क्या आपने डाना का नाम सुना है डाना का जलवायु परिवर्तन से क्या रिश्ता है। धरती के लगातार गर्म होने से बड़े पैमाने पर जो तबाही हो रही है उसका एक परिणाम है डाना। स्पेन ने इसकी विभीषिका को झेला। सैकड़ों जानें गई हैं, संपत्ति का भीषण नुकसान हुआ। भूमध्य सागर का एक सिस्टम है डाना। समुद्र के ऊपर की हवा गर्म है और उत्तर से ठंडी हवा आती है, जिससे चक्रवात सरीखा उठता है और आसपास के इलाके में भीषण तबाही फैलाता है। इसमें चूंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र के ऊपर की हवा जरूरत से ज्यादा गर्म हो जाती है, लिहाजा उत्तर से आने वाली ठंडी हवा पूरे इलाके में बड़ा डिस्टर्बेंस पैदा करती है। स्पेन इसी का शिकार हुआ। डाना की वजह से अचानक इतनी भीषण बारिश और बाढ़ आ गई—जिससे बचना किसी के बस में नहीं था। दुनिया के कई देश इसी तरह की चरम मौसमी घटनाओं को झेल चुके हैं।
स्पेन में भीषण तबाही से जो डरावना मंजर देखने को मिला, उससे पूरा यूरोप सदमे में है। पलक झपकते जिस तरह से 200 से अधिक जानें काल के गाल में समा गईं, उसने जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरे की विभीषिका के बारे में सबको सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। पिछले एक दशक से जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया ने भीषण तबाही—कभी बाढ़, कभी सूखे, कभी प्रलयकारी चक्रवाती तूफानों को देखा है। इसके बाद जिस तरह से इराक में बाढ़ आई और सऊदी अरब में बर्फबारी हुई—उसने बता दिया है कि प्राकृतिक तबाही का यह सिलसिला अभी और बढ़ने जा रहा है।
स्पेन के वेलेंसिया शहर में तीन घंटे के भीतर एक साल की बारिश हो गई। इसकी कल्पना बुरे से बुरे दुस्वप्न में भी कोई नहीं कर सकता था। विनाश आसमान से बारिश के रूप में आया—जिसने तुरंत ही सारी नदियों-नालों में उफान ला दिया और वे जीवन को बहा ले गए। इस तबाही का सीधा रिश्ता है जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज से। जलवायु परिवर्तन के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है। हम अपनी करतूतों से लगातार धरती का तापमान गरम कर रहे हैं और इसी के नतीजों के रूप में हमारे सामने स्पेन जैसी विभीषिका आ रही है।
डाना कैसे बाकी जलवायु संबंधी गड़बड़ियों से अलग है, इसके बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ एलिकांटे में क्लाइमेटोलॉजी के निदेशक डॉर्ज ऑलिसना का कहना है कि डाना में हवाएं हरिकेन (तूफान-चक्रवात) की तरह तेज नहीं होती, लेकिन तबाही उससे ज्यादा मचा सकती हैं क्योंकि इसमें भयानक तीव्रता के साथ बारिश होती है, जो कुछ ही घंटों में नदी-नाले-तालाब में उबाल ला देती है। फ्लैश फ्लड यानी अचानक आई बाढ़ से किसी को भी संभलने का मौका नहीं मिला। इंफ्रास्ट्रक्चर मिनटों में बैठ जाता है और बचाव के लिए समय नहीं मिलता। डाना का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है और ऐसा जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है। भूमध्य सागर लगातार गर्म हो रहा है। अगस्त में यहां अब तक का सबसे अधिक तापमान रिकार्ड किया गया था।
