करता है, इंजीनियरिंग संस्थानों, कारखानों, कार्यशालाओं और श्रमिक समूहों द्वारा मशीनों, औजारों और हथियारों की पूजा की जाती है। इस दिन विशेष पूजा करने से व्यापार में वृद्धि और मशीनों की लंबी उम्र की कामना की जाती है।
कथाएं
भगवान विश्वकर्मा की कई पौराणिक कथाएं हैं। विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का इंजीनियर कहा गया है। उन्होंने सोने की लंका का निर्माण किया और सृष्टि को व्यवस्थित करने के लिए ब्रह्मा की मदद की।
पूजा विधि
विश्वकर्मा पूजा के दिन, स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें और भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठें। पूजा के लिए अक्षत, हल्दी, फूल, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, धूप, दीप और रक्षासूत्र जैसे सामग्री का प्रयोग करें। पूजा के बाद, सभी हथियारों और औजारों को हल्दी और चावल लगाएं, कलश पर हल्दी चावल और रक्षासूत्र चढ़ाएं और पूजा मंत्रों का उच्चारण करें।
ध्यान देने योग्य बातें
विश्वकर्मा पूजा के दिन औजारों को साफ करना आवश्यक है और इन्हें इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए। औजारों का उपयोग स्वयं न करें और न ही किसी अन्य को करने दें।
मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में उन्नति होती है और सभी समस्याओं का समाधान होता है। पूजा के बिना भी घर पर धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित कर पूजा की जा सकती है, जो उतना ही महत्वपूर्ण होता है।