रेनू सैनी
दो वर्षों तक महामारी ने विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को बहुत अधिक प्रभावित किया है। आर्थिक परेशानियां एक परिवार को बेहद तनावग्रस्त कर देती हैं। हम सभी जानते हैं कि शिक्षा व जीविकोपार्जन हेतु व्यक्ति की आर्थिक सुदृढ़ता अनिवार्य है। आए दिन आर्थिक परेशानियों से ग्रस्त परिवारों का दुखदायी अंत सुनने को मिलता रहता है। कई बार आर्थिक तंगी परिस्थितियों के कारण होती है, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि आर्थिक तंगी की वजह परिस्थितियों से अधिक हमारा अपना व्यवहार होता है जो कि ‘दिदरो इफेक्ट’ से मिलता जुलता है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये ‘दिदरो इफेक्ट’ क्या है जो कि हमारे व्यवहार से मेल खाता है?
दिदरो एक फ्रांसीसी दार्शनिक थे। उनका पूरा नाम डेनी दिदरो था। वे बेहद गरीब थे। उनका जीवनयापन बहुत मुश्किल से हो पाता था। लेकिन 1765 का एक दिन उनके लिए वरदान साबित हुआ। उसने उनके पूरे जीवन का कायापलट कर दिया। दरअसल दिदरो बेहद ज्ञानी थे। उन्हें उस समय के विश्वकोश एनसाइक्लोपीदी के लेखक और सहसंस्थापक के रूप में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता था। एक दिन रूस की महारानी को दिदरो की दयनीय दशा के बारे में पता चला। महारानी कैथरीन द ग्रेट पुस्तक प्रेमी थीं। उन्हें पुस्तकों से बेहद प्रेम था। उन्हें विश्वकोश बेहद पसंद आया। उन्होंने दिदरो के निजी पुस्तकालय को एक हजार पाउंड में खरीदने का प्रस्ताव दिया। यह रकम आज के हिसाब से 150,000 डॉलर से भी ज्यादा है। गरीबी से जूझ रहे दिदरो ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। उनकी बेटी विवाह योग्य थी, पहले उन्हें यह समझ नहीं आता था कि वे बेटी का विवाह कैसे करेंगे? लेकिन अचानक आए बेशुमार धन ने उन्हें धनवान बना दिया। उन्होंने खुलकर अपनी बेटी के विवाह में खर्च किया। पहले धन के अभाव के कारण न ही उनके पास खाने के लिए अच्छा भोजन था और न ही पहनने के लिए अच्छे वस्त्र। धन आने के बाद उन्होंने अच्छे भोजन और वस्त्रों पर खर्च किया। उन्हांेने एक अत्यंत महंगी लाल रंग की पोशाक खरीदी। वह पोशाक इतनी ज्यादा सुंदर थी कि आसपास की अन्य चीजें उस महंगी पोशाक के समकक्ष बेहद फीकी लगती थीं। यह देखकर दिदरो के अहं को अत्यंत तृप्ति हुई। फिर उन्होंने एक नज़र अपने घर के टूटे-फूटे सामान पर डाली। दिदरो को लगा कि सामान का कायापलट होना चाहिए और इसके साथ ही घर की मरम्मत भी जरूरी है। बस फिर क्या था, उन्होंने बिना हिसाब लगाए अंधाधुंध रुपया घर का सामान खरीदने और उसे ठीक करने में लगा दिया। उन्होंने महंगा फर्नीचर लिया और घर को सजाने के लिए महंगी मूर्तियां एवं कलाकृतियां खरीदीं। ऐसा करते-करते वे फिर से पहले वाली फटेहाल स्थिति में आ गए।
उपरोक्त घटना को पढ़कर यह ज्ञात हो गया होगा कि दिदरो का व्यवहार असामान्य नहीं था। दरअसल एक चीज़ के बाद बिना सोचे-समझे दूसरी चीज़ खरीदने की प्रवृत्ति को ही ‘दिदरो इफेक्ट’ कहते हैं। दिदरो इफेक्ट के अनुसार नई-नई चीजें खरीदने से अक्सर खपत की सर्पीली रेखा बन जाती है। यह सर्पीली रेखा मस्तिष्क में कितना व्यय हो रहा है कि अपेक्षा और क्या-क्या लेना चाहिए की आकर्षक छवि बनाती है। इस तरह व्यक्ति एक चीज सुधरने पर दूसरी चीज को सुधारने के लिए और अधिक खरीदारी करने लगता है। कई बार यह खरीदारी अनावश्यक होती है लेकिन ‘दिदरो इफेक्ट’ के कारण व्यक्ति यह समझ नहीं पाता कि वास्तव में घर व स्वयं को आकर्षक बनाने के चक्कर में वे अपनी कीमती बचत को व्यर्थ कर रहे हैं। हालांकि हर बार ऐसा हो, यह जरूरी नहीं, लेकिन ऐसा अक्सर होता है कि कई कार्यक्रमों पर मसलन जब व्यक्ति के घर में किसी विवाह का आयोजन हो रहा होता है तो वह हर पक्ष की मजबूती दिखाने के लिए अधिक रुपयों का व्यय कर देते हैं। यह रुपया अच्छा खाना, गहने, कपड़े आदि सभी पर व्यय होता है। यही कारण है कि भारत में आज भी ऐसे लोगों की संख्या अनगिनत है जो विवाह के समय कर्ज में लद जाते हैं। विवाह होने के बाद वे पछताते हैं कि उन्होंने दिमाग से काम नहीं लिया था। दरअसल वे उस समय ‘दिदरो इफेक्ट’ के शिकार हो चुके होते हैं।
‘दिदरो इफेक्ट’ का शिकार हम में से कोई भी हो सकता है क्योंकि यह मनुष्य की प्रवृत्ति है कि वह प्रशंसा चाहता है और विवाह जैसे कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर करने में विश्वास करता है ताकि हर ओर उसकी प्रशंसा हो। लेकिन यही दिदरो इफेक्ट व्यक्ति को सड़क पर ले आता है। इसके बाद व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। हम सभी यह जानते हैं कि व्यय करना बेहद सरल है, लेकिन रुपए कमाना और फिर अच्छी-खासी बचत करना आसान नहीं है। एक परिवार को बचत करने के लिए बहुत सोच-समझ कर बजट बनाना चाहिए। दिदरो इफेक्ट हमें गहन संदेश देता है कि खर्च करते समय सटीक प्लान बनाना बहुत जरूरी है। बिना प्लान बनाए योजनाएं धराशायी हो जाती हैं और व्यक्ति को धरातल के गर्त में पहुंचा देती हैं। जीवन में सुख और शांति बनाए रखने के लिए दिदरो इफेक्ट से बचें। इसके लिए कुछ बातों का सदैव ध्यान रखें। प्रथम तो प्रत्येक कार्य में सोच-समझ कर व्यय करें। दूसरी बात है कि शिक्षा, स्वास्थ्य पर हर माह निवेश करें। तीसरा बिंंदु है कि भेड़चाल से बच कर रहें।