अमरेंद्र किशोर
साल 2023 अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाजरे का साल है। ज्वार-बाजरा अक्सर ‘सुपरफूड’ के रूप में जाना जाता है। प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरपूर यह अनाज, अपने उम्दा पोषण मूल्य के लिए सदियों से पारंपरिक भोजन के तौर पर देश के ज्यादातर राज्यों में लोकप्रिय रहा है। आज सरकार इसे प्रमुखता से पैदा करने पर जोर दे रही है। भारत बाजरे का प्रमुख उत्पादक है, जो एशिया के उत्पादन का 80 प्रतिशत और वैश्विक उत्पादन का 20 प्रतिशत हिस्सा पैदा करता है। उल्लेखनीय है कि 1960 के दशक तक मध्य भारत का यह मुख्य भोजन रहा है, लेकिन हरित क्रांति के सुरूर में चावल और गेहूं की अधिक उपज देने वाली किस्मों के आने के दौैर में लोग बाजरा खाना भूल गए। भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के मुताबिक, 1965-70 तक, बाजरा भारत में कुल खाने की चीजों का 20 प्रतिशत हिस्सा था, जो अब घटकर मात्र 6 फीसदी रह गया है।
सवाल है कि लगातार 50 सालों तक बाजरे को लेकर केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा उपेक्षा का भाव क्यों बना रहा? भला क्यों अब खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिए बाजरे के योगदान को स्वीकार किया जा रहा है? बावजूद इसके कि बाजरा किसी भी सूरत में गेहूं और चावल की तरह मुख्य आहार नहीं हो सकता। याद रहे, बाजरे में गोइट्रोजेन भी होते हैं जो आयोडीन के अवशोषण में हस्तक्षेप कर सकते हैं। इसका ज्यादा सेवन करने से थाइरॉयड और घेंघा की समस्या होती है। तो क्या इसी वजह से बाजरे को लम्बे समय तक दरकिनार किया गया?
मौजूदा दौर में अचानक बाजरे के टिकाऊ उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार के लिए हितधारकों को प्रेरित करने की दशा देखकर अचंभित होना लाजिमी है। हैदराबाद स्थित भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान को सभी नीतियों, गतिविधियों और कम्युनिकेशन पर नज़र रखने के लिए एक नोडल संस्थान बनाया गया है। जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए 6 टास्क फोर्स का गठन किया गया है। उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाने के मंसूबों के साथ, इस पर विभिन्न राज्यों, प्रसंस्करणकर्ताओं, पोषण विशेषज्ञों और किसानों के साथ परामर्श किया गया है। बीती शताब्दी में अधिक अन्न उपजाने के लिए खेती और सिंचाई की जो रीत विकसित हुई उसका खमियाजा आज जल संकट व बंजर होती ज़मीन के रूप में दिख रहा है। अब दलील दी जा रही है कि एक किलो गेहूं को सिर्फ बोने में ही 900 लीटर पानी की खपत होती है। एक किलो सब्ज़ी उगाने में 500 लीटर पानी और एक किलो चावल की पैदावार में कम से कम ढाई हजार लीटर पानी की ज़रूरत होती है।
भारतीय संविधान में कृषि राज्य सूची का विषय है। फिर अनाज को लेकर इतना बेगानापन क्यों? राज्य सरकारें अन्न को लेकर लम्बे कालखंड में बेखबर रहीं। ख़ास तौर से उन राज्यों में जहां ज्वार-बाजरा-मक्का आदि पैदा करने की परिपाटी रही वहां लोकमानस की परम्परागत भोजन आदतों का सम्मान नहीं किया गया। ग्रामीण आबादी और खास तौर से महुआ, तेंदू, चिरौंजी जैसे वन उत्पादों के संग्रह पर निर्भर आदिवासी जिन अनाजों को सदियों से खाते चले आ रहे हैं, वैज्ञानिक पद्धतियों से जुड़कर उनके उत्पादन की बात कभी नहीं की गयी। सरकारों ने प्राकृतिक आपदाओं जैसे अकाल-महामारी आदि में ज्वार-बाजरा-मक्का और मड़ुआ जैसे मोटे अनाज से उन लोगों को दूर कर दिया। यहां तक कि लोक वितरण प्रणाली की दुकानों के माध्यम से राजस्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में, जहां बाजरे की बंपर पैदावार की जाती थी, वहां सरकारी स्तर पर गेहूं मुहैया करवाई गयी। हरित क्रांति के बाद जब गेहूं के भरपूर भंडारण युग की शुरुआत हुई उसके बाद कभी ‘काम के बदले अनाज’ और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम में इन मोटे अनाजों का वितरण शायद ही किया गया। चूंकि सत्तर के दशक तक आते-आते किसान गेहूं की बिक्री से मालामाल थे तो मोटे अनाज को पिछड़ेपन और दारिद्रय का चिन्ह मान लिया गया।
बाजरे के उत्पादन में राजस्थान जहां सबसे आगे है तो वहीं उसके बाद दूसरे नंबर पर कर्नाटक है। फिर महाराष्ट्र, चौथे नंबर पर उत्तर प्रदेश और पांचवें पर हरियाणा है। लेकिन इन राज्यों में कुपोषण के आंकड़ों पर गौर कीजिये। राजस्थान में कुपोषण का स्तर 27.6 प्रतिशत, कर्नाटक में 32.9 प्रतिशत, महाराष्ट्र 36.1 प्रतिशत में उत्तर प्रदेश में 32.1 प्रतिशत और हरियाणा में 21.5 प्रतिशत है। क्या इन राज्यों की आंगनवाड़ी में, या मातृत्व सहयोग योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के जरिये गर्भवती महिलाओं को दिए गए अनाज में बाजरा परोसा गया? सर्वविदित है कि बाजरा आयरन का उत्कृष्ट स्रोत है, जो हीमोग्लोबिन स्तर को सुधारने में मदद करता है। फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट, आयरन, जिंक, मैग्नीशियम और विटामिन बी से भी भरपूर होता है।
भारत की गेहूं और चावल जैसी अनाज की मुख्य फसलों की तुलना में बाजरा कहीं बेहतर है। कार्बोहाइड्रेट के मामले में यह लगभग गेहूं और चावल के समान व प्रोटीन की मात्रा के मामले में अधिक है। फिर भी बाजरे को अपनाना सही है लेकिन तार्किकता के साथ अपनाना होगा।
दरअसल बीमारियों में राहत देने वाले कुछ अनाजों में बाजरा अव्वल है। इसकी खेती को बढ़ावा देना और भोजन में बतौर मुख्य अनाज शामिल करने की पहल जलवायु परिवर्तन के दौर में विवेकसंगत है। नि:संदेह केंद्र सरकार की यह नयी खाद्य संस्कृति की ओर बढ़ने की पहल है।