पंजाब यूनिवर्सिटी के सीनेट के चुनाव सितंबर 2020 में होने तय हुए हैं। कोविड-19 के संक्रमण के खतरे के बावजूद चुनाव सभी सरकारी निर्देशों को ध्यान में रखकर करने का निर्णय हुआ है। उत्तर-पश्चिमी भारत में, पंजाब यूनिवर्सिटी सीनेट के चुनाव काफी महत्व रखते हैं क्योंकि पंजाब यूनिवर्सिटी आजादी के भी पहले से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं प्रदान करती रही है। लगभग 100 शिक्षा विभाग और 200 एफिलिएटिड महाविद्यालयों के माध्यम से यह विश्वविद्यालय इस क्षेत्र की बड़ी जनसंख्या से करीबी तौर पर जुड़ा रहा है। पंजाब यूनिवर्सिटी सीनेट जो इस विश्वविद्यालय की उच्चतम निर्णायक संस्था है, के पास यूनिवर्सिटी के मामलों, कारोबार तथा संपत्तियों के प्रबंधन तथा पर्यवेक्षण के अधिकार हैं। इसके सदस्यों का विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय के छात्रों, शिक्षकों, स्टाफ, उनके परिवारों तथा समाज के हितधारकों पर काफी दबदबा रहता है। इसी कारण यह चुनाव काफी गंभीरता से लिए जाते हैं। कई उम्मीदवार इनमें चुने जाने के लिए अपना कीमती समय, कोशिश तथा पैसा बहुतायत में लगाने को तैयार रहते हैं और कई चुने गए सीनेटर दो-तीन दशकों तक अपना पद नहीं छोड़ते।
पंजाब यूनिवर्सिटी सीनेट में 91 सदस्य हैं, जिनमें से विश्वविद्यालय के चांसलर, भारत के उपराष्ट्रपति 35 सदस्यों को नामित करते हैं, 6 एक्स-ऑफिशियो सदस्य होते हैं तथा बाकी 50 सदस्य चुनावों के माध्यम से आते हैं। ये सदस्य विश्वविद्यालय तथा 200 एफिलिएटिड कॉलेजों के प्रिंसिपल, प्राध्यापक तथा रजिस्टर्ड ग्रेजुएट दलों के प्रतिनिधियों के रूप में चुनकर आते हैं। विभिन्न कारणों से सीनेट की यह संरचना यूनिवर्सिटी तथा तथा कॉलेजों के संदर्भ में लिए गए निर्णयों को प्रभावित करती है और कई अनुत्तरित प्रश्नों को जन्म देती है, जिन पर चर्चा और विचार करना लोकहित में आवश्यक है।
यूनिवर्सिटी विभागों की कार्यप्रणाली, यूनिवर्सिटी में प्राध्यापकों की भर्ती तथा पदोन्नति, एवं सेवा नियमों का निर्धारण करने वाली इस सभा में पंजाब यूनिवर्सिटी की केवल 4 सीटें ही निर्धारित हैं और इन निर्णयों पर कॉलेज के तथा अन्य क्षेत्रों के बहुसंख्यक सीनेटर ही हावी रहते हैं। सीनेट के 50 सदस्यों में से केवल 8 महिलाएं हैं (18 प्रतिशत) तथा 35 नामित सदस्यों में से केवल 5 महिलाएं हैं (17 प्रतिशत)। यह संख्या महिलाओं के नाममात्र प्रतिनिधित्व की निराशाजनक स्थिति की ओर इंगित करती हैं। परिवारवाद की राजनीति भी यहां काफी हद तक व्याप्त है। वर्ष 2020 के चुनावों के लिए 2.10 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए हैं जबकि यूनिवर्सिटी के विभागों के प्रशासकीय तथा अकादमी कार्यों के लिए 5.30 करोड़ के बजट का प्रावधान है। इस भारी-भरकम खर्च का पिछले कुछ वर्षों में विरोध भी किया गया है।
सीनेट की संरचना का सबसे हैरान करने वाला भाग रजिस्टर्ड ग्रेजुएट्स का है, जिसके मतदाता पंजाब यूनिवर्सिटी तथा उसके एफिलिएटिड कॉलेज से पास होने वाले सभी ग्रेजुएट होते हैं, जिन्हें इसमें मतदान करने की योग्यता प्राप्त है। यानी इन मतदाताओं की संख्या लाखों में होती है| इनके लिए सीनेट में 15 सीटें निर्धारित हैं। परिणामस्वरूप यह दल संख्या के हिसाब से सीनेट में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। ग्रेजुएट्स को प्रतिनिधित्व देने का नियम अंततः 100 साल पुराना है तथा उस समय का है जब पंजाब यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट्स की संख्या गिनीचुनी होती थी। अद्भुत नियमों के कारण कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसका अध्ययन, अध्यापन तथा शोध से कोई वास्ता ना हो, वह भी फैकल्टी डीन बनकर शोध तथा अध्यापन के गंभीर मामलों पर महत्वपूर्ण निर्णय ले सकता है। रजिस्टर्ड ग्रेजुएट के मतदान का संभाग सबसे बड़ा है तथा इसके लाखों मतदाताओं के लिए देश भर में कई मतदान बूथ तैयार किए जाते हैं परंतु सभी रजिस्टर्ड ग्रेजुएट्स को पंजाब यूनिवर्सिटी सीनेट के मतदान में रुचि ना होने के कारण मतदान का प्रतिशत बहुत ही कम रहता है-लगभग 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत। इतनी कम उपस्थिति की वजह से इन चुनावों में मतदान, संख्याओं के खेल की तरह आसानी से खेला जा सकता है।
सीनेट के 91 सदस्यों की भारी-भरकम संख्या की वजह से निर्णय लेने की प्रक्रिया अत्यंत उलझनभरी तथा समय सापेक्ष होती है। शोधपत्रों के अनुसार उच्च शिक्षा प्रशासन में निर्णय लेने वाली संस्थाओं में सदस्य संख्या अधिक होने पर निर्णय की गुणवत्ता से समझौता हो सकता है। भीड़ की मानसिकता, छोटे-छोटे गुटों में बंटना तथा हितों के लिए आपस में मनमुटाव इन बड़ी संस्थाओं के सुविचार में बाधा डालते हैं। आज के समय में जब चारों तरफ पारदर्शिता तथा सुधारों का माहौल है वहां पंजाब यूनिवर्सिटी सीनेट की यह उदासीनता काफी अद्भुत मालूम पड़ती है। यह भी देखना आवश्यक है कि संस्थाएं लोक हित में सुचारु रूप से कार्य कर सकें, ना कि असंगत नियमों का बोझा उठाए उत्कृष्टता को प्राप्त ना कर पाएं।