सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत के जिस गांव में 18 जनवरी, 2024 को पाक मिसाइलों के हमले से तीन महिलाएं और चार बच्चों समेत नौ लोगों की मौत हुई है, उसमें यह दावा किया गया कि इनमें से कोई भी ईरानी मूल का नहीं है। यानी, ईरान इस ‘दोस्ताना हमले’ का बुरा नहीं माने। इससे दो दिन पहले 16 जनवरी, 2024 ईरान ने पाकिस्तानी बलूच इलाके में अतिवादी समूह जैश उल अदल को निशाने पर लेकर ‘दोस्ताना सर्जिकल स्ट्राइक’ किया था, जिसमें दो बच्चे मारे गये थे। ईरान ने भी कहा था, पाकिस्तान इसका बुरा न माने। इस हमले से सबसे अधिक कोई डिस्टर्ब हो रहा है, तो वह है चीन।
ईरान और पाकिस्तान दोनों चीन के हम प्याला-हम निवाला हैं। दोनों के भिड़ जाने का मतलब है, ग्वादर में चीनी परियोजना का सत्यानाश। 7 जून, 2023 को चीन ने पहली बार पाकिस्तान-ईरान के साथ पेइचिंग में त्रिपक्षीय बैठक की थी। विषय दो मित्रों के बीच तनाव कम करना और आतंक विरोधी रणनीति पर अमल करना था। 16 मई, 2013 को चीन ने ग्वादर पोर्ट का नियंत्रण पाकिस्तान से अपने हाथों ले लिया था। यह चीन की महत्वाकांक्षी योजना रही है, लेकिन लोकल बलूच उसे नापसंद करते रहे।
वर्ष 2022-23 तक चीन ने सीपीईसी प्रोजेक्ट पर जो 65 अरब डॉलर ख़र्च किये, उसका बड़ा हिस्सा ग्वादर पोर्ट पर लगा है। सिस्तान-बलूचिस्तान के जिस इलाके में पाकिस्तान ने हमला किया है, वह ग्वादर से लगभग 300 किलोमीटर की दूरी पर है। गुरुवार को पाक विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा कि आज तड़के ही पाकिस्तानी फोर्स ने ईरान के सिस्तान ओ बलूचिस्तान प्रांत में कोह ए सब्ज़ स्थित आतंकवादियों के ठिकानों पर हमला किया। हमने ‘ऑपरेशन मार्ग बर सर्माचार’ के तहत कई आतंकवादियों को मार गिराया है। ईरानी हदों में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के आतंकवादी, स्वयं को सर्माचार कहते हैं। सर्माचार का मतलब होता है, ‘नेतृत्व देने वाला कमांडर।’ मार्ग का अर्थ है, ‘मौत’। और बर का अर्थ है ‘खि़लाफ़’। पाकिस्तान ने उसी के हवाले से ‘ऑपरेशन मार्ग बर सर्माचार’ रखा था, जिसका आशय था, ‘ईरान में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के आतंकवादियों के नेता के ख़ात्मे का अभियान।’
पाकिस्तान ने कहा, ‘हमने तथाकथित सर्माचारों को लेकर ईरान को कई सबूत सौंपे थे, और सबूतों के आधार पर कार्रवाई की है।’ ईरानी गृहमंत्री अहमद वाहिदी ने कुबूल किया है कि मारे गये सभी नौ लोग ‘विदेशी’ हैं। पाकिस्तान इस हमले की संज़ीदगी को समझता है, और शायद यही वजह रही है कि दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक को बीच में छोड़कर उसके कार्यकारी प्रधानमंत्री अनवारूल हक ककर और विदेश मंत्री इस्लामाबाद लौट आये हैं।
ईरान ने पाकिस्तान में हमला 16 जनवरी को किया था। उससे एक दिन पहले भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ईरान पहुंचे थे। उनकी मुलाक़ात ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और अपने समकक्ष आमिर-अब्दोल्लाहिआन से हुई थी। मालूम नहीं एस. जयशंकर इस कार्रवाई से कितना वाकिफ थे, मगर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक्स पर लिखा, ‘हम आतंकवाद को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति रखते हैं। हमारा मानना है कि कोई देश आत्मरक्षार्थ ऐसे कदम उठा सकता है।’ ठीक से देखा जाए तो भारत ने अपने बयान के ज़रिये अतीत में पाकिस्तान पर किये सर्जिकल स्ट्राइक को न्यायोचित ठहराया है। लेकिन उसकी कूटनीतिक व्याख्या की जाए तो ईरान और पाकिस्तान ने एक-दूसरे की सीमाओं का उल्लंघन कर जो हमले किये, उसे सही ठहराना भी मुश्किलों को दावत देता है। अब पाक भी कह सकता है, कि हमने ‘आत्मरक्षार्थ’ ऐसा किया।
