जी. पार्थसारथी
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा रखी गई कड़ी शर्तों और सरकारी खर्च में भारी कटौती के बावजूद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था आज रसातल में बनी हुई है। ऐसे में सतत आर्थिक विकास की गुंजाइश कम ही बचती है। मानो आर्थिक संकट ही काफी न था, महंगाई की ऊंची दर ने आम आदमी की जिंदगी को दूभर बना रखा है। विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट में कहा गया ‘अपने न्यूनतम विदेशी मुद्रा भंडार के साथ पाकिस्तान की मौजूदा अर्थव्यवस्था भारी दबाव में है, पाकिस्तानी मुद्रा का लगातार अवमूल्यन हो रहा है और महंगाई दर बहुत अधिक है। बढ़ती मुद्रास्फीति, ऊर्जा की ऊंची कीमत के बीच वर्तमान वित्त वर्ष में पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि दर 0.4 फीसदी अनुमानित है।’ पिछले कई दशकों में कृषि आमदनी में पहली बार सिकुड़न आई है, यही हाल उद्योग जगत का है, जिससे आपूर्ति शृंखला में बाधा पड़ रही है। अतः पाकिस्तान पूर्व की भांति खैरात पर पलने वाला मुल्क बना रहेगा, जहां तक नज़र जाती है, वह विदेशी मदद पर निर्भर है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से हुए समझौते को अंतिम रूप से सिरे चढ़ जाने और सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात से द्विपक्षीय सहायता मिलने के बावजूद पाकिस्तान को मौजूदा वित्तीय संकट से उबरने के लिए अपने विदेशी मुद्रा भंडार का कड़ाई से प्रबंधन करने और आर्थिक मितव्ययिता बरतने की जरूरत पड़ रही है। जहां पाकिस्तान के योजना मंत्री आसिफ इकबाल इस साल आर्थिक वृद्धि दर 3.5 फीसदी रहने का अनुमान बता रहे हैं वहीं दुनिया इस आशावादिता से सहमत नहीं है। पाकिस्तान अनिश्चितकाल के लिए अंतर्राष्ट्रीय खैरात का कटोरा बना रहेगा, जिसका गुजारा विदेशी मदद बिना नहीं हो सकता। इसी बीच, पाकिस्तानी रुपये को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा में बदलने में मददगार होने की बजाय उसके सदाबहार दोस्त चीन ने भी अपनी थैली का मुंह कस रखा है। चीन का ध्यान अधिकांशतः ‘बेल्ट एंड रोड’ परियोजना पर केंद्रित है। सवाल पैदा होता है कि क्या पाकिस्तान श्रीलंकाई राष्ट्रपति विक्रमसिंघे की नकल कर पाएगा जिन्होंने देश के सामने मुंह बाए खड़ी दिवालिया जैसी स्थिति से उबरने में चतुर कूटनीतिक और आर्थिक नीतियों के मामले में विलक्षण सफलता हासिल की है।
इन आर्थिक दबावों के बीच पाकिस्तान का ‘परमाणु संपन्न नेतृत्व’ के पास अपनी जनता को अच्छी खबर देने के नाम पर ‘परमाणु निर्वाण’ की ओर कूच है। पाकिस्तान के पहले ‘परमाणु बम’ जनक अब्दुल कादिर खान थे, जिनकी मृत्यु अक्तूबर, 2021 में हुई। कादिर के खाते में परमाणु तकनीक में अनुसंधान एवं विकास में संलग्न यूरोपियन संबंधता वाली डच कंपनी की संदिग्ध नौकरी है, वहां हाई स्पीड सैंट्रीफ्यूज के साथ संवर्धित यूरेनियम तैयार किया जाता था। अब्दुल कादिर 1971 में पाकिस्तान को मिली शिकस्त से काफी उद्वेलित थे, जिसका हवाला अक्सर दिया करते थे। उन्होंने पाकिस्तानी परमाणु बम बनाने में प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को यूरेनियम संवर्धन के अपने अनुभवों से अर्जित जानकारी की तफ्सील मुहैया करवा दी। जल्द ही उन्हें इस्लामाबाद के निकट कठुआ स्थित पाकिस्तान यूरेनियम संवर्धन परियोजना का मुखिया बनाया गया। जहां उन्होंने यूरेनियम संवर्धन के लिए जरूरी सैंट्रीफ्यूज अवयव जुटाकर काम को अंजाम दिया।
चीन के पास चूंकि संवर्धित यूरेनियम आधारित परमाणु बम बनाने की तकनीक थी, लिहाजा चीन से पाकिस्तान को देर-सवेर परमाणु अस्त्र बनाने का डिजाइन मिलना ही था। इसके बाद पाकिस्तान अपना परमाणु बना पाया, जिसका परीक्षण भारत द्वारा 1998 में पोखरण में प्लूटोनियम आधारित परमाणु परीक्षण किए जाने के फौरन बाद किया गया। यह वक्त की बात थी कि अब्दुल कादिर को भ्रष्टाचार करने और भारी रकम के बदले अन्य परमाणु बम का डिज़ाइन मुहैया करवाने के आरोप में बेदखल कर दिया गया। बेशक कादिर पर वैश्विक परमाणु अस्त्र डिजाइन समग्लर होने के अनेकानेक आरोप लगे हुए थे तथापि कादिर अक्तूबर, 2021 में अपनी मौत के बाद भी एक राष्ट्रीय नायक बने रहे। कहा जाता है कुछ इस्लामिक देशों की यात्रा के दौरान उन्होंने डिजाइन बेचा था। जाहिर है अमेरिका जैसे मुल्क इस कृत्य से खुश नहीं थे।
