देश में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के देशों से निगरानी बढ़ाने का आग्रह किया है। संगठन ने दुनिया के देशों को चेताया है कि कोरोना का उप-स्वरूप जे एन-1 तेजी से उभर रहा है और इसमें उतनी ही तेजी से बदलाव हो रहे हैं। इसलिए सभी देश इस बाबत जानकारी लगातार आपस में साझा करते रहें। देश में अब तक पिछली कई लहरों में मिलाकर कोरोना से 5,33,332 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। तकरीब साढ़े चार करोड़ से भी ज्यादा लोग कोरोना से प्रभावित हुए हैं। सबसे ज्यादा चिंता तो कोरोना के सब वैरिएंट जे एन-1 की है जिसकी चपेट में आने वालों की तादाद तेजी से बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय की मानें तो देश में साल के अंत में उत्तर भारत की तुलना में कोरोना के मरीजों की तादाद में दक्षिण भारत में ज्यादा बढ़ोतरी सामने आ रही है।
कोरोना का यह नया वैरियंट कई देशों में संक्रमण वृद्धि का कारण बन रहा है। आशंका है कि यह नया वैरियंट पिछले वैरियंट के मुकाबले ज्यादा संक्रामक हो सकता है। सबसे खराब हालत तो रूस की है, उसके बाद नम्बर सिंगापुर और फिर इटली का है।
वह बात दीगर है कि दिल्ली स्थित आयुर्विज्ञान संस्थान के डाक्टरों का दावा है कि इससे लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। कोरोना के ऐसे वैरिएंट और लहरें तो आगे भी आयेंगी। लेकिन धीरे-धीरे रुग्णता और इससे होने वाली मृत्यु दर में कमी आती जायेगी। इसलिए सतर्क रहने की जरूरत है। यह भी सत्य है कि डेल्टा जैसा खतरनाक वायरस नहीं आयेगा। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि कोरोना के वायरस मानव शरीर में मजबूती से जीवित रहने या अपना स्वरूप बदलने की कोशिश जरूर करेंगे। ऐसे हालात में जिन लोगों की जीवनशैली बेहतर होगी, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होगी।
नया शोध तो यह भी दावा कर रहा है कि देश में लगभग 93 फीसदी लोगों में कोरोना से लड़ने वाली एंटीबाडी मिली है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि यह नया वायरस ओमिक्रान वायरस से मिलता-जुलता है। हकीकत यह है कि कोरोना का नया वैरियंट जेएन-1 ओमिक्रान सबवैरियंट बीए 2.86 का वंशज है। यह वैरियंट सितम्बर महीने में अमेरिका में सामने आया था। दिसम्बर महीने के आखिरी हफ्ते में तकरीबन 50 फीसदी से अधिक मरीज वहां के अस्पतालों में भर्ती हुए हैं। रायटर्स की मानें तो 15 दिसम्बर को चीन में इस वैरियंट के सात मामले सामने आये थे। सीडीसी के अनुसार भले ही वैरियंट के नाम अलग-अलग दिखते हों, लेकिन स्पाइक प्रोटीन में जेएन-1 और बीए 2.86 के बीच केवल एक ही बदलाव है। इसीलिए केन्द्र सरकार ने समय रहते सतर्कता बरतने और राज्य सरकारों को तत्काल नमूने इकट्ठे करने के निर्देश दे दिए हैं।
देश में सबसे पहले कोरोना ने केरल में ही अपने पैर पसारे थे। वह मौसम भी सर्दियों का ही था। इसलिए मौसमी बदलावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उस हालत में जबकि इन दिनों मौसमी अनियमितताएं काफी असर दिखा रही हैं। ऐसे माहौल में यह मौसमी बदलाव बीमारियों की जड़ हैं जो इनकी बढ़ोतरी का अहम कारण है। फिर दक्षिणी राज्यों खासकर तमिलनाडु में पिछले दिनों हुई भीषण बारिश ने अपना रौद्र रूप दिखाया है, जिसके चलते राहत एवं बचाव के लिए सेना भी बुलानी पड़ी थी। ऐसी स्थिति में कोरोना के साथ-साथ महामारी का अंदेशा और बढ़ जाता है। हृदय रोगियों को ऐसे हालात से बचाव बेहद जरूरी है।
दिल्ली स्थित एम्स का एक अध्ययन यह साफ कर चुका है कि जो लोग कोविड-19 के ज्यादा गंभीर शिकार रहे हैं, उनको अधिक श्रम नहीं करना चाहिए और इस बारे में दी गयी चेतावनियों का संजीदगी से पालन करना चाहिए। वह बात दीगर है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान से अब हमने स्वास्थ्य ढांचे में काफी सुधार किया है। सुविधाओं का भी विस्तार हुआ है लेकिन इस सच्चाई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि चिकित्सा सुविधाओं से वंचित दुनिया की एक बड़ी आबादी हमारे देश की है।
नेशनल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कोविड टास्क फोर्स के सह-अध्यक्ष राजीव जयदेवन के अनुसार सात महीने के अंतराल के बाद भारत में कोविड के मामले बढ़ रहे हैं। जेएन-1 तेजी से फैलने वाला वैरियंट है और यह बाकी वैरियंट्स के संस्करणों से काफी अलग है। कहने को तो इसके लक्षणों में बुखार, नाक बहना, गले में खराश, सिरदर्द और पेट से जुड़ी परेशानी अहम हैं। इसके अधिकांश रोगियों में हल्की सांस सम्बंधी दिक्कतों का अनुभव होता है, जो आमतौर पर चार से पांच दिनों में ठीक हो जाता है।
डब्ल्यूएचओ ने इसे वैरियंट आफ इंटरेस्ट नाम दिया है और कहा है कि इससे वैश्विक स्वास्थ्य के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पाल की मानें तो इस वैरियंट से कोरोना के टीके लगवा चुके लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है।
भले डब्ल्यूएचओ इसे वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिहाज से कम घातक करार दे, लेकिन उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दियों की शुरुआत के साथ ही इसकी वजह से सांस सम्बंधी समस्याओं में इजाफा होने से खतरा बढ़ रहा है। मौजूदा हालात इस मामले में समय रहते उपचार की जरूरत पर बल देते हैं। सबसे बड़ी बात दूसरे देशों से आने वाले लोगों की निगरानी बेहद जरूरी है। ध्यान रहे कि कोरोना के खात्मे के बाद देश में अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौट आने, उसमें तेजी आने, समूची दुनिया में आवागमन में तेजी आने और यात्राओं के दौर में दिनोदिन बढ़ोतरी से बीमारियों के देश में आने की आशंकाओं को नकारा नहीं जा सकता। साथ ही इस खतरे से बचाव की सतर्कता सबसे बड़ी शर्त है। यह यात्रा में सावधानी और संक्रमण से बचाव के उपायों के बारे में समुचित प्रचार व प्रसार से ही संभव है।
लेखक पर्यावरणविद हैं।