शमीम शर्मा
एक लड़की अपने पुराने सहपाठी से मिली तो देखते ही बोली- आंखों में चुभन, दिल में जलन, सांसें भी थमी-थमी सी हैं और हर तरफ धुआं ही धुआं सा…। लड़के ने पूछा अभी तक आप हमारे इश्क में हैं? वो शर्माती सी बोली- नहीं हम दिल्ली में हैं। इस पर एक मनचले ने जनहित में जारी किया कि भले ही भाड़ में जाओ पर दिल्ली न जाओ। बीड़ी, सिगरेट, हुक्का आदि का धुआं भी दिल्ली के धुएं के आगे पानी भरता नज़र आ रहा है। दिल्ली का आसमान भी अपनी सुरक्षा की दुहाई में दहाड़ता प्रतीत होता है।
फेफड़े फेल होने की हालत में डॉक्टर बीड़ी-सिगरेट छोड़ने की हिदायत देते हैं पर अब वे कहते होंगे- दिल्ली छोड़ो। मुझे भारत छोड़ो आंदोलन याद आ रहा है। जैसे अंग्रेजों को अन्ततः भारत छोड़कर जाना पड़ा था, वैसे ही समय रहते दिल्लीवासियों को कोई नया ठिकाना ढूंढ़ना होगा। सब जानते हैं यह कहना आसान है, करने में नानी याद आ जायेगी। स्कूलों में छुट्टियां होने पर एक बच्चा अपने पापा से बोला- पापा धुएं की इन छुट्टियों में हम घूमने कहां जायेंगे? पापा बोले- जहां धुंध भी न हो, धुआं भी न हो…। बच्चा सोच में पड़ गया कि ऐसी कौन-सी जगह है? फिर उसे लगा कि पापा किसी और लोक की बात तो नहीं कर रहे हैं।
कुछ तो धुएं ने और कुछ धुंध ने दिल्ली की चमक पर चादर डाल दी है। दिल्ली की दो वक्त की रोटी में धुआं घुल गया है। अब तो चाय के कप में से उठते धुएं से भी डर लगता है। दिल्ली के लोगों के संबंधों पर बुरी हवा ने ब्रेक लगा दिये हैं। एक-दूसरे के घर न आने-जाने का एक और ताजा बहाना मिल गया। एक शे’र याद आ रहा है :-
ये शहर भी क्या शहर है,
हवाओं में धुआं फिजाओं में ज़हर है।
अब दिल्ली नंबर वन हो गई है। दिल्ली अब दिलवालों की राजधानी नहीं है बल्कि प्रदूषण राजधानी बन गई है। एक्यूआई पहले कभी सुना ही नहीं था। अब बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। और इस एक्यूआई में दिल्ली टॉपमटॉप। यानी दिल्ली की आबो-हवा सबसे ज्यादा दमघोंटू हो चुकी है। अंत में पटाखे और पराली के जहरीले धुएं पर आकर सुई टिक जाती है पर हम अपने वाहनों के धुएं को कभी गंभीरता से नहीं देखते।
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एक बर की बात है अक अपणे छोरे नत्थू तै बीड़ी पीते देख उसका बाब्बू बोल्या- हां रै तू बीड़ी पीण लाग्या? नत्थू अपणी बीड़ी कमीज मैं छिपाते होये बोल्या- ना बाब्बू। बाब्बू बोल्या- तेरी कमीज मैं तै धुआं क्यूंकर? नत्थू बोल्या- थम बात ए दिल जलाण वाली करो हो।