हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के पालघर जिले में 76,000 करोड़ रुपये की लागत वाली वधावन बंदरगाह परियोजना की आधारशिला रखी। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि वधावन देश का सबसे बड़ा कंटेनर बंदरगाह होगा। इस परियोजना का उद्देश्य भारत में एक विश्वस्तरीय समुद्री प्रवेश द्वार स्थापित करना है, जो बड़े कंटेनर जहाजों की ज़रूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाए। उन्होंने कहा कि वधावन बंदरगाह भारत के सबसे बड़े गहरे पानी के बंदरगाहों में से एक होगा। यह अंतर्राष्ट्रीय नौवहन मार्गों को सीधा संपर्क प्रदान करेगा, जिससे पारगमन समय और लागत कम होगी। यह बंदरगाह भारत की समुद्री कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा और वैश्विक व्यापार केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को और मजबूत करेगा।
उल्लेख्ानीय है कि भारत की 7517 किमी लंबी समुद्री तटरेखा है, जो 9 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों को समाहित करती है। देश के विशाल समुद्र तटों पर, 13 प्रमुख बड़े और 212 छोटे बंदरगाह हैं। बड़े बंदरगाहों में पूर्वी तट पर हल्दिया, पारादीप, विशाखापट्टनम, कामराज, चेन्नई, तूतीकोरिन और पोर्ट ब्लेयर हैं। पश्चिमी तट पर कोचीन, न्यू मैंगलोर, मोरमुगांव, जवाहरलाल नेहरू, कांडला और मुंबई बंदरगाह हैं। भारतीय बंदरगाह अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत और वैश्विक व्यापार के लिए शताब्दियों से महत्वपूर्ण बने हुए हैं और बंदरगाहों से विदेश व्यापार लगातार बढ़ता गया है। इस समय भारत का मात्रा के हिसाब से 95 फीसदी और मूल्य के हिसाब से 70 फीसदी व्यापार बंदरगाहों के माध्यम से होता है।
नि:संदेह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार होने के कारण भारतीय बंदरगाहों ने समुद्री (तटीय) राज्यों को देश में औद्योगिक विकास के मद्देनजर पसंदीदा स्थल बना दिया है। परिवहन संबंधी न्यूनतम बाधाओं के साथ-साथ लॉजिस्टिक लागत में कमी बंदरगाहों के निकटवर्ती क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को बढ़ाने वाला प्रमुख कारण है। बिजली, इलेक्ट्रॉनिक्स, परिधान, चमड़ा, फर्नीचर, रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स, सीमेंट, स्टील और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उद्योग बंदरगाह क्षेत्रों में तेजी से विकास कर रहे हैं। इसी के चलते महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, केरल जैसे राज्यों के द्वारा देश की विकास गाथा में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा रहा है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) की स्थापनाओं में बंदरगाहों की अहमियत स्पष्ट दिखाई दे रही है। देश में अधिसूचित कोई 377 एसईजेड में से करीब 240 एसईजेड समुद्री राज्यों में स्थित हैं। अदानी पोर्ट लिमिटेड, देश का सबसे बड़ा एसईजेड गुजरात के कच्छ जिले में मुंद्रा बंदरगाह पर स्थित है।
निश्चित रूप से पिछले एक दशक में भारत अपने बंदरगाहों को समुद्री व्यापार की धुरी बनाने के लिए लगातार रणनीतिक रूप से आगे बढ़ रहा है। निजी बंदरगाहों को प्रोत्साहन दिया गया है। भारत कार्गो और जहाजों को संभालने में अपनी दक्षता में सुधार करने के उद्देश्य से अपनी बंदरगाहों का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहा है। वर्ष 2015 में सागरमाला कार्यक्रम के लॉन्च होने के बाद से बंदरगाह के नेतृत्व वाले विकास को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिला है। मार्च, 2022 तक सागरमाला कार्यक्रम के लिए 5.40 लाख करोड़ रुपए की निर्धारित लागत वाली कुल 802 परियोजनाओं में से 