आलोक पुराणिक
उधर से इधर, इधर से उधर, बिहार की राजनीति देखकर घड़ी का पेंडुलम याद आता है। बिहार में नेताओं के बर्ताव से कारोबारी और विज्ञापन जगत को प्रेरणा मिल सकती है। इतनी आसानी से उधर से उधर सब हो जाता है। कोई तेल कंपनी इश्तिहार बना सकती है, बालों का हमारा तेल लगायें फिर आपके बाल लहरायें ऐसे इधर से उधर, उधर से इधर, जैसे फलां नेता लहराते हैं उधर से इधर, बिहार में।
बिहार के नेता जैसा आचरण कर रहे हैं, वह कारोबार के लिए तो ठीक है, पर दुआ करें कि यह आचरण कहीं परिवार और सामाजिक रिश्तों में न उतर जाये। सामाजिक रिश्ते अगर राजनीति रिश्तों के लेवल पर आ जायें, तो समझें कि समाज के डूबने का वक्त आ गया है।
बिहार ही नहीं, मुल्क की राजनीति बहुत बड़ा कारोबार हो रही है-कारोबार ए कामेडी। कौन कहां कूद रहा है, कौन कहां उछल रहा है और क्यों उछल रहा है, यह कुछ भी पता न चलता। किसका कालोबोरेशन किसके साथ है, कुछ न पता चलता। दुआ कीजिये, यह कनफ्यूजन बिजनेस में न फैले। धंधे में सब साफ पता होता कि किस कंपनी का कालोबोरेशन किसके साथ है। ममता बनर्जी की पार्टी राहुल की पार्टी के साथ है, ऊपर से। अंदर से हाल यह है बंगाल में राहुल गांधी को अपने हिसाब से घूमने चलने की इजाजत नहीं है। बंगाल में कांग्रेस लेफ्ट के साथ खड़ी है, केरल में मुकाबला लेफ्ट बनाम कांग्रेस का है। महाराष्ट्र में सारे दल पहलवानी कर रहे हैं कि वो ही सबसे बड़े पहलवान हैं। उद्धव ठाकरे कह रहे हैं कि यहां के बॉस हम, कांग्रेस जीरो है। कांग्रेस का कहना है कि हम तो सबसे पुराने। गैंगस्टर, डाकू वगैरहों में बहुत साफ होता है कि कौन-सा इलाका किसका होता है। वैसी मेच्योरिटी नेताओं में नहीं आयी। एक-दूसरे के इलाकों में जाकर धंधा करने लग जाते हैं। राहुल ममता बनर्जी के इलाके में पहुंच जाते हैं। ममता राहुल का धंधा रुकवा देती हैं अपने इलाके में। आफतें बहुत हैं। कांग्रेस है तो बहुत ही पुरानी कारोबारी पार्टी पॉलिटिक्स के धंधे की, पर नये-नये खिलाड़ी इस फील्ड में कांग्रेस को परेशान किये हुए हैं। आप ने पंजाब का फुल इलाका अपना घोषित कर दिया है-कांग्रेस की एंट्री बैन कर दी।
कुछ-कुछ फिल्म इंडस्ट्री का सीन दिख रहा है, नयी अभिनेत्रियां ही टकाटक तेल, साबुन, शैंपू बेचे जा रही हैं, पुरानी अभिनेत्रियों को कुछ भी बेचने को न मिलता। कैटरीना कैफ तेल-साबुन बेच रही हैं, वहीदा रहमान से कोई चाय भी न बिकवाता। कांग्रेस की हालत पॉलिटिक्स में वहीदा रहमान वाली हो गयी है, पुरानी है, पुराना असर है पर नये वाले चलने न दे रहे।