एक राजनीतिक पार्टी का जनता की नब्ज पर से हाथ क्या छूटा जनाब कि वह परेशान रहने लगी कि आखिर जनता की समस्या है क्या, यह पता क्यों नहीं चल रहा। मौका देखकर एक राजनीतिक रणनीतिकार ने फौरन उस राजनीतिक पार्टी की नब्ज पकड़ ली। समस्या क्या है-पार्टी ने पूछा। समस्या जनता की नहीं है जी-रणनीतिकार ने कहा-समस्या आपकी है। आप अपने यहां कुछ खिड़कियां और लगवा दीजिए। वो क्यों-पार्टी ने कहा। वो इसलिए- रणनीतिकार ने कहा-कि यहां से जो भी गया, वो यही कहते हुए गया कि यहां मेरा दम घुट रहा था। और क्या समस्या है-पार्टी ने जानना चाहा। आप अपने फोटुओं वाले सारे एलबम ताले में बंद करके रख दीजिए-रणनीतिकार ने कहा। इससे क्या होगा-पार्टी ने उत्सुकता से पूछा। देखिए-रणनीतिकार ने कहा-यह एलबम अतीत की याद दिलाते हैं और अतीत इतना सुनहरा था कि वह एक-दो गठरियों में नहीं समा पा रहा। कई गठरियां बन गयी हैं। इन सब गठरियों को पीठ पर लादने से पीठ सीधी ही नहीं हो पा रही। अच्छा और क्या समस्या है-पार्टी ने पूछा। समस्या यह है कि पार्टी हमेशा उन यादों में खोई रहती है जब वह राज करती थी। उसे झिंझोड़कर बताना होगा कि ऐसे ही यादों में खोयी रही तो आगे राज नहीं कर पाओगी।
अच्छा बताओ और क्या समस्या है-पार्टी ने पूछा। रणनीतिकार ने कहा-देखिए आपके यहां हमेशा शादी का-सा माहौल रहता है। पार्टी न हुई साहब, शादीवाला घर हो गया। कभी भाई-बंधु रूठे हैं कि हमें तो पूछा ही नहीं, टोका ही नहीं, हम शादी में क्यों जाएं। कभी जीजा रूठ जाता है तो कभी फूफा रूठ जाता है कि सब की खातिरदारी हो रही है, बस हमें ही इग्नोर किया जा रहा है। मामा कभी अपनी बहन को समझा रहा है तो कभी अपने जीजा को। बहन उत्तेजित भाई को शांत कर रही है। अच्छा और क्या समस्या है-पार्टी ने पूछा। रणनीतिकार ने कहा-आपके नेताओं में दूल्हे के पिता की मानसिकता कूट-कूटकर भरी हुई है। उन्हें लोकलाज का डर भी नहीं सताता। वो कैसे-पार्टी ने पूछा। देखिए-रणनीतिकार ने कहा-कोई कहता है कि अगर मुझे मुख्यमंत्री नहीं बनाया, मतलब अगर स्कोर्पियो नहीं मिली तो मैं बारात लौटा ले जाऊंगा। बाराती बेचारे जीमना चाहते हैं और वह स्कोर्पियो लेने पर अड़ा है। फिर कहेगा मुख्यमंत्री नहीं तो चलो राज्य में पार्टी का अध्यक्ष ही बना दो अर्थात् स्कोर्पियो नहीं तो फिर कोई दूसरी गाड़ी दे दो। अगर गाड़ी नहीं मिली तो देखो मैं बारात लौटा ले जाऊंगा। फिर कोई कहता है कि मेरे लड़के को एडजस्ट करो। उसके बिना मेरी वफादारी का भरोसा मत करना। कोई कहता है मुझे राज्यसभा भेजो, नहीं तो मैं पार्टी छोड़कर चला जाऊंगा। इस दूल्हे के पिता वाली मानसिकता से मुक्ति पाए बिना कुछ नहीं हो सकता।