नयी दिल्ली, 19 जून (एजेंसी)
कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के बावजूद दाम नहीं बढ़ने की वजह से ईंधन की खुदरा बिक्री करने वाली निजी क्षेत्र की जियो-बीपी और नायरा एनर्जी जैसी कंपनियों को डीजल की बिक्री पर प्रति लीटर 20 से 25 रुपये और पेट्रोल पर 14 से 18 रुपये का नुकसान हो रहा है। इन कंपनियों ने पेट्रोलियम मंत्रालय को इस बारे में पत्र लिखा है और सरकार से एक व्यवहार्य निवेश वातावरण बनाने के लिए कदम उठाने की मांग की है। फेडरेशन ऑफ इंडियन पेट्रोलियम इंडस्ट्री (एफआईपीआई) ने 10 जून को पेट्रोलियम मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा है कि पेट्रोल और डीजल की बिक्री पर नुकसान से खुदरा कारोबार में निवेश सिमट जाएगा। एफआईपीआई निजी क्षेत्र की कंपनियों के अलावा इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (एचपीसीएल) को अपने सदस्यों में गिनता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल और इसके उत्पादों की कीमतें एक दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं, लेकिन सरकारी ईंधन खुदरा विक्रेताओं ने पेट्रोल और डीजल कीमतों को ‘फ्रीज’ किया हुआ है। सरकारी कंपनियों का ईंधन खुदरा कारोबार में 90 प्रतिशत का हिस्सा है। इस समय ईंधन के दाम लागत लागत के दो-तिहाई पर ही हैं, जिससे निजी कंपनियों को नुकसान हो रहा है। इससे जियो-बीपी, रोसनेफ्ट समर्थित नायरा एनर्जी और शेल के समक्ष या तो दाम बढ़ाने या अपने ग्राहक गंवाने का संकट पैदा हो गया है।
एफआईपीआई के महानिदेशक गुरमीत सिंह ने पत्र में लिखा है कि निजी कंपनियों को लागत से कम मूल्य पर ईंधन की बिक्री (अंडर-रिकवरी) से डीजल पर प्रति लीटर 20-25 रुपये और पेट्रोल पर प्रति लीटर 14-18 रुपये का नुकसान हो रहा है। 6 अप्रैल से ईंधन के खुदरा दाम नहीं बढ़े हैं। वहीं राज्य परिवहन उपक्रमों जैसे थोक खरीदारों को बेचे जाने वाले ईंधन के दाम में अंतरराष्ट्रीय कीमतों के अनुरूप बढ़ोतरी हुई है। एफआईपीआई ने कहा कि इससे बड़ी संख्या में थोक खरीदार खुदरा आउटलेट से खरीद कर रहे हैं जिससे निजी क्षेत्र की कंपनियों का नुकसान और बढ़ रहा है। पत्र में सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की गई है। एफआईपीआई ने कहा कि निजी क्षेत्र की सभी पेट्रोलियम विपणन कंपनियां खुदरा क्षेत्र में भारी निवेश कर रही हैं, लेकिन इस समय उन्हें एक मुश्किल हालात से जूझना पड़ रहा है। पत्र में कहा गया है कि इससे निजी कंपनियों की निवेश के साथ-साथ परिचालन की क्षमता प्रभावित हो रही है। साथ ही वे अपने नेटवर्क का भी विस्तार नहीं कर पा रही हैं।