कादिर के बाद पाकिस्तान परमाणु अस्त्र कार्यक्रम का मुखिया ले. जनरल खालिद किदवई को बनाया गया, जो कि तोपखाने के उच्च अलंकृत अधिकारी थे और 1971 की बांग्लादेश लड़ाई के बाद बतौर युद्धबंदी भारत की जेलों में रह चुके थे। उनके पाकिस्तान परमाणु प्राधिकरण का मुखिया बनने के बाद, 1998 के परमाणु परीक्षण उपरांत, पाकिस्तान के परमाणु सिद्धांत ने शक्ल अख्तियार की। ‘किदवई सिद्धांत’ बताता है किन परिस्थितियों में पाकिस्तान परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा। वे लिखते हैं कि यदि भारत हमला करे और पाकिस्तान के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेता है या थल-वायुसेना के बड़े अंश को नेस्तनाबूद कर दे तो पाकिस्तान को परमाणु अस्त्र चलाने पर मजबूर होना पड़ेगा। एक अन्य उपाय के तौर पर, किदवई ने आगे जोड़ा कि पाकिस्तान तब भी ऐसा करेगा यदि भारत पाकिस्तान को आर्थिक रूप से तबाह करने की कोशिश करे या बड़े पैमाने पर गड़बड़ करवाकर आंतरिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करे।
‘किदवई सिद्धांत’ आज भी पाकिस्तान की परमाणु महत्वाकांक्षा और नीतियों का चेहरा है। तीसरे देशों के संगठनों द्वारा अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के पास आज की तारीख में लगभग 170 परमाणु हथियार हैं जबकि भारत के पास 164 बताए जाते हैं। हालांकि इन आंकड़ों की सत्यता को लेकर कोई शंका हो सकती है। पाकिस्तान के पास चीन प्रदत्त नाना मिसाइलें हैं जैसे कि शाहीन 1 (रेंज 750-900 किमी.) शाहीन-3 (रेंज 2750 किमी.)। पाकिस्तान के परमाणु हथियार और मिसाइलें चीनी डिजाइन की प्रतिकृति हैं। हालांकि, ठीक इसी समय पाकिस्तान को यह भी मालूम है कि परमाणु युद्ध का अर्थ है स्व-विनाश। भारत का रुख तार्किक रूप से दो सीमाओं पर चुनौतियों के मद्देनजर अपनी सामर्थ्य बनाने का प्रयास है। यूं पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से चीन पाकिस्तान की परमाणु बम और मिसाइल सामर्थ्य में इजाफा करने के लिए सामग्री और बनाने की विधि मुहैया करवाता आया है। भारत के लिए नाभिकीय अस्त्र दागने की अपनी क्षमता को सुदृढ़ करना समझदारी होगी। इसके लिए स्वदेशी तकनीक आधारित कम-से-कम तीन परमाणु पनडुब्बियां बनाने की जरूरत पड़ेगी, ताकि भारत के नाभिकीय अस्त्रों और इनके भय को लेकर शक की कोई गुंजाइश न रहे।
उक्त सुरक्षा परिदृश्य के बीच, राजनीतिक रूप से अस्थिर पाकिस्तान में इस साल के अंत में आम चुनाव होंगे। लेकिन इनके परिणामों के बाद पाकिस्तान की सोच में नई राजनयिक पहल हेतु गंभीर बदलाव आएगा, इसकी संभावना नगण्य है। इधर भारत में भी आगामी आम चुनावों को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं। जहां वर्तमान में राजनीतिक स्तर पर वार्ता की कोई संभावना नहीं है तथापि पर्दे के पीछे संवाद जारी रखना फायदेमंद रहेगा, जिसमें पाकिस्तानी सेना की सहमति शामिल है। पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर और इमरान खान के बीच दुश्मनी गहरा गई है और इसके पीछे कारण भी है क्योंकि प्रधानमंत्री रहते हुए इमरान खान ने जनरल मुनीर को आईएसआई प्रमुख के प्रतिष्ठित पद से अचानक हटा दिया था। बाइडेन प्रशासन को भी इमरान खान पसंद नहीं हैं। इमरान खान को गद्दी से हटाने में खासी भूमिका रखने वाले बाजवा की बाइडेन से गहरी छनती रही है। जाहिर है मौजूदा सेनाध्यक्ष असीम मुनीर इमरान खान से नरमी से पेश नहीं आने वाले।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।