रेनू सैनी
मानव एक ऐसा प्राणी है जो अपने द्वारा बनाई गई धारणा को ही सही मानता है। इतना ही नहीं, कई व्यक्ति तो ऐसे होते हैं जो दूसरे को पूरी तरह जाने-समझे बिना ही उसके प्रति नकारात्मक राय बना लेते हैं। प्रकृति ने मनुष्य को बुद्धि और बोलने-समझने की क्षमता दी है लेकिन बहुत कम लोग इस क्षमता का सदुपयोग करते हैं। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य यह होता है कि व्यक्ति पहले किसी बात के मर्म तक जाए और उसके बाद अपनी बात रखे। अधिकतर झगड़े, संबंधों के खराब होने का कारण भी यही होता है कि लोग अक्सर जल्दबाजी में दूसरे को बिना जाने ही उनके ऊपरी व्यवहार को देखकर अपना दृष्टिकोण बना लेते हैं।
निस्संदेह कभी भी गहराई तक जाए बिना अपना किसी भी तरह का दृष्टिकोण बनाना गलत है। गर्मियों के दिन थे। एक जूते का सेल्समैन चिलचिलाती धूप में कुछ जूतों के जोड़े बेचने निकला। कम्पनी नयी-नयी खुली थी। उन्होंने सेल्समैन को सख्त आदेश दिया था कि यदि जोड़े बेचे बिना लौटे तो कम्पनी में आज तुम्हारा अंतिम दिन होगा।
अभी तक एक भी जोड़ा जूता नहीं बिका था। दो बज चुके थे। सेल्समैन की बोतल का पानी पूरी तरह खत्म हो गया था। आसपास कोई दुकान भी नहीं दिख रही थी। सेल्समैन ने इधर-उधर चारों ओर अपनी नज़रें दौड़ाई तो देखा कि अपने घर की बालकनी में खड़ा एक व्यक्ति उसे इशारे से बुला रहा था। सेल्समैन दरवाजे पर जाकर खड़ा हो गया। कुछ देर बाद वह व्यक्ति बाहर निकला और बोला, ‘तुम गर्मी में पसीने से तरबतर हो। रुको, पहले मैं तुम्हारे लिए एक गिलास शीतल जल लेकर आता हूं।’ यह सुनते ही सेल्समैन को उस व्यक्ति में अचानक से ईश्वर नज़र आने लगे। वह मन में बोला, ‘वाह, आज की दुनिया में भी ऐसे नेक लोग हैं।’
इसी बीच 5 मिनट बीत गए। व्यक्ति नहीं आया। दस मिनट बीत गए, व्यक्ति नहीं आया। पन्द्रह मिनट बीतने पर सेल्समैन के दिमाग का पारा चढ़ गया और वह बड़बड़ाते हुए बोलने लगा, ‘बड़ा अजीब आदमी है। पहले तो मुझे खुद ही बुलाया और अब मुझे यहां खड़ा करके खुद गायब हो गया।’ वह जाने ही वाला था कि व्यक्ति अपने हाथ में शीतल जल के साथ ही लस्सी से भरा हुआ गिलास लेकर आया और बोला, ‘माफ करना। आज घर में कोई नहीं है। मुझे लगा, इतनी तेज धूप में तुम सुबह से घूम रहे हो तो पानी के साथ-साथ तुम्हें लस्सी भी पिलाई जाए ताकि तुम्हें तृप्ति मिल सके।’ यह सुनते ही सेल्समैन का रोयां-रोयां उस व्यक्ति के प्रति आनंदित हो उठा।
फिर उस व्यक्ति ने सेल्समैन से पूछा कि वह क्या बेच रहा है? सेल्समैन ने अपने बारे में बताया। उसने जूते दिखाने के लिए कहा। सेल्समैन उस व्यक्ति को जूते निकाल कर दिखाता रहा। सात जोड़े जूते निकल चुके थे और एक ओर रखे जा चुके थे। आठवां जोड़ा निकालते समय सेल्समैन का धैर्य जवाब देने लगा। वह मन में बोला, ‘बड़ा अजीब आदमी है। मेरा समय बर्बाद किए जा रहा है। पता नहीं अपने आपको क्या समझता है?’ आठवीं जोड़ी जूता देखकर उस व्यक्ति ने सेल्समैन का हाथ पकड़ कर अपने पास बैठाया और बोला, ‘सुनो, मेरी जूतों की एक बहुत बड़ी फैक्टरी है। एक सप्ताह पहले मेरे मैनेजर रिटायर हो गए हैं। उनके स्थान पर मुझे किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो ईमानदार, मेहनती और धैर्य वाला हो। तुम्हारे अंदर ये सारी बातें हैं। मैं बहुत देर से तुम्हारे धैर्य की परीक्षा ले रहा था। इसी के साथ मैंने ये भी देखा कि तुम्हें जूतों की बहुत अच्छी जानकारी है। इसलिए अगर तुम चाहो तो मेरे यहां मैनेजर के पद पर कल से ही काम कर सकते हो।’
यह सुनते ही सेल्समैन के हाथ से जूतों का जोड़ा नीचे गिर गया। सेल्समैन उनके आगे नतमस्तक हो गया और बोला, ‘सर, ये तो मेरा सौभाग्य है, जो आपने मुझे इस पद के योग्य समझा। मैं अपने काम को पूरी तरह समर्पित होकर ईमानदारी और निष्ठा के साथ करूंगा।’ उस व्यक्ति ने उसे अपनी फैक्टरी का पता और एक पत्र देकर अगले दिन वहां जाने के लिए कहा। सेल्समैन ने उसी दिन से यह निश्चय कर लिया कि आगे से कभी भी किसी को पूरी तरह जाने बिना उसके बारे में इतनी जल्दी धारणा नहीं बनाएगा।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में ब्यूरो ऑफ वोकेशनल गाइडेंस ने नौकरी से निकाले गए हज़ारों पुरुषों और महिलाओं का अध्ययन कर यह पाया कि तीन में एक व्यक्ति को इसलिए निकाला गया क्योंकि वह काम में अयोग्य था। बाकी दो को इसलिए निकाला गया क्योंकि उनमें व्यवहार कुशलता की कमी थी। वे पूरी बात को जाने बिना ही अपनी राय बना लेते थे जो अधिकतर गलत निकलती थी। इसलिए अगर आप भी किसी व्यक्ति को पूरी तरह जाने बिना धारणा बनाने जा रहे हैं तो रुकें और धैर्य के साथ उसे समझने का प्रयास करें।