अमिताभ स.
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस नज़्मी वजीरी बीते हफ्ते रिटायर हो गए हैं, लेकिन पिछले पांच सालों में उन्होंने दिल्ली की आबोहवा को संवारने की, सिलसिलेवार हरियाली बिखेरने की जो अनमोल कोशिशें कीं, वह दिल्ली सालों-साल नहीं भूलेगी। हरियाली भरे निराले सिलसिले की शुरुआत 2018 से हुई। पूर्व जस्टिस नज़्मी वजीरी एक आपराधिक मामले की सुनवाई कर रहे थे, तब उनके सामने एक व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर को रद्द करने की याचिका आई। याचिकाकर्ता ने राहत की मांग की थी। उस पर गैर-इरादतन उत्पीड़न और दहेज मांगने के आरोप का मामला दर्ज था। हालांकि, मामला दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया, लेकिन अदालत ने याचिकाकर्ता समेत दोनों पक्षों को संशोधन करने का अवसर देना उचित समझा। नतीजतन दोनों पक्षों को दो हफ्ते के लिए दिल्ली के दक्षिणी रिज के वन क्षेत्र के रखरखाव में वन विभाग की मदद करने और इस दौरान 300 पेड़ लगाने के निर्देश जारी किए। जस्टिस वजीरी के ऐसे फैसलों के तहत अकेले 2018 में करीब 16,000 पेड़-पौधे लगाए गए।
बड़ी बात है कि साल 2018 से अक्तूबर, 2021 के बीच कुल 168 केसों की सजा के तौर पर दिल्ली में 1,10,301 पेड़ लगवाने के ऑर्डर देने वाले वह दिल्ली हाईकोर्ट के अकेले जज रहे। इसके बाद के करीब पौने दो सालों के आंकड़े उपलब्ध तो नहीं हैं, लेकिन मोटा अंदाज़ा है कि अब तक इनके आदेशों से दिल्ली को 3 लाख 70 हज़ार पेड़ मिले हैं। सबसे ज़्यादा जनवरी, 2020 में 2 केसों के तहत 25,050 पेड़ लगवाए गए। उनके इन्हीं आदेशों के चलते दिल्ली के दो आरक्षित वन क्षेत्र सेंट्रल रिज और दक्षिणी रिज को क्रमश: ‘इंसाफ बाग’ और ‘माफी बाग’ में बदल दिया गया है। उल्लेखनीय है कि करोल बाग के नजदीक सेंट्रल रिज 864 हेक्टेयर में फैला है, जिसमें ‘इंसाफ़ बाग’ है। इसके 423 हेक्टेयर का प्रबंधन वन विभाग करता है। उधर दिल्ली रिज का सबसे बड़ा खंड दक्षिणी रिज 6,200 हेक्टेयर में फैला है, जहां ‘माफ़ी बाग’ बना है।
ज्यादातर घरेलू उत्पीड़न, दहेज जैसे मामलों से संबंधित एफआईआर को रद्द करने या उनके आर्थिक दंड को बदल कर पेड़ लगाने के ऑर्डर हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस नज़्मी वजीरी करते रहे हैं। निर्देशों का पालन नहीं करवाने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में दो सार्वजनिक अधिकारियों को जेल की सजा तक सुनाई थी। पेड़ लगाने, उनके रखरखाव और उनकी सुरक्षा में कोताही बरतने के लिए कोर्ट के निर्देशों का पालन न करने के लिए उन्हें अवमानना का दोषी ठहराया गया। ऐसे आदेशों पर करीब से नज़र डालने से दिल्ली में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जज साहब की अटूट प्रतिबद्धता का पता चलता है।
बीते हफ्ते अपने फ़ेयरवेल संबोधन में पूर्व जस्टिस वजीरी ने ज़ाहिर किया, ‘सजा पाने वालों से चालान और जुर्माने के तौर पर पैसा वसूल कर सरकारी फंडों में रख देने से कहीं बेहतर है कि लोगों के समय और पैसे दिल्ली को हरा-भरा करने में खर्च किया जाए।’ अपने इन आदेशों का पालन करवाने के लिए उन्होंने दिल्ली नगर निगम और दिल्ली विकास प्राधिकरण का भी सहयोग लिया। पेड़ कौन से लगाने चाहिए, इस बाबत उन्होंने बाक़ायदा दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एनवायरमेंटल मैनेजमेंट ऑफ डिग्रेडेड इकोसिस्टम के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. सीआर बाबू की सलाह और मार्गदर्शन को अपने अभियान से जोड़ा। गौरतलब है कि डॉ. बाबू ने 35 से अधिक सालों तक दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के संकाय सदस्य के रूप में कार्य किया है। इस दौरान, कम से कम सौ मामलों के आदेशों में पेड़ की क़िस्मों तक का बाकायदा उल्लेख भी किया। इनकी बदौलत ही आज माफ़ी बाग में 28 हजार और इंसाफ़ बाग में 66 हजार से ज़्यादा आम, जामुन वगैरह के फल वाले पेड़ खड़े लहलहा रहे हैं।
दोनों बागों में आदेशों पर लगे पेड़ों के साथ बोर्ड टंगे हैं, जिन पर आदेशों के क्रमांक और उसके तहत लगे पेड़ों की संख्या दर्ज है। कोर्ट से आग्रह कर अलग ‘ग्रीन दिल्ली एकाउंट’ नाम का बैंक खाता खुलवा लिया गया है। पेड़ों और उनके रखरखाव के खर्च को उस खाते में जमा करवा लिया जाता है। और मॉनसून के दौरान पेड़-पौधे लगाए जाते हैं। कह सकते हैं कि 2018 से पूर्व जस्टिस नज़्मी वजीरी ने शहरीकरण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी बढ़ती पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए पेड़-पौधे लगाने का तरीका ईजाद किया। दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेशों के उल्लंघन के लिए एक कंपनी पर जुर्माना लगाते हुए, कोर्ट ने राशि का उपयोग सार्वजनिक हित के लिए करने और सेंट्रल रिज में 1,40,000 पेड़ लगाने का आदेश दिया। इन कदमों से दिल्ली के वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिली है।
पूर्व जस्टिस नज़्मी वजीरी इस लिहाज़ से बेमिसाल हैं क्योंकि किसी बुजुर्ग वकील ने अपने कार्यकाल में कभी किसी जज को ऐसी पहल करते नहीं देखा। उनके आदेश देशी और स्वदेशी प्रजातियों के पेड़ों की अहमियत को रेखांकित करते हैं। कह सकते हैं कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और उनके आदेशों ने एक मिसाल कायम की है कि यूं कानूनी सक्रियता दुनिया को बेहतर रहने लायक़ बना सकती है।