स्पेन की सरकार ने इसे यूरोप की दूसरी सबसे जानलेवा बाढ़ कहा है। इससे पहले 1967 में पुर्तगाल में भीषण बाढ़ आई थी, जिसमें 500 से अधिक लोग मारे गये थे। स्पेन में 1967 के बाद इस तरह की बाढ़ आई है। कम समय में पूरे साल भर की बारिश ने लोगों को बचाव का मौका ही नहीं दिया। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वेलेंसिया में तो पूरे साल भर की बारिश आधे दिन में ही हो गई। चीवा इलाके में आठ घंटे के अंदर ही 20 इंच की बारिश हुई। जलस्तर इतनी तेजी से बढ़ा कि तूरिया नदी में बाढ़ आ गई और पानी वेलेंसिया शहर में पूरे वेग के साथ घुस गया। इस बाढ़ में पुल नष्ट हो गए, लोग संपर्क से कट गए और भोजन, पानी या बिजली के बिना रह गए। हाहाकार मच गया। जो जहां था वहीं फंस गया। ऐसा लग रहा था कि शहर से ही नदी गुजर रही हो। सैकड़ों लोगों की जानें गई और संपत्ति तबाह हुई। कारों के तैरने और उसमें लोगों के फंसे होने का नजारा दिल-दहलाने वाला था। फंसे हुए लोग मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन पानी का वेग इतना तेज था कि कोई कुछ नहीं कर पाया।
मदद के लिए सेना के जवानों को उतारा गया है। शांतिकाल में सेना को इतने बड़े ऑपरेशन में लगाना बहुत कम ही होता है। पूरी तरह से तबाह बर्बाद शहर को कीचड़-गंदगी-लाशों से मुक्त करने के लिए स्पेन के इतिहास का सबसे बड़ा पीसटाइम मिलिट्री ऑपरेशन चलाया गया, जिसमें 7500 सैनिकों को उतारा गया। बाढ़ से प्रभावित इलाक़ों में हज़ारों सुरक्षा और आपातकालीन सेवाकर्मी मृतकों की तलाश में मलबे और कीचड़ को हटाने में लगे।
दुख की इस घड़ी में लोग एक-दूसरे के साथ खड़े नजर आए। पीड़ितों की मदद करने के लिए स्पेन के नागरिकों ने अभूतपूर्व मानवता का परिचय दिया। वे लाइनों में लग कर वेलेंसिया जाने और राहत सामग्री बांटने, सफाई करने के लिए मुस्तैद दिखाई दिये। ये तस्वीरें बेहद राहत देने वाली थी। वेलेंसिया शहर के संग्रहालय की इमारत में बड़ी संख्या में स्वयंसेवक बाल्टियां, पोछा, भोजन और पानी लेने के लिए लाइन में खड़े थे। जितनी तेजी से स्पेन के नागरिकों ने खुद को मदद के लिए पेश किया वह भारत जैसे बाकी देशों के लिए सबक होना चाहिए। यहां वे सारे काम कर रहे थे—कचरा साफ करने से लेकर सड़कों-मकानों की मरम्मत तक। खाना-पानी लाइट का इंतजाम करने में भी स्पेन के नागरिक पीछे नहीं रहे। पहले ही दिन 15 हजार वॉलेंटियर तैनात हो गए थे।
बड़ा सवाल यह है कि स्पेन के वेलेंसिया और उसके आसपास के इलाके को अचानक जिस तबाही ने बर्बाद किया, क्या उससे बचा जा सकता था। क्या यह इस शहर का, इस शहर में हुए निर्माण या विकास कार्यों का दोष था कि इतनी बड़ी तबाही का शिकार होना पड़ा। बिल्कुल भी नहीं। इस तबाही की वजह स्पेन और उसका शहर वेलेंसिया नहीं थे। धरती लगातार गर्म हो रही है और इसका नुकसान सबको उठाना ही पड़ रहा है। स्पेन के बाद साइप्रस, सऊदी अरब आदि जगहों पर ही मौसम की मार झेलनी पड़ी। असमय बारिश, बर्फबारी ने जीवन को तबाह करने में कोई कसर नही छोड़ी है।
ऐसे में जलवायु परिवर्तन की जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनदेखी हो रही है—वह खतरनाक है। अमेरिका जैसे बाकी देश जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी दुष्प्रभावों की रोकथाम करने के लिए कोई भी ठोस कदम उठाने से इनकार कर देते हैं। इसकी वजह से धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है और दुनिया भर को तबाही भरी प्राकृतिक आपदाओं को झेलना पड़ रहा है। छोटे-छोटे द्वीप समूहों के लिए तो अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया है—समुद्ध का जलस्तर बढ़ते ही वे डूब जाएंगे। लेकिन उनकी व्यथा को पूरी तरह से नजरंदाज किया जा रहा है। क्या स्पेन में हुई ये तबाही-इन विकसित देशों को जगा पाएगी और क्या वे इस दिशा में ठोस कदम उठाएंगे ? यह कदम दुनिया को बचाने की दिशा में उठा कदम होगा।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।