पंकज चतुर्वेदी
सावन बीत गया, भादों भी आधा निकल गया, दिल्ली और उसके आसपास यमुना नदी के जल-ग्रहण क्षेत्र में पर्याप्त पानी बरसा, लेकिन न नदी में पानी आया और न ही पानी से जहर की मुक्ति। जब नदी में पानी लबालब होना चाहिए था, तब कम से कम दो बार इसमें अमोनिया की मात्रा अधिक हो गई। हजारों करोड़ के खर्च, ढेर सारे वादों और योजनाओं के बावजूद ऐसा लगता नहीं कि दिल्ली में यमुना को 2026 तक निर्मल बनाने का लक्ष्य पूरा होगा। समझना होगा कि यमुना पर लाख एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) लगाकर नालों के पानी को शुद्ध कर लें, लेकिन जब तक यमुना में नदी का पानी अविरल नहीं आएगा, तब तक इसके हालात सुधरने से रहे।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई में यमुना में ऑक्सीजन की मात्रा शून्य पाई गई है, जो पहले कभी नहीं हुआ। यमुना की सफाई के लिए केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को 8500 करोड़ रुपये दिए, लेकिन परिणाम शून्य ही है। दरअसल, दिल्ली में यमुना, गंगा और भूजल से प्रतिदिन 1900 क्यूसेक पानी का उपयोग किया जाता है, जिसमें से 60 प्रतिशत यानी करीब 1100 क्यूसेक सीवेज का पानी एकत्र होता है। यदि इस पानी को शोधित करके यमुना में डाला जाए, तो यमुना निर्मल रहेगी और दिल्ली में पेयजल की किल्लत भी दूर हो जाएगी। लेकिन हमेशा यह नजरअंदाज किया जाता है कि नदी में बाकी जल कहां से आएगा।
ईमानदारी की बात तो यह है कि यमुनोत्री से निकलने वाली जलधारा, मैदान में आकर गंगा की सबसे बड़ी सखी-सहेली कहलाती है। दिल्ली तक जो भी जल आता है, वह अधिकांशतः हरियाणा की छोटी नदियों और कारखानों के गंदे उत्सर्जन का हिस्सा होता है। बरसात के मौसम के पचहत्तर प्रतिशत दिन बीत जाने के बाद भी दिल्ली में एक भी बार बाढ़ नहीं आई। बाढ़ से नदी किनारे अवैध निर्माणों को त्रासदी हो सकती है, लेकिन महानगर में नदी की गुणवत्ता सुधारने का प्राकृतिक तरीका यही होगा।
बाढ़ नदी में जीवन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पहाड़ों से बहकर आया पानी उपयोगी लवण लेकर आता है। इसके अलावा, जलमार्ग में कूड़े और मलबे के कारण यदि धारा अवरुद्ध होती है, तो बाढ़ उसे स्वचालित रूप से साफ कर देती है। इस प्रकार, नदी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है, जो मछलियों और अन्य जीवों के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती है। इसलिए, दिल्ली में यमुना की शुद्धि के लिए मशीनी उपायों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि यहां प्राकृतिक रूप से बाढ़ आए।
आखिर में, दिल्ली में बाढ़ क्यों नहीं आई? यदि इस कारण को खोजा जाए, तो समझ में आएगा कि मल-जल को साफ करने के उपाय क्यों असफल रहते हैं। यमुना की आत्मा सभी नदियों की तरह उसके फ्लड प्लेन या कछार में है। जब नदी अपने यौवन पर होती है, तो जमीन पर जहां तक उसका विस्तार होता है, वही उसका कछार या फ्लड प्लेन होता है।
अब दिल्ली में नदी को फैलने की जगह ही नहीं दी गई है। हजारों निजी और सरकारी निर्माण, नदी के बीचों-बीच सुखा कर खड़े किए गए खंभे, और अन्य अवरोध यमुना को दिल्ली से बहने ही नहीं देते। जिन लोगों ने नदी के कछार पर कब्जा कर लिया है या करना चाहते हैं, वे कभी नहीं चाहते कि दिल्ली में यमुना का जल स्तर बढ़े। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि नदी के फ्लड प्लेन को पूरी तरह से खाली रखा जाए। बाढ़ से नदी का जलीय जीवन भी बेहतर होता है। दिल्ली तक यमुना के अवरोधक केवल दिल्ली में ही नहीं हैं, बल्कि हरियाणा और उसके ऊपर पहाड़ों तक भी हैं। अवैध बालू खनन के लिए कई स्थानों पर नदी के रास्ते रोके गए हैं या आपराधिक तरीके से मार्ग बदल दिए गए हैं। ऐसे लोगों की मंशा की पूर्ति के लिए पहाड़ पर नदी को बांधने के सरकारी प्रयास भी सफल नहीं हो रहे हैं।
देहरादून के कालसी विकासखंड में यमुना नदी पर 204 मीटर ऊंची लखवार व्यासी बांध परियोजना 1972 में शुरू हुई थी, लेकिन इसके बाद काम बंद हो गया। वर्ष 2013 में यहां काम फिर शुरू हुआ और अब यमुना पहाड़ से नीचे उतरने से पहले घेर ली जाती है। स्पष्ट है कि जब पहाड़ से ही यमुना का प्रवाह नहीं है, तो हथिनी कुंड से वजीराबाद तक यह एक बरसाती नदी ही रह जाती है। समझना होगा कि लगभग 52 साल पहले तैयार की गई परियोजना की कल्पना आज हिमालय के भारी पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन के दौर में कितनी प्रासंगिक है।
पहाड़ों पर बन रहे बड़े बांध और कई सुरंगों के माध्यम से पानी के मार्ग को बदलने से जल-प्रवाह प्रभावित हो रहा है, और निर्माण का मलबा बहकर नीचे आ रहा है, जो नदी को उथला बना रहा है। दिसंबर, 2021 के आखिरी हफ्ते में, जब व्यासी जलविद्युत परियोजना की एक टर्बाइन को प्रयोग के तौर पर खोला गया, तो यमुना नदी की धारा सिकुड़ गई थी। जब तक हरियाणा की सीमा तक यमुनोत्री से निकलने वाली नदी की धारा अविरल नहीं आएगी, तब तक दिल्ली में बरसात के तीन महीनों में कम से कम 25 दिन बाढ़ के हालात नहीं रहेंगे। बिना ऐसा हुए, दुनिया की कोई भी तकनीक दिल्ली में यमुना को साफ नहीं कर सकती। रिवर फ्रंट बनाने की योजनाएं वास्तव में नदी की बेशकीमती जमीन के व्यावसायिक इस्तेमाल की लालसा से प्रेरित हैं, जिससे नदी का कछार नष्ट होगा और यमुना नाले से बदतर हो जाएगी।