सहीराम
सांस अटक रही है, सांस घुट रही है, बल्कि अब तो सांस टूटती जा रही है। नहीं, कहीं आग नहीं लगी है और न ही कहीं सिगड़ी जल रही है जनाब कि दम घुट रहा हो, कहीं टैंक नहीं फटा है, कहीं जहरीली गैस लीक नहीं हुई है, कोई औद्योगिक हादसा नहीं हुआ है कि दम घुट रहा हो। कहीं स्मॉग भी नहीं है, कहीं पराली भी नहीं जलायी जा रही है कि दम घुट रहा हो। अब जो सचमुच दोषी हैं और जिन पर दोष डाला जा सकता है, उन पर दोष डालना, सांप की बाम्बी में हाथ डालना है। जरा दोष देकर देखो, पता चल जाएगा। देशद्रोही कहलाओगे। भक्तजन आप पर टूट पड़ेंगे।
बल्कि अब तो ऑटोमोबाइल को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता। देखो आसमान कितना साफ है। लॉकडाउन का यही तो फायदा है। फिर भी सांस अटकती जा रही है, घुटती जा रही है, टूटती जा रही है और ऑक्सीजन कहीं नहीं है। न अस्पतालों में, न उद्योगों में, न बाजार में। आदमी हैं, बीमार हैं, लेकिन ऑक्सीजन नहीं है। वैसे तो पर्याप्त नहीं हैं, पर कहने को अस्पताल भी हैं, लेकिन वहां आॅक्सीजन नहीं है। सरकारी की तो छोड़ो, प्राइवेट अस्पतालों में भी ऑक्सीजन नहीं है। पैसे खर्च करके भी नहीं है। ऑक्सीमीटर तो चलो आप ब्लैक में खरीद लोगे, पर ऑक्सीजन तो कहीं नहीं है।
ऑक्सीजन की लूट है, पर ऑक्सीजन नहीं है। ऑक्सीजन के लिए दंगे हो रहे हैं। कहां तो कायदे से दूसरे दंगे होने चाहिए थे। बेचारे मीडिया ने उसके लिए कितनी मेहनत की थी, चैनलों ने बाकायदा मंच सजाए थे, मुर्गे लड़ाए थे। पर, अब देखो दंगे हो रहे ऑक्सीजन के लिए। बताओ इस देश में धर्म ध्वजा कैसे फहराएगी। ऑक्सीजन के लिए छीन झपट है। यह राज्य उस राज्य पर और वह राज्य इस राज्य पर आरोप लगा रहा है कि हमारे हिस्से की ऑक्सीजन ले गया।
यह आरक्षण का मामला नहीं है। यह धर्म का मामला नहीं है। यह कोई दो राज्यों के बीच जल विवाद भी नहीं है कि वह राज्य इस राज्य पर और यह राज्य, उस राज्य पर यह आरोप लगाए कि देखो वह हमारा पानी ले गया। अब तो झगड़ा ऑक्सीजन का है और ऑक्सीजन कहीं नहीं है।