रेनू सैनी
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, उसके अंदर नौ तरह के स्थायी भाव होते हैं। ये हैं रति, हास, क्रोध, शोक, उत्साह, जुगुप्सा, भय और विस्मय। इन भावों में संतुलन होना अनिवार्य है। यदि व्यक्ति के अंदर इन भावों का संतुलन गड़बड़ा जाता है तो व्यक्ति का व्यक्तित्व भी नकारात्मक बन जाता है। क्रोध एक ऐसा भाव है जिसकी अधिकता व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाती है। बौद्ध धर्म में ‘तीन तरह के विष’ माने गए हैं। ये तीन विष हैं— लोभ, क्रोध और अज्ञान। जापान एक ऐसा देश है जो सुव्यवस्थित होने के साथ-साथ आशावादी लोगों से भरा है। यह आर्थिक रूप से समृद्ध भी इसलिए है क्योंकि यहां के लोग बेहद सकारात्मक हैं। यहां के लोगों का समय प्रबंधन बेहद जबरदस्त है। यहां पर एक ट्रेन की औसत देरी मात्र 18 सेकंड है। अनेक प्रबंधनों के साथ-साथ यहां का क्रोध प्रबंधन भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र होता है।
जापान के कियोसू में हियोशी ताइशा नामक एक मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि उस मंदिर में ‘हकीदशिसारा’ नामक एक त्योहार मनाया जाता है। ‘हकीदशिसारा’ का संबंध वहां के पकवान और प्लेट से है। इसके अंतर्गत लोग उन चीजों को एक छोटी प्लेट पर रखते हैं, जो उन्हें गुस्सा दिलाती हैं। इसके बाद वे उन्हें तोड़ देते हैं।
हाल ही में जापान स्थित नागोया यूनिवर्सिटी के अध्ययन से क्रोध प्रबंधन को एक नई दिशा मिली है। अध्ययन में यह दावा किया गया है कि वह नकारात्मक घटना जो हमें कुछ गलत करने के लिए प्रेरित करती है, उसे एक कागज़ पर लिख दिया जाए। इसके बाद उस कागज़ की गेंद बनाकर कूड़ेदान में फेंक दी जाए तो क्रोध छूमंतर हो जाता है। नगोया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नोबोयुकी का कहना है कि, ‘ज्यादातर मामलों में लोगों को गुस्सा तब आता है, जब वे अपमानित महसूस करते हैं। गुस्से में उठाए गए कदम से रिश्ते खराब होते हैं।’ शोधकर्ताओं का इस संदर्भ में यह भी कहना है कि, ‘पहले उन्हें लग रहा था कि ऐसा करने से कुछ हद तक गुस्से को कम करने में मदद मिलेगी। उन्होंने पाया कि इस सिद्धांत को अपनाने वाले अनेक लोगों का क्रोध आश्चर्यजनक ढंग से कम हो गया था। वैसे भी यदि क्रोध के समय व्यक्ति का ध्यान पढ़ाई अथवा लेखन की ओर मोड़ दिया जाए तो मस्तिष्क क्रोध के भाव से मुड़ कर लेखन और पढ़ने की ओर गतिशील हो जाता है। पढ़ने-लिखने वाला मस्तिष्क क्रोध के आवेग को नियंत्रित कर लेता है।
यह उन दिनों की बात है जब अब्राहम लिंकन न्यू ऑरलिएंस में थे। वे वहां के एक मार्ग से गुजर रहे थे कि उन्होंने एक दिल दहलाने वाले दृश्य को देखा। उन्हांेने देखा कि लोग जंजीरों में जकड़े हुए हब्शियों को कोड़े मार रहे हैं। कोड़ों की मार से हब्शियों की दर्द भरी चीख वहां के पूरे वातावरण को कंपा देती थी। जंजीरों में जकड़े हब्शियों के शरीर से कोड़े पड़ने के कारण रक्त निकल रहा था। तभी अब्राहम की नज़र एक मजबूत और सुंदर हब्शी लड़की पर पड़ी। उस लड़की की बोली लगाने के लिए असंख्य भीड़ वहां जमा थी। बोली लगाने वाले उस हब्शी लड़की को चुटकियां काट रहे थे। असंख्य लोगों की भीड़ से लड़की अपने आप को बचाने का असफल प्रयास कर रही थी। अब्राहम ने वहां उपस्थित विक्रेता से पूछा, ‘यह क्या बदतमीजी है? यह कैसी मानवता है? क्या आप लोग नर पिशाच हैं?’ इस पर विक्रेता बोला, ‘मेरा इसमें कोई दोष नहीं । यहां के नियम ही ऐसे हैं। ये हब्शी लड़की गुलाम है और इसे खरीदने वाले इस बात का पूरी तरह इत्मीनान करना चाहते हैं कि जो सामान वह खरीद रहे हैं उसमें कोई कमी तो नहीं है।’
विक्रेता के जवाब से अब्राहम का खून खौल उठा। वह बोले, ‘यह जीती-जागती मनुष्य है, कोई सामान नहीं है। इसके अंदर भावनाएं, संवेदनाएं और दर्द हैं।’ इस पर विक्रेता हंसता हुआ बोला, ‘जो गुलाम नस्ल में पैदा होता है, उनकी कोई संवेदनाएं इच्छाएं और दर्द नहीं होता। आप अपना काम करिए।’ यह सुनकर अब्राहम के अंदर उन लोगों के प्रति नफरत पैदा हुई। वे क्रोध से उबल पड़े। लेकिन लिंकन ने स्वयं पर नियंत्रण रखा और वहां से निकलते हुए संकल्प किया कि, ‘अगर मुझे कभी इस चीज़ पर चोट करने का मौका मिला, तो ईश्वर की कसम, मैं इसे बहुत कड़ी चोट पहुंचाऊंगा।’ इसके बाद उन्होंने दास प्रथा के घिनौने कृत्य को हटाने के लिए स्वयं को किताबों में झोंक दिया। लिंकन ने स्वयं को शिक्षा के माध्यम से बेहद मजबूत बना लिया और आखिरकर अपने संकल्प को पूरा किया। दास प्रथा को हटाने में उन्हीं का निर्णायक रोल रहा। व्यक्ति यदि अपने क्रोध का प्रबंधन कर ले तो वह नई ऊंचाइयों को छू लेता है।