कावेरी ने जब सुना कि बेटी इस बार होली पर आ रही है तो उसकी खुशियों की सीमा ही न थी। लग गयी उसकी पसन्द के पकवान बनाने में। कावेरी की पड़ोसी सखियां भी जानती थीं कि कान्ति की सास जबसे बीमार पड़ी, तभी से वह मायके नहीं आ पायी। वह हमेशा अपनी सासू-मां की तारीफ करते न थकती। कावेरी भी खुश होती कि समधन अच्छी है इसीलिए उसकी इकलौती बेटी ससुराल में सुख से है। परंतु समधन की बीमारी के कारण जब बेटी का आना-जाना कम हुआ तो उसे वह मुसीबत लगने लगी। मन ही मन वह सोचती कि बुढ़िया मर ही जाये तो बेटी को उसकी तीमारदारी से छुटकारा मिले।
कान्ति आई तो घर में रौनक आ गयी। पर मां ने महसूस किया कि कान्ति अब पहले-सी नहीं रही। उसे बार-बार मोबाइल स्क्रीन को चेक करते देख कावेरी ने टोकते हुए कहा, ‘कान्ति! ये मोबाइल में क्या रखा है? बेटा! आई है तो थोड़ा इधर भी मन लगा न! देख मैंने तेरे लिए क्या-क्या बनाया है!’ ‘मां! आ तो गई पर अब सासू-मां की बहुत फिकर हो रही है।’ ‘जाने दे न बेटा! किस बात की फिकर? दामाद जी हैं न उनके पास!’ ‘मां! कई चीजें होती हैं जो हम औरतें ही एक-दूसरे का समझ पाती हैं सासू-मां की जिद थी कि मैं आपसे मिलूं इसीलिए आ गई पर अब उनकी फिकर हो रही है।’ ‘अच्छा! कभी मेरी भी फिकर कर लिया कर!’
कावेरी ने कुछ रूठते हुए कहा तो कान्ति झट से मां से चिपक गयी फिर प्यार से समझाते हुए बोली, ‘मां! आपकी भी फिकर थी और मन यहीं लगा था यही समझकर तो सासू-मां ने आज इनकी छुट्टी करवाई और मुझे जिद करके यहां भेजा। बड़ी खुशनसीब हूं मैं, जो दो-दो मांओं की छत्र-छांव है मेरे सिर पर। बस ये छांव हमेशा बनी रहे।’ कावेरी देख रही थी बेटी को और समझ रही थी उसके मनोभावों को। कहते हैं बेटी पराई हो जाती है ब्याह कर। पराई कहां हो पाती हैं बेटियां! सारे पकवानों को अच्छे से पैक कर कावेरी झट से तैयार होकर बोली, ‘चल बेटा ये होली तेरे ससुराल में ही मनायेंगे! तेरी दोनों मांएं तेरे साथ होंगी।’ ‘क्या! आप मेरे साथ चलेंगी!’ कान्ति ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, फिर अगले ही पल उदास होकर बोली ‘पर आप खाना-पानी के बगैर वहां कैसे रह पायेंगी, जाने दीजिए मां!’ ‘खाना-पानी ना है तेरे ससुराल में क्या? जो तुम सब खाओगे वही खिला देना मुझे भी!’
कावेरी ने मुस्कराते हुए कहा तो कान्ति ने मारे खुशी के मां को अपनी बांहों में भरकर झकझोर दिया। अपने बच्चों को बेफिक्री से खुशी-खुशी त्योहार मनाते देख दोनों समधन बहुत खुश हुईं।
साभार : एक नयी सोच डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम