राजेंद्र राजन
लोकसभा हो या विधानसभा, फिल्मी सितारों की लोकप्रियता को बैसाखी बनाकर चुनाव जीतने की परम्परा नयी नहीं है। राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, गोविन्दा से लेकर हेमा मालिनी जैसे नामचीन फिल्मी कलाकारों की लम्बी फेहरिस्त है जिन्हें राजनीतिक दलों ने सिर-आंखों पर बिठाया। कुछ जीते तो कुछ हारे। मतदाताओं को रिझाने, फिल्मी हस्तियों से उनके भावनात्मक जुड़ाव को भुनाने को सभी राजनीतिक दल तत्पर रहते हैं। अपनी पार्टी को विजयी बनाने, सत्ता हासिल करने की जंग में उम्मीदवार का अनुभव, योग्यता, जनसमस्याओं के प्रति संवेदनशीलता खास मायने नहीं रखते।
बहरहाल, जिस फिल्म अभिनेत्री की इन दिनों हिमाचल और देशभर में चर्चा है, वे हैं कंगना रणौत। जिन्हें भाजपा ने मंडी से लोकसभा चुनाव के लिये उम्मीदवारी सौंपी है। लम्बे वक्त से विवादों और कंगना का गहरा नाता रहा है। वे निश्चित रूप से एक कामयाब एक्ट्रेस हैं। अपने अभिनय के जरिये करोड़ों सिने प्रेमियों के दिलों पर राज करती हैं। लेकिन अनेक नेताओं की तरह कई बार बोलने में अतिरेक की प्रवृत्ति रही है। वे अपने उस बयान को लेकर ट्रोल भी हुई थीं जिसमें उन्होंने कहा था कि 2014 के बाद ही देश का सही मायने में विकास हुआ है। अकसर नेताओं द्वारा सियासी फायदे यानी चुनावी टिकट हासिल करने के लिये ऐसी बयानबाजी होती रही है। विगत में कंगना रणौत जब पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे से भिड़ गयीं तो उनके पक्ष या विपक्ष में देशभर में जन आंदोलन छिड़ गये थे। उन्हें मोदी सरकार ने सुरक्षा प्रदान की। यह नैरेटिव उन्हीं दिनों रचा जा चुका था जब वे दक्षिणपंथी विचारधारा को आत्मसात करने की तैयारी कर रही थीं। अपने सियासी ‘प्रबन्धन’ में उन्हें एक तरह से सफल ही कहा जा सकता है। हालिया प्रकरण है, टिकट घोषणा के पहले ही रोज़ कंगना का कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत से विवाद हो गया।
दरअसल, अभद्र भाषा के प्रयोग में विपक्षी दलों के कुछ नेता भी पीछे नहीं हैं। इसका ज्वलन्त उदाहरण कंगना पर की गयी वह टिप्पणी है जिसमें मंडी का भाव पूछा गया था। चुनाव आयोग लाख दावे करे, लेकिन वह नेताओं के तीखे, आपत्तिजनक बयानों का कड़ा संज्ञान लेने में प्रो एक्टिव मोड में नहीं माना जा सकता है। लोकसभा चुनाव जीतने की रणनीति की पृष्ठभूमि में भाजपा की निगाह महिला मतदाताओं पर खासतौर पर टिकी है क्योंिक वह 400 का आंकड़ा पार करने के लिए अपनी कमान में मौजूद सभी तीरों का प्रयोग कर लेना चाहती है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में महिला मतदाताओं की मौजूदगी काफी उत्साहवर्धक थी।
विगत 5 सालों में सम्पन्न 23 राज्यों के विधानसभा चुनावों में से 18 में महिला मतदाता पुरुषों से आगे थीं। कांग्रेस या विपक्षी दल इस लोकसभा चुनाव में महिलाओं को टिकट देने में संकीर्णता की शिकार हैं तो इस मामले में भाजपा की दरियादिली कही जा सकती है। कंगना रणौत का चयन भी इसी रणनीति का हिस्सा है। अपने तेवरों के लिये वे चर्चित रही है। अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत कंगना ने 18 साल की उम्र में ‘गैंगस्टर’ से की थी। रानी झांसी का किरदार ‘मणिकर्णिका’ में अभिनीत किया तो जयललिता की बायोपिक में भी सराही गयीं। ‘एमरजेंसी’ फिल्म में वे इंदिरा गांधी की भूमिका में नज़र आयेंगी। लब्बोलुआब यह कि सशक्त महिला प्रधान फिल्मों में वे जिन जननायिकाओं की भूमिकाओं में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकी हैं, उनकी बदौलत वे मंडी सीट पर आम लोगों से खुद को जुड़ा हुआ देखना चाहती हैं। पर यह कांटों भरी डगर है। सिनेमा और राजनीति की कोई जुगलबन्दी नहीं है।
दरअसल, हिमाचल में कांग्रेस सरकार व पार्टी में जारी उठापठक के चलते कंगना अपनी सफलता को लेकर उम्मीद जता रही हैं। जिसकी बानगी उनके मुकाबले उतरी कांग्रेसी प्रत्याशी की बेमन से चुनाव लड़ने की कवायद में नजर आती है। बहरहाल, जन आकांक्षाओं, जन अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिये कंगना को एक ‘मैच्योर’ राजनेता की छवि को अर्जित करना होगा। एक चैनल को दिये गये साक्षात्कार में कंगना ने कहा है कि तत्कालीन कुछ नेताओं ने सुभाष चंद्र बोस को 1945 में गायब करवा दिया था। यह भी कि आईएनए के फौजियों व स्वतन्त्रता सेनानियों को भूखे रहकर जान गंवानी पड़ी थी। दरअसल, बयान देने से पहले किसी भी नेता के पास अच्छे सलाहकार होने जरूरी हैं। इतिहास के तथ्यों को कभी बदला नहीं जा सकता। यह प्रश्न भी विचारणीय है कि फिल्मों से जितने भी सितारे राजनीति में जीतकर संसद में पहुंचे हैं उनकी विकास करने व जनसमस्याओं के निवारण में कैसी भूमिका रही है। संसद में उन्होंने क्या-क्या मुद्दे उठाए? विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने में ज्यादातर का योगदान खास तो नहीं रहा है।
कंगना की दावेदारी को लेकर सार्वजनिक विमर्श में विपक्षी दल सवाल उठाते रहे हैं कि यदि कंगना लोकसभा सीट पर चुनाव जीतती भी हैं तो क्या वे मंडी का जनप्रतिनिधि होने के दायित्व को निभा पाएंगी? वे स्थानीय जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के बजाय कहीं मायानगरी के सम्मोहन में बंधकर तो नहीं रह जाएंगी?