विपेंद्र कुमार
वोट हथियाने का पुराना तरीका बदल गया है। पहले ठर्रा से काम चल जाता था। अब डिमांड जरा बदल गया है। वोटर ‘सजग’ हो गए हैं। जमाने की उछाल के साथ उनकी चाहत में भी उछाल आया है। नेता जी की मजबूरी बढ़ गई है। अब तो वोट लूटने वाला समय भी न रहा। ‘करमजरु’ शेषन ने ऐसा खेला खेला कि उसी वक्त से वोट के दिन गोली-बंदूक वाला खेला ही खत्म हो गया।
अब तो आईटी का जमाना आ गया है। कम उम्र वाला वोटर सब बहुत हो गये हैं। नेता जी इसे भांप गए हैं। उस दिन पूरब वाले नुक्कड़ पर अपने जवान वोटरों से कह रहे थे, ‘मैं जीता और मेरी पार्टी की सरकार बनी तो सच मानिये ई किताब-कॉपी से पढ़ने-लिखने का झमेला खत्म। मेरे ऊपर भरोसा कीजिए। आप सबके हाथ में लैपटॉप रहेगा। वो भी बिना अधेली खर्च किये। बस सिरिफ बटनवा दबावे, घरी बेलचा को याद रखियेगा। बहुत लोग बहकायेंगे। लेकिन जरिको बहकियेगा नहीं।’
गांव के दूसरे मुहाने पर दूसरका पार्टी वाले नेता जी हाथ जोड़े मंच पर पहुंचे ही थे। तभी एक नौजवान दौड़ा-दौड़ा आया। मंच पर चढ़ गया। नेता जी के कान में कुछ फुसफुसाया। नेताजी कुर्ता की बांह ऊपर करते हुए धीरे से बोले, ‘घबराओ नहीं । हमको मालूम है कौन-सा पासा कहां चलना है।’ फिर जनता की ओर मुखातिब हो गए, ‘सुना है खेलावन बाबू लैपटॉप देने की बात उधर कर रहे थे। लेकिन मेरे बात पर भरोसा कीजिए। आपका बुझावन कभी झूठ भरोसा नहीं दिलाता। जान लीजिए ई जो लैपटॉप है न उसको चलाने के लिए भोजन-पानी का इंतजाम करना पड़ता है। उसके बिना समझिये लैपटॉप बस बक्सा है। जानते है डेटा पैक उसका दाना पानी है। मैं आप सबको लैपटॉप के साथ तीन साल का डेटा पैक भी दिलवाऊंगा।’ तालियों की गरगहाट में नेता जी की आगे की बात सुनाई नहीं दी। वे मुस्कुराते हुए झट से मंच से उतरे। गाड़ी में बैठे। साथ आये मीडिया वाले भी पीछे गाड़ी में लद गए। गाड़ी आगे बढ़ी। नेता जी कहने लगे, ‘देखा न आप लोग। नहला पर दहला किस तरह मारा।’
एक अखबार वाले ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘लेकिन नेता जी आप क्या-क्या बोल गए।’
अरे आप लोग बुड़बक रह गए। सब सही बोले। आम जनता को उसकी भाषा में समझाना पड़ता है न। वोट का खेला है सब। आप लोग नहीं समझियेगा। चलिए शहर चलकर हाई टी हो जाये।’
मीडिया वाले हाई टी का नाम सुनते ही दांत निपोड़ दिये, ‘हां, हां नेता जी। आप बिल्कुल सही कह रहे।’