सेवाराम त्रिपाठी
समय के साथ हर चीज़ बदलती रहती है। क्या परिवार, क्या समाज, क्या देश और क्या दुनिया। सत्य, अहिंसा, शांति-सद्भाव-सहयोग और भाईचारा भी। बदले हुए समय में सांस्थानिक पढ़ाई-लिखाई उसी को प्राप्त होगी जो संपन्न और सुविधाओं का गणित साधने में सक्षम होगा। कई वोट कमाऊ सेलेब्रिटी योजनाएं यहां सरकार द्वारा क्लिक कर दी गई हैं। बिजली के कितने ट्रांसफार्मर कितने महीनों से जल चुके हैं। फसलें सूख गई हैं लेकिन नारों, वादों के लोक में उनको ठीक करवाने की कोई स्पष्ट योजना- परियोजना नहीं है।
लाख टूट-फूट के बावजूद सामाजिकता का उत्सव परिवार और पारिवारिकता में ही संभव हो सकता है। लेकिन उसे ही सिकोड़ा और समेटा जा रहा है। शहरों की तुलना में गांवों में शहरों-कस्बों की तरह दबा ढंका मामला नहीं होता है। न कुछ छिपाना है और न गुप्त रखना है। गांवों, कस्बों के जीवन में जाति, वंश, परिवार, धार्मिकता, परंपरा की रीतियां, नीतियां और सामंती मानसिकता की गूंजें-अनुगूंजें बहुत ज्यादा हैं। अब सब कुछ सुविधा के खूंटे में बंधा हुआ दिखाया जाता है।
जीवन के अंदरूनी मुलम्मे निरंतर गायब होते जा रहे हैं। हम अपनी प्रतिष्ठा और स्वार्थों की खोल में छिप कर भले मानुष होने के तमगे उगा रहे हैं। बार-बार सोचता हूं कि परिवार हमें जोड़ते हैं, संस्कारवान, आचारणवान और मज़बूत बनाते हैं। दुनिया से संबद्ध करते हैं। मुश्किल वक्त में परिवार संबल प्रदान करते हैं। मेरा एक परिचित है। उसका भाई गलत संगत में फंस कर नौकरीपेशा होते हुए भी अपनी जमापूंजी गंवा बैठा। घर से निर्लिप्त हो गया। सभी से अपने संबंध स्थगित कर लिए,उस वक्त परिवार खड़ा हुआ। उसके भाई ने उसकी ख़ोज ख़बर ली। हर तरह से मदद दी और हौसला अफजाई की। आज वह असामान्य होते हुए भी किसी तरह बचा हुआ है। परिवार की एकता हमारी बहुत बड़ी ताक़त होती है। रहीम का एक दोहा याद आ रहा है :- रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार। रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार। परिवार हमारे साथ हो तो हम हर प्रकार की मुसीबत से लोहा ले सकते हैं।
संयुक्त परिवारों के तो अब अवशेष या खंडहर भर बचे हैं। एकल परिवारों में ही अब जान बाकी है। लेकिन वहां भी घमासान जारी है। वे इंटरनेट की कृपा से आभासी संसार में ढल चुके हैं। आज समाज के क्रियाकलापों में शामिल होता हूं व विशाल पैमाने पर सोचता हूं तो ऐसा लगता है कि यह हमारा परिवार है।
साभार : पहली बार डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम