अरुण नैथानी
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने दो बार माउंट एवरेस्ट पर कदम रखने के साथ ही अनेक साहसिक- रोमांचकारