के.के. तलवार
पिछले कुछ समय से अपेक्षाकृत कम उम्र वालों में अचानक मौत या हृदयाघात के मामलों में उछाल देखने को मिला है, इनमें कुछ प्रसिद्ध हस्तियां भी शामिल हैं। इन प्रसंगों से संभावित कारणों और रोकथाम उपायों को लेकर विमर्श शुरू हुआ। एक नजरिया कहता है कि विश्वभर में इस किस्म के मामले संभवत: कोविड-19 महामारी के बाद अधिक घटित हो रहे हैं।
भारत में कुल हृदयाघात में लगभग 20 फीसदी मामले 40 साल से कम उम्र वालों के हैं जबकि पश्चिमी जगत में यह वर्ग 5 प्रतिशत है। अचानक मृत्यु का सबसे आम कारण है माइयोकार्डियल इन्फ्रक्शन/हार्ट अटैक। युवाओं में हृदयाघात के लिए धूम्रपान सबसे अधिक जोखिम पैदा करने वाला माना जाता है। खतरे के अन्य अवयवों में अत्यधिक शराब सेवन, मधुमेह-रक्तचाप-कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर, नशाखोरी और जंक फूड का ज्यादा उपयोग और महिलाओं के मामले में गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन है।
ऐसी चिंताए भी जताई गई हैं कि क्या इस उछाल के पीछे कोविड संक्रमण या इसकी वैक्सीन भी एक कारक है। कोविड वैक्सीन को दोषी ठहराने का कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है। हां, कुछ प्रकाशित डाटा ने एमआरएनए वैक्सीन से जुड़ी माइयोकार्डिटीज़ कार्डियोवैस्कुलर कॉम्पलिकेशंस की ओर इशारा जरूर किया है। लेकिन यह वैक्सीन भारत में इस्तेमाल नहीं हुई। हाल ही में, भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि जिन लोगों को कोविड संबंधी लक्षण बिगड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती होने की नौबत बनी थी, उनमें अचानक मृत्यु या हृदयाघात का जोखिम अधिक रहा।
मुख्य अवयवों में तनाव का हिस्सा बहुत बड़ा है। न्यूयॉर्क टाइम्स का एक लेख बताता है कि दिल का सबसे बुरा दुश्मन तनाव है। इस बात की संभावना है कि कोविड महामारी के बाद उत्पन्न स्थिति जैसे कि नौकरी चले जाना और वित्तीय मुश्किलों से बना मनोवैज्ञानिक तनाव एक वजह है। देखा गया है कि जिन लोगों में अपनी नौकरी चले जाने का भय है, उनमें दिल का दौरा पड़ने की संभावना लगभग 20 फीसदी बढ़ जाती है। कई मर्तबा, तनाव व्यक्ति को अस्वास्थ्यकर आदतों में धकेल देता है जैसे कि धूम्रपान और जंक फूड सेवन और नींद उड़ जाना।
अत्यधिक व्यस्तता भरी कार्यशैली, टारगेट पूरा करने के दबाव या नौकरी असुरक्षित होना तनाव पैदा करता है। यह तथ्य वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध है कि तनाव दिल की सेहत के लिए बहुत खतरनाक है। तनाव से न्यूरोएंडोक्राइन की सक्रियता बढ़ जाती है, जिससे कैटकोलमिंस और कॉर्टिसोल के उत्पादन में बढ़ोतरी हो जाती है। इसके अलावा प्लाज्मा प्रोइंफ्लेमैट्री/ साइटोकाइन्स/ प्रोथ्रोम्बोटिक्स और इम्यून सिस्टम एक्टिवेशन में इजाफा हो जाता है। इन सबके प्रभाव से हृदय की धड़कन और रक्तचाप में बदलाव होता है और माइयोकार्डियल ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ जाती है। इंफ्लेमैट्री प्रोसेस कोरोनरी धमनियों में एथेरोस्कलेरोटिक प्लाक की टूटन शुरू कर सकता है, परिणामवश दिल का सख्त दौरा पड़ सकता है। मानसिक तनावों के नतीजे में कोरोनरी आर्टरी स्पाज़्म और वैसोकॉन्सट्रिक्शन पैदा हो सकते हैं और इससे पहले से व्याधिग्रस्त धमनियों में रक्त प्रवाह में फर्क पड़ जाता है। अमिग्डला, दिमाग का वह हिस्सा जो तनाव उत्पन्न करने में भूमिका रखता है, परेशानी की हालत बनने पर उसकी सक्रियता बढ़ जाती है। संभवतः यह न्यूरोएंडोक्राइन सिस्टम को सक्रिय करता है, जिससे ऐसे रसायन बनते हैं कि व्यक्ति या तो तनाव का सामना करेगा या फिर मैदान छोड़कर भागने वाली सोच अपना लेगा, करवट किस ओर होगी, यह तनाव की किस्म और किसी की व्यक्तिगत सहनशीलता के स्तर पर निर्भर है।
उम्र बढ़ने के साथ जिंदगी में कुछ बढ़िया कर दिखाने या उपलब्धि की प्रक्रिया में तनाव एक हिस्सा है। कुछ मात्रा में इसका होना सकारात्मक भूमिका निभाता है क्योंकि यह व्यक्ति को और अधिक मेहनत करने को प्रेरित करता है जैसे कि इम्तिहानों में अच्छा कर दिखा लेना या पेशे में उन्नति अथवा प्राप्ति। लेकिन नौकरी चले जाना या वैवाहिक संबंध टूटने जैसे प्रसंग इंसान के मानसिक स्थायित्व को प्रभावित करते हैं और मजबूत पारिवारिक अथवा सामाजिक साथ की अनुपस्थिति में इस किस्म के हालातों का सामना करने की मानसिक दृढ़ता कमजोर पड़ जाती है। इसलिए जहां मेडिकल परामर्श में धूम्रपान से दूर रहना, स्वास्थ्यप्रद भोजन और नियमित व्यायाम करने जैसे रोकथाम उपायों की सलाह दी जाए, वहीं तनाव के स्तर और इससे निपटने के बारे में बात करना अहम है।
यह भी तथ्य है कि तनाव से निपटना आसान नहीं होता। कोई एक उपाय जो सबके लिए कारगर हो, ऐसा कुछ नहीं है। तनाव में कमी करना स्विच बंद कर देने जैसा नहीं होता। इसके लिए लगातार प्रयास और साथ देने वाले परिवार-मित्र-सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत है। चूंकि व्यायाम करना व्यक्ति की तनाव झेलने की शक्ति में इजाफा करता है इसलिए नियमित जारी रखने की सलाह दी जानी चाहिए। जब कोई व्यायाम करता है तो एक तरह से अपने तनाव को खपा रहा होता है। एरोबिक एक्सरसाइज, योग और ध्यान भी मानस को दृढ़ता देने में सहायक होते हैं। मित्रों-रिश्तेदारों से अपनी फिक्र और अंदरूनी भावना को साझा करने से सकारात्मक रुख बनाने में मदद मिलती है। जिन लोगों से आप प्यार करते हैं उनके साथ संपर्क बनाए रखना, प्रेरणात्मक किताबें पढ़ना, संगीत सुनना और किसी रुचिकर गतिविधि में व्यस्त होना तनाव झेलने की शक्ति में इजाफा करता है। दुर्भाग्यवश, निरंतर सिकुड़ते जा रहे परिवार से रिवायती पारिवारिक संबल क्षीण पड़ रहा है। इसकी अनुपस्थिति में, कुछ लोगों में तनाव गंभीर मेडिकल समस्याएं जैसे कि अवसाद और नींद न आना पैदा कर सकता है, जिससे उनमें दिल का दौरा और अचानक मौत होने का जोखिम बढ़ जाता है। अधिकांश विकसित देशों में सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था ऐसी है कि नौकरी न रहने पर व्यक्ति को जीने लायक बेरोजगारी भत्ता मिलता है।
यहां कॉर्पोरेट सेक्टर को ऐसा वातावरण बनाने की जरूरत है जिससे तनाव कम हो और सरकार को भी तनाव-काल में व्यक्ति की मदद करने वाली सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था बनानी चाहिए। हृदयरोग की रोकथाम के लिए स्वच्छता, प्रदूषण रहित वातावरण और सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता पर काम करने की जरूरत है। स्कूलों में बच्चों और कॉलेज में युवाओं को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की महत्ता के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए, जिसमें नियमित व्यायाम, जंक फूड और धूम्रपान से दूरी और शराब सेवन घटाना शामिल हो। हाइपरटेंशन, डायबिटीज़ मेलिट्स और उच्च कोलेस्ट्रॉल लेवल के मामलों में डॉक्टरी परामर्श जरूरी है।
कुछ युवाओं में एर्रहद्मिक या मायोकार्डियल बीमारी पुश्तैनी होती है, जिसके चलते अचानक मृत्यु हो सकती है। इसलिए जिनके परिवार में यह व्याधि पीढ़ी-दर-पीढ़ी है उन्हें समय-समय पर दिल की जांच और एहतियाती उपचार करते रहना चाहिए। सच में तनाव दिल का बैरी है और अपने युवाओं को इसका सामना प्रभावशाली ढंग से करने के वास्ते जागरूक बनाने की आवश्यकता है।
लेखक पीजीआईएमईआर के पूर्व निदेशक हैं।