विनय पाठक
जाड़ा, गरमी और बरसात- ये मौसम सेलिब्रिटी की तरह हैं, सभी इन्हें जानते-पहचानते हैं। अधिक जानकार लोग छह ऋतुओं के बारे में जानते हैं- पावस, शरद, हेमंत, शिशिर, वसंत और ग्रीष्म। जाड़ा का एक नाम शरद भी है। उसी प्रकार गरमी को ग्रीष्म के नाम से भी जाना जाता है। बरसात भी क्यों पीछे रहेगा भला? उसने भी एक नाम पावस रख रखा है। हेमंत और शिशिर बेचारों को बहुत कम लोग जानते हैं। वे राजनीतिक गठबंधन के छुटभैये दल की तरह होते हैं। वसंत तो ऋतुओं का राजा बनकर इठलाता रहता है। कलियों के घूँघट खोलने से लेकर फूलों के खिलने और रंग व सुगंध बिखरने की बातें यहां वहां सारे जहां में होती हैं।
आनद बक्शी, प्यारेलाल शर्मा और लक्ष्मीकान्त ने मिलजुल कर पांचवें मौसम की खोज की क्योंकि उनका वास्ता चार मौसमों से ही पड़ा था- पतझड़, सावन बसंत और बहार, यानी एक बरस के मौसम चार। पांचवां मौसम प्यार का उन्होंने आविष्कार कर लिया क्योंकि यह कहानी कविता के साथ फिल्मों के लिए बहुत ही उपयुक्त है। प्यार एक ऐसा मौसम है जो प्रेमियों के लिए तो उपयुक्त है ही, न जाने कितने लोगों के लिए अलग-अलग तरीकों से रोटी कपड़ा और मकान के साथ-साथ अन्य सुविधाओं का जुगाड़ करता है। पर इस बार वसंत के साथ ग्रीष्म पर भी एक मौसम भारी पड़ रहा है और वह है गारंटी का मौसम।
अभी जिधर देखो- गारंटी की खुशबू बिखरी पड़ी है। पिछड़ों के लिए गारंटी है कि उन्हें हमेशा पिछड़ा समझा जाएगा। दलितों के लिए गारंटी है कि उन्हें दलित ही समझा जाएगा चाहे वे दलन क्यों न करने लगें। महिलाओं के लिए हजारों लाखों रुपये की गारंटी है तो बेरोजगारों के लिए रोजगार की गारंटी।
गारंटी दर्जनों के भाव से दी जा रही है मतदाताओं को। और सबसे बड़ी बात है कि चुनाव छह-सात सप्ताह तक चलने वाला है तो ऐसे में गारंटी की अनवरत बारिश होती रहेगी इस अवधि में। अपनी इस गारंटी के बदले सभी दलों की यही है तमन्ना कि मतदाता उन्हें सिंहासन पर आरूढ़ होने की गारंटी दे। पर ये जो पब्लिक है वो क्या जानती है, क्या समझती है और क्या चाहती है, इसका राज अपने दिल में ही छिपाए रहती है। वर्तमान चुनाव प्रणाली में अपने दिल के जज्बात वह मतपेटी में ही उड़ेलती है। और जब मतपेटी खुलती है तब कहीं जाकर पता चलता है कि किसकी गारंटी को उसने स्वीकार किया है। 4 जून को परिणाम आएगा तो पता चलेगा कि विश्व पर्यावरण दिवस यानी 5 जून किस दल के फेफड़ों के लिए खुशियों का दिन लेकर आएगा।