ईडी के छापों को लेकर चाहे उसे कितनी ही तोहमतें मिल रही हों जी, पर आखिरकार उसे पैसों की ढेरी मिल ही गयी। दिल्ली-विल्ली में तो नहीं मिली। वहां तो ज्यादातर कागज ही मिलते हैं कि यहां पैसा लगा रखा है, वहां पैसा लगा रखा है। ज्यादा से ज्यादा कंप्यूटर या लैपटॉप मिल जाएंगे जिनमें पैसों का हिसाब दर्ज होता होगा। पैसे न मिलते। दिवंगत सुखरामजी के यहां बोरियों और बिस्तरों में पैसे मिलने के बाद लगता है, दिल्लीवाले सब सयाने हो गए। सो ईडी को पैसों की वह ढेरी कोलकाता जाकर मिली, ममता दीदी के मंत्री पार्थ चटर्जी के यहां, जिसके बारे में एक फिल्मी गाने में यह कहा गया है कि क्या पैसा-पैसा करती है, पैसों की लगा दूं ढेरी। खैर, ममता दीदी के इस मंत्री ने ऐसा बोला नहीं होगा। वैसे भी अभी तक भाजपा वाले यही आरोप लगाते रहे थे कि ममता दीदी के लोग सिंडिकेट चलाते हैं। लेकिन यह सिंडिकेट का माल नहीं निकला जी। सिंडिकेट में इतना माल कहां मिलता होगा। वहां तो जो थोड़ा-बहुत मिलता होगा, उसकी तुरंत ही छीन-झपट हो जाती होगी। व्यक्तिगत उद्यम के बिना पैसे की ऐसी ढेरियां कहां लगती होंगी। अपना हाथ, जगन्नाथ।
अभी तक लोगों को लग रहा था कि ममता दीदी तो बस कभी यह तो कभी वह मोर्चा ही बनाने में ही लगी रहती हैं। उन्हें क्या पता था कि उनके मंत्री माल बनाने में लगे हैं। अभी तक लोगों को लग रहा था कि ममता दीदी तो बस अपने राज्यपाल से झगड़ा करने में ही लगी रहती हैं, उन्हें क्या पता था कि उनके मंत्री वैसे ही नोट झाड़ने में लगे हैं, जैसे पेड़ों से पत्ते झाड़े जाते हैं। पैसों की ऐसी ढेरियां देखकर कई बार सचमुच ही भरोसा होने लगता है कि पैसे पेड़ों पर ही लगते होंगे। लेकिन उन्हें झाड़ने के लिए मंत्री होना जरूरी होता है। खैर, ममता दीदी के राज्यपाल को जबसे भाजपा वालों ने उप-राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है, तब से ममता दीदी को उन पर ऐसा लाड़ आया है कि उन्होंने कांग्रेस वालों को हड़का दिया है कि मैं तुम्हारे उम्मीदवार को समर्थन क्यों दूं। तय करते हुए तुमने मुझे पूछा था क्या। अब हो सकता है रक्षाबंधन पर वे धनखड़जी को राखी भी बांध दें।
पर जी, बताते हैं कि बंगाल का यह कोई नया-नवेला घोटाला नहीं है। शारदा-नारदा भी वहां बहुत हुआ है। इसका फायदा भाजपा वालों को यह हुआ कि शारदा-नारदा में जो भी लोग शामिल थे, उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करने में उन्हें आसानी हो गयी। हो सकता है अगले चुनाव तक पार्थ चटर्जी भी भाजपा में चले जाएं। भाजपा वालों के लिए उन्हें लाना आसान हो गया है। खैर जी, यह भी शिक्षक भर्ती घोटाला ही निकला। इससे यह साबित हुआ कि शिक्षक भर्ती घोटाले सिर्फ एग्रीकल्चर वाले हरियाणा में ही नहीं होते, कल्चर वाले बंगाल में भी होते हैं।