पिंजौर, 26 मई (निस)
पिंजौर में भी इस बार रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ रही है। रविवार को 42 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक तापमान के बाद यहां भी लू के थपेड़े पड़ने शुरू हो गए हैं। इसी गर्मी से बचने के लिए लोगों को केवल पिंजौर की कई सदियों पुरानी पांडव कालीन बावड़ियां ही एकमात्र सहारा बन रही हैं। पिंजौर ही नहीं बल्कि कालका और आसपास के क्षेत्र के कई युवा और बच्चे दिन के समय बावड़ी में स्नान कर गर्मी से बचने की कोशिश करते हुए नजर आ जाते हैं। पिंजौर के सीताराम मंदिर के साथ वाली कुम्हारों वाली बावड़ी नहाने के लिए काफी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के अज्ञातवास का एक वर्ष पिंजौर एवं आसपास के क्षेत्र में बिताया था, कहीं कौरव उनकी उनके पानी में जहर ना मिला दें, इसीलिए पांडव प्रतिदिन नयी बावड़ी खोदकर पानी पीते थे। इसी के चलते पांडवाें ने 365 बावड़ियां खोदी थी, लेकिन उनमें से अब केवल 14 ही शेष बची हैं। सबसे अधिक आस्था का केंद्र द्रौपदी कुंड धारा मंडल है। इसके अलावा महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाए गुरुद्वारा मांजी साहिब में भी दो में से एक वह बावड़ी है, जिसके पानी से हाथ धुलाकर गुरु नानक देव जी ने टुंडे राजा को हाथ बख्शे थे। यहीं पर प्राचीन शाही मस्जिद के साथ ही 2 बावड़ियां हैं। एक बावड़ी बाबा तोपनाथ के डेरे में है, एक बावड़ी कबीर चौरा जो शिवा कांप्लेक्स में स्थित है। दो छोटी बावड़ियां रामबाग में है, एक बावड़ी बैरागी मोहल्ले में है।
खुदाई में मिले लगभग हजार वर्ष पुराने पंचायतन मंदिर के राज्य सुरक्षित स्मारक भीमा देवी मंदिर में भी प्राचीन बावड़ी है, जहां प्राचीन मंदिर के अवशेष खुदाई के दौरान मिले थे। पिंजौर में बढ़ती आबादी के बाद आसपास कई मकान बन गए और उनमें लोगों ने शौचालय के सेप्टी टैंक भी बनाए हुए हैं जिस कारण अब इन बावड़ियों का पानी पीने लायक नहीं रहा है। इनका पानी 24 घंटे 12 महीने बेकार ही बहता रहता है। इस पानी को एक जगह स्टोर कर और फिल्टर कर इसे पीने लायक बनाया जा सकता है।