राजशेखर चौबे
क्या ऐसा कोई है जो अपनी प्रशंसा सुनकर प्रसन्न न होता हो और क्या कोई ऐसा है, जो अच्छे काम का श्रेय न लेना चाहे। कोरोना की दूसरी लहर में सभी राज्यों को ऑक्सीजन की समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करना, देश के सभी वयस्कों को निःशुल्क टीकाकरण का अधिकार दिलवाना और कोविड-19 के कारण जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवज़ा दिलवाना। इन सबका श्रेय आप किसे देंगे? इन सबका श्रेय लेने के लिए लोग फ़ोटू और फेविकॉल लेकर जगह ढूंढ़ रहे हैं ताकि अपनी फ़ोटू वहां चिपका सकें, लेकिन ये पब्लिक है ये सब जानती है। नोटबंदी, तालाबंदी एक दुःस्वप्न की तरह है और इसका श्रेय कोई भी लेना नहीं चाहता।
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने कहर बरपा दिया है और लगभग सभी ने अपनों को खोया है और उसकी भरपाई संभव नहीं है फिर भी उच्चतम न्यायालय ने कोरोना से मृतक के परिजनों को सरकार द्वारा मुआवज़ा देने का निर्देश देकर उनके जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया है। कोविड से मृतकों की संख्या, आधिकारिक संख्या से काफी अधिक है। यह बात उतनी ही सच है जितनी यह कि हमारे अच्छे दिन नहीं आए हैं; विदेशों से काला धन वापस नहीं आया है; महंगाई, बेरोजगारी बढ़ी है; पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
अब कुछ काबिल अधिकारीगण और राज्य सरकारें अपनी पीठ थपथपा सकती हैं कि उन्होंने कोरोना से मृतकों की संख्या छिपाकर शासन के लाखों रुपये बचा लिए हैं। अचानक घोषणा होती है, ‘कोरोना से मरने वालों के परिवार वालों को नामी अरबपति अधिवक्ता पर लगाए गए जुर्माने के बराबर यानी एक रुपल्ली मुआवज़ा दिया जाएगा।’ सभी लोग आश्चर्यचकित हैं और इसका कारण ढूंढ़ा जा रहा है। एक खोजी पत्रकार ने इसका कारण ढूंढ़ा और बताया, ‘प्रशासन को यह सलाह उसी काबिल अधिकारी ने दी है, जिसने पहले यह सलाह दी थी कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें डेली बेसिस यानी रोजाना बढ़ाई जानी चाहिए।’ उनका कहना है कि तिल-तिल कर मरने में दर्द नहीं होता है। उनका दृढ़ विश्वास था कि इस उपाय से जनता कभी भी आक्रोशित नहीं होगी और वे गलत नहीं थे, परन्तु इस बार उनकी दाल गली नहीं और विरोध प्रदर्शन होने लगा। सभी शहरों और गांवों में चीख-पुकार मच गई। लोग जिला मुख्यालयों में चीख-चीख कर नारा लगा रहे थे, ‘ये मुआवज़ा नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।’ मैं भी भीड़ के साथ ‘ये मुआवजा नहीं चलेगा, नहीं चलेगा’ नारा लगाने लगा।
तभी मेरी बेटी ने मुझे नींद से झकझोर कर उठा दिया। काश! ऐसा सपना कभी सच न हो। ईश्वर न करे कि मृतकों के परिवार के लिए इस तरह का कोई मुआवज़ा निर्धारित किया जाए अन्यथा मुआवज़ा को जुर्माना ही समझा जाएगा।