मनीमाजरा (चंडीगढ़), 19 अक्तूबर (हप्र)
ईवी (इलेक्ट्रिक व्हीकल) तब तक कारगर नहीं हो सकते जब तक हम इनकी बैटरी को चार्ज करने के लिये इस्तेमाल होने वाली बिजली कोयले से ही बनाते रहेंगे। ईवी व्हीकल की चार्जिंग तो कोयले से तैयार बिजली से हो रही है जिससे बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है और पर्यावरण को जबरदस्त नुकसान पहुंचता है। एक तरफ तो हम ईवी के जरिये कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की दिशा में काम कर रहे हैं और दूसरी तरफ उसकी चार्जिंग उस बिजली से कर रहे हैं जो कोयले से पैदा हो रही है। यह नीति निर्धारकों व निर्माताओं का जबरदस्त विरोधाभास है। इन कारकों पर भी सरकारों को ध्यान देना चाहिए और ईवी के लिये ग्रीन एनर्जी पर विचार करना चाहिए। ये कहना था पंजाब यूनिवर्सिटी में व्याख्यान देने आये जेसी बोस नेशनल फेलो राष्ट्रीय विज्ञान अध्यक्ष, एसईआरबी, डीएसटी (भारत सरकार) पद्मश्री प्रोफेसर जीडी यादव का। उन्होंने कचरे से धन पैदा करने और कार्बन शून्य अर्थव्यवस्था के विकास की क्षमता पर जानकारी दी। प्रो. यादव ने कहा कि प्लास्टिक को बड़े कारगर तरीके से ठिकाने लगाया जा सकता है बशर्ते इसके कबाड़ को बिजनेस से जोड़ दें। किसानों की पराली जलाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि जिस दिन किसान को यह ज्ञात हो जाएगा कि पराली से पैसा पैदा होता है तो यह समस्या स्वत: बंद हो जाएगी। अभी सरकारों ने उन्हें पराली के उद्योगों में प्रयोग को लेकर सही तरीके से जानकारी नहीं दी अन्यथा वह पराली को जलाने की बजाय इससे कमाई करने की दिशा में बढ़ेंगे। प्रो. यादव ने कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन का निर्माण एक डॉलर से भी कम कीमत में हो रहा है। ओएनजीसी ने गोवा में इसका प्लांट लगाया है जिसमें वह खुद काम कर रहे हैं। यह जल्द ही पेट्रोल व डीजल के विकल्प के तौर पर सामने आएगा जो न केवल सस्ता होगा बल्कि पर्यावरण के भी अनुकूल होगा। उन्होंने कार्बन डाई-ऑक्साइड को ग्रीन हाऊस गैस में कन्वर्ट करने वाली टेक्नोलॉजी के बारे भी बताया।
प्रो. जीडी यादव ने कहा कि अगर भारत 20 फीसदी भी कार्बन डाइआक्साइड को उपयोग में लाना शुरू कर दे तो हमें किसी तरह के ईंधन और केमिकल के आयात की आवश्यकता नहीं होगी और हमारा कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने टारगेट 2040का होना चाहिए न कि 2070 का। अगर देश में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को प्रमोट करने की नीति बने तो क्रूड आयल और एलएनजी और कार्बन फ्यूल इम्पोर्ट करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। उन्होंने बताया कि मेथनॉल को मीथेन और फिर बायो-मीथेन को सीएनजी में बदला जा सकता है जो वैल्यू एडिड फ्यूल होगा। उन्होंने बताया कि एग्री बेस्ड अर्थव्यवस्था में पराली जलाने से प्रदूषण फैल रहा है लेकिन इसे भी वैल्यू एडिड केमिकल में बदला जा सकता है। ठीक इसी तरह वेस्ट प्लास्टिक को हाइड्रो कार्बन में तब्दील कर इंडस्ट्री के सोर्स के लिए प्रयोग किया जा सकता है। प्रो. यादव ने कहा कि सोलर, विंड और हाइड्रोजन एनर्जी के जरिये एक बड़ा बदलाव लाया जा सकता है और हम एनर्जी प्रॉडक्शन में लीडर बन सकते हैं।
देश के सर्वोच्च वैज्ञानिकों में से एक हैं प्रो. यादव
प्रोफेसर यादव भारत के सर्वोच्च, अत्यधिक विपुल और निपुण इंजीनियरिंग-वैज्ञानिकों में से एक हैं। ग्रीन केमिस्ट्री और इंजीनियरिंग,कैटलिसिस,केमिकल इंजीनियरिंग, बायोटेक्नोलॉजी, नैनोटेक्नोलॉजी, एनर्जी इंजीनियरिंग, स्वच्छ और हरित प्रौद्योगिकियों के विकास में शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार में उनके मौलिक योगदान के लिए उन्हें एक शिक्षाविद, शोधकर्ता और प्रर्वतक के रूप में प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। उन्होंने 551 मूल शोध पत्र प्रकाशित किए हैं, 121 राष्ट्रीय और पीसीटी पेटेंट प्रदान किए हैं।