भारतीय शास्त्रों में सर्वमान्य संदेश है, दया धर्म का मूल है। वंचितों, दिव्यांगों, जरूरतमंद लोगों पर दया करके उन्हें अन्न, धन अथवा सामग्री से दान प्रदान करके जो व्यक्ति यह पुण्य कर्म करते हैं, उनका लोक-परलोक सुधर जाता है। सभी देशों में इस तरह की दया को धर्म का मूल माना जाता है। अपने देश के हर चौराहे पर भिखारियों की भीड़ सिग्नल बत्तियों की परवाह किए बगैर वाहनों को घेरे रहती है। बत्ती बदल जाने पर भी उनका पीछा नहीं छूटता और दुर्घटनाओं का कारण बनती है।
पिछले दिनों भारत में भिखारियों और दान देने वालों पर जो सर्वेक्षण हुआ, उसमें बताया गया कि सबसे अधिक दान चौराहों पर खड़े भिखारियों में बंटता है और वाहनों में बैठे लोग इस दान को देते हुए आत्मतुष्टि का अनुभव करते हैं। कानून तोड़ने या दुर्घटनाओं की संभावना बताकर इस बात की कोई परवाह नहीं की जाती। दरअसल, तीसरी दुनिया के गरीब देशों में यह वंचितों और दयनीयों का आग्रह नहीं बल्कि बाकायदा एक व्यवसाय बन गया है।
भारत में इन चौराहों पर जब सर्वेक्षण हुआ तो पता चला कि भारत के महानगरों और शहरों के इन चौराहों पर बाकायदा भीख ब्रिगेेड बन गई है। भिखारियों के ड्यूटी अनुसार चौराहे बदले भी जाते हैं। भिखारियों और गिरहकटों का चोली-दामन का साथ भी नजर आता है। चौराहे पर आवारा छोकरों के गिरोह कारों की खुली खिड़कियों में से किसी न किसी तरह से छीना-झपटी का जुगाड़ कर लेते हैं।
बात पड़ोसी देश पाकिस्तान की करें तो वहां से केवल भुखमरी और दुर्दशा की खबरें ही नहीं आ रही बल्कि भीख मांगने के इस व्यवसाय के अंतर्राष्ट्रीयकरण की खबरें भी आ रही हैं। अभी सितंबर मास के आखिरी दिन पाकिस्तान में 24 भिखारियों को मुल्तान हवाई अड्डे पर सऊदी अरब जाने वाली उड़ान से उतारा गया जो उमरा की धर्मयात्रा करने के बहाने खाड़ी देश जाने की कोशिश कर रहे थे ताकि वहां श्रद्धालुओं से भीख की मारामारी कर सकें। इससे पहले भी एफआईए ने इसी हवाई अड्डे पर सऊदी अरब जाने वाली उड़ान से 11 महिलाओं, चार पुरुषों और एक बच्चे सहित 16 लोगों को उतारा था। ये धार्मिक यात्रा उमरा का वीजा लेकर जा रहे थे। यह ऐसी यात्रा है जो कभी भी की जा सकती है। जब छानबीन की गई तो पता चला कि भिखारियों के झुंड के झुंड धर्मयात्रा के बहाने भेजे जा रहे हैं और जो यात्रा का मुखौटा ओढ़े ये भिखारी भीख कमाते हैं, उसकी आधी राशि उन्हें एजेंटों को सौंपनी पड़ती है। पाक में इन लोगों को पासपोर्ट पकड़कर मानव तस्करी रोधी इकाई के पास भेजा गया है।
पाकिस्तान की संसद में खुलासा हो गया कि देश के अधिकतर भिखारी गरीबी के कारण भीख मिलने की कमी के चलते गैर-कानूनी तरीके से विदेश भेजे जाते हैं। अभी तक विदेशों में जो भिखारी पकड़े गए हैं, उनमें से 90 प्रतिशत पाकिस्तानी हैं। सऊदी अरब के राजदूत बताते हैं कि इन भिखारियों की गिरफ्तारी की वजह से उनके देशों की जेलें भर गई हैं। वहीं नई सूचना है कि मक्का की मस्जिद अल-रहम से बाहर के जो लोग गिरफ्तार हुए, उनमें अधिकतर जेबकतरे थे। यह अब बाकायदा एक नया व्यवसाय बन गया जिसमें एजेंसियां बेकार और असफल लोगों को भर्ती करके विदेशों के इन धर्मस्थानों पर भेज रही हैं। वहां भीख के बहाने जेबतराशी, छीना-झपटी के धंधे भी पनप रहे हैं। दरअसल, पाकिस्तान के अधिकतर लोग अपनी निरंतर विपन्न होती हुई अर्थव्यवस्था के साथ इस धंधे को अंतर्राष्ट्रीय पैमाने पर इसलिए अपना रहे हैं क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर तो मध्य वर्ग से अब लम्बी-चौड़ी भीख की गुंजाइश नहीं रही।
दरअसल, आर्थिक संकट के चलते तीसरी दुनिया के कई मुल्कों को समय पर मदद नहीं मिलती। पाकिस्तान, श्रीलंका ने इसका कटु सबक लिया है। संपन्न देशों से अनुदान मांगो या उदार कर्ज, उनकी ढीली शर्तों की चाह में इसे अनिश्चितकाल तक वापस न करने की इच्छा तो छिपी ही रहती है लेकिन चतुर व्यवसायी संपन्न देश कर्जा वापसी की शर्तों को कभी ढीला नहीं करते। पाकिस्तान और श्रीलंका ने चीन से लिए कर्जे पर नरम शर्तों की मांग करके असफलता पाई है और अपनी अर्थव्यवस्था को रसातल में जाते हुए भी देखा है। इसलिए यह सबक है कि इस भीख मांगने वाली वृत्ति से जितनी जल्दी छुटकारा पाया जा सके, उतना ही अच्छा।
भारत का आत्मनिर्भरता की राह पर चल पड़ना इसी वृत्ति से छुटकारा पाने का द्योतक है। लेकिन इससे कहीं बेहतर होगा, अगर सार्थक उद्यम और निवेश नीति के साथ रियायत संस्कृति की जगह कर्म संस्कृति को पैदा किया जाए। घरेलू उद्योगों और दस्तकारों के लिए लघु और कुटीर उद्योगों का कुछ इस प्रकार विकास किया जाए कि अधिक से अधिक जनसंख्या कर्मशीलता और मेहनत पर निर्भर रहे। इस प्रकार बढ़ती भीख मांगने की प्रवृत्ति से छुटकारा पा सकें। जिसका एक आधुनिक आयाम रियायत संस्कृति भी तो है या लोगों के वोट जुटाने के लिए उनमें रेवड़ियां बांटते चले जाने का तेवर।
लेखक साहित्यकार हैं।