पाकिस्तान का ‘ऑल वेदर फ्रेंड’ चीन ने कहा है कि दोनों देशों को संयम बरतना चाहिए। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने बयान दिया, ‘हम इन हमलों की निंदा करते हैं। हमने देखा है कि ईरान ने पिछले कुछ दिनों में अपने तीन पड़ोसियों की संप्रभु सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है। एक तरफ, ईरान इस इलाके में आतंकवाद का पनाह देने वाला देश है और दूसरी ओर वह दावा करता है कि उसने इन देशों पर कार्रवाई आतंकवाद से लड़ने के लिए की है।’ अमेरिका ऐसे बयान से पाकिस्तान को अपने पाले में लेना चाहता है। पाक राष्ट्रपति डॉ. आरिफ अलवी ने भी कहा कि हम कोई समझौता नहीं करेंगे। उधर ईरान जिस तरह से बयान देने में लगा है, उससे इस इलाके में लड़ाई बढ़ने की संभावना है।
टाइम लाइन को ठीक से देखा जाए, तो 900 किलोमीटर की ईरान-पाक सीमा पर आये दिन खुफियागिरी और आतंकी घटनाएं होती रही हैं। 2013 में जैश अल-अदल ने एक हमले में 14 ईरानी सैनिक मारे थे। 2014 में ईरानी सुरक्षा बलों के पांच सदस्यों का अपहरण कर लिया गया था। दिसंबर, 2010 में चाबहार में एक मस्जिद के पास आत्मघाती हमले में 41 लोग मारे गए और 90 अन्य घायल हो गए। 26 अप्रैल, 2017 को जैश अल-अदल ने मिर्जावेह में हुए हमले की जिम्मेदारी ली, जिसमें 10 ईरानी सीमा रक्षक मारे गए थे। 22 जून, 2017 को पहली बार ईरान के किसी ड्रोन को पाकिस्तान ने मार गिराया था। 17 अप्रैल, 2018 को सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत के मिर्जावेह शहर में तीन ईरानी सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी। 16 अक्तूबर, 2018 जैश अल-अदल ने 12 ईरानी सुरक्षा कर्मियों को अगवा कर लिया था। उसी साल 6 दिसंबर को ईरान के चाबहार में पुलिस मुख्यालय पर आत्मघाती कार बम हमले में चार पुलिसकर्मी मारे गए और 42 अन्य लोग घायल हो गए। फरवरी, 2021 में ईरानी सैनिक दो ख़ुफ़िया एजेंटों को बचाने के लिए पाकिस्तानी क्षेत्र में घुस गए।
8 फरवरी, 2024 पाकिस्तान में चुनाव है। सवाल चुनाव के हवाले से भी उठ रहा है कि दोनों तरफ़ से हमलों का मतलब क्या हो सकता है। ईरान और पाकिस्तान नौ सदस्यीय शंघाई कॉर्पोरेशन आर्गेनाइजेशन के मेंबर भी हैं। तो क्या ये एससीओ के बाकी सदस्य देशों की बात सुनेंगे? पाक विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज ज़हरा बलूच ने कहा कि पाकिस्तानी सेना ने खुफिया जानकारी के आधार पर ऑपरेशन चलाया, और ईरान में आतंकवादियों की मौजूदगी के उपलब्ध सबूतों के आधार पर आतंकवादियों को मार गिराया। वैसे, पाकिस्तान को यह साबित करना चाहिए कि जो महिला और बच्चे मारे गये हैं, वो क्या सचमुच आतंकवादी थे? यों, दोनों तरफ़ के सर्जिकल स्ट्राइक से ये न समझा जाए कि हिसाब बराबर हो गया। ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद रज़ा अष्टियानी ने बुधवार को कहा कि ईरान के पास 2000 किलोमीटर रेंज तक मार करने वाली खैबर श्रेणी की सबसे उन्नत मिसाइलें हैं। इस्लामाबाद को समझना चाहिए कि इसका क्या मतलब होता है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।