1.12 लाख करोड़ रुपये की 221 परियोजनाएं पहले ही पूरी हो चुकी हैं, जबकि 4.28 लाख करोड़ रुपये की 581 परियोजनाएं विकास के विभिन्न चरणों में हैं। वर्ष 2021 में लॉन्च किए गए पीएम गति-शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के माध्यम से विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को गति प्रदान की जा रही है। पीएम गति-शक्ति मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी परियोजनाओं की समन्वित योजना और निष्पादन पर केंद्रित है जिसमें बंदरगाह भी शामिल हैं। ज्ञातव्य है निजी भागीदारी बंदरगाह आधारित विकास की मुख्य रणनीति है। इस संबंध में 100 करोड़ रुपये से अधिक निवेश की सभी परियोजनाएं नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) के तहत सूचीबद्ध हैं।
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जो समुद्री राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स पोर्टल (एनएलजी) जनवरी, 2023 में शुरू हुआ है, वह एक ऐसा वन-स्टॉप प्लेटफ़ॉर्म है जो लॉजिस्टिक्स समुदाय के सभी हितधारकों को आईटी के माध्यम से जोड़ता है। जिसका उद्देश्य लागत और समय की देरी को कम करते हुए दक्षता और पारदर्शिता में सुधार करना है। सरकार ने बंदरगाह और बंदरगाह निर्माण और रखरखाव परियोजनाओं के लिए स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी हुई है। इसके अलावा, 11.8 अरब डॉलर के योजनाबद्ध आउटले के साथ समुद्री क्षेत्र को विकसित करने के लिए राष्ट्रीय समुद्री विकास कार्यक्रम (एनएमडीपी) भी अत्यधिक लाभप्रद है। अब मेरीटाइम इंडिया मिशन 2030 के तहत बंदरगाहों के विकास और लॉजिस्टिक लागत घटाकर समुद्री अर्थव्यवस्था से देश को लाभान्वित करने का नया अध्याय आगे बढ़ रहा है।
इन सबके साथ-साथ वैश्विक समुद्री भारत शिखर सम्मेलन (जीएमआईएस) के दौरान तय किए गए व्यापक रोडमैप के साथ समुद्री अमृतकाल विजन 2047 भारत के समुद्री क्षेत्र को नई ऊंचाई देने के लिए तैयार है। इसमें रसद, बुनियादी ढांचे और नौवहन में आकांक्षाओं को शामिल किया गया है, यह भारत की ‘ब्लू इकोनॉमी’ का आधार स्तम्भ है।
नि:संदेह, सरकार और निजी क्षेत्र के द्वारा समन्वित रूप से किए जा रहे समुद्री विकास और बंदरगाहों के विकास के रणनीतिक प्रयासों के अच्छे परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं। जहां 1990 के दशक में देश में जहाज की वापसी में लगने वाला औसत समय लगभग 7.8 दिन था। अब यह आंकड़ा कम होकर 2 दिनों से भी कम रह गया है। कई अन्य परिचालन दक्षता संकेतकों में भी बड़े सुधार आए हैं। जहां मार्च 2014 के अंत में भारत के सभी प्रमुख बंदरगाहों की यातायात क्षमता 87.15 करोड़ टन थी, वहीं यह मार्च 2022 के अंत तक 153.49 करोड़ टन हो गई। उल्लेखनीय बात यह भी है कि निजी बंदरगाहों और निजी साझेदारी की हिस्सेदारी छलांगें लगाकर बढ़ी है। इन सबके कारण भारत अंतर्राष्ट्रीय शिपमेंट श्रेणी में 22वें स्थान पर पहुंच गया है, जबकि 2014 में यह 44वें स्थान पर था। भारत देश के समुद्री विकास में लॉजिस्टिक्स क्षमता और समानता में भी चार स्थान ऊपर चढ़कर 48वें स्थान पर पहुंच गया है। निश्चित रूप में से देश में समुद्री विकास के साथ बंदरगाहों का विकास देश के विदेश व्यापार को और तेजी से बढ़ाएगा। यह स्पष्ट है कि जल परिवहन दुनियाभर में माल ढुलाई के लिए सबसे सस्ता और वरीयता वाला माध्यम है। चीन और अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों ने जैसे-जैसे विकास की ओर कदम बढ़ाए वैसे-वैसे उन्होंने अपने जल मार्गों का अधिकतम उपयोग किया है। उन्होंने जल मार्गों को अपनी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण स्तंभ बना लिया है।
लेखक अर्थशास्त्री हैं।