सूर्यदीप कुशवाहा
यू आर अंडर अरेस्ट। यह हर पुरानी फ़िल्म का डायलॉग था। आजकल डिजिटल अरेस्ट लॉगिन है। फ्रॉड की नई तकनीकी इबारत है। ऑनलाइन ठग्गूलाल की मौज है। भुक्तभोगी सदमे में रोज है। डिजिटल अरेस्ट के बाद दमा रोगी जैसा लक्षण है। ऑनलाइन ठग्गूलाल के आगे सब लोग बच्चा। जेब अपने हाथों काट के भी बेचारा मूढ़ रहे हैं। जीवन भर कुढ़ता है। अपराध का नया-नया रोग है, जिससे लोग दहशत में हैं। आये दिन कोई न कोई साइबर ठग्गूलालों से हलाल हो रहा है, फिर मलाल हो रहा है। ऐसी ठगी में पढ़े-लिखे समझदार लोग ज्यादा शिकार हो रहे हैं।
साइबर अपराधों में काफी विविधता आयी है। ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर अब नये-नये तरीके खोज रहे हैं। अब का नया तरीका है ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’। कुछ खबरें डराती हैं, बुजुर्ग महिला को पांच दिन तक डिजिटली घर में कैद कर फर्जी पूछताछ की गयी और 46 लाख रुपये ठगे गये। एक महिला डॉक्टर को छह दिन डिजिटली गिरफ्तार कर अपराधियों ने 2.8 करोड़ रुपये झटक लिये। दोनों मामले में ठग्गूलाल खुद को सीबीआई अधिकारी बता रहे थे और हवाला कारोबार में इन महिलाओं की संलिप्तता बताकर पैसे ऐंठ लिये।
आजकल के ठग्गूलाल पुलिस, सीबीआई, ईडी, इंटेलिजेंस ब्यूरो, नॉरकोटिक्स विभाग आदि का अधिकारी बनकर ऑडियो या वीडियो कॉल कर पीड़ित को इतना डराते हैं कि वह अपनी तमाम पूंजी ठग के खाते में ट्रांसफर कर देता है।
ऐसे अपराधों में ठग्गूलाल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के इस्तेमाल से माल बना रहे हैं। एआई तकनीक के जरिये वे टार्गेट के सगे-संबंधियों की आवाज की हूबहू नकल कर या उसकी वीडियो बनाकर हलाल करने वाले बकरे को यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाते हैं कि वे गंभीर संकट में हैं। कुछ मामलों में खुद का भ्रष्ट होना भी है। भई! ठग्गूलाल जानते हैं कि डर के आगे जीत है। इसलिए वह हर तरह के हथकंडे अपनाता है।
भाई ठग्गूलालों से सावधान रहो क्योंकि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। आंखें खुली रखना और दिमाग साफ़ तो ठग्गूलाल साफ। डिजिटल अरेस्ट में ठग्गूलाल को उलझाने का रेस्ट ही उपाय बेस्ट। पैसा ठगना चख लिए हैं, इसलिए उनकी भूख बढ़ रही है। सोचो, समझो, बुझो और फिर उपाय सूझे। शातिर ठग्गूलाल हैं और आपके पास माल है। उनके बुने जाल में मत फंसो क्योंकि माइंड घबराहट में नो रेस्ट तो करें ठग्गूलाल डिजिटल अरेस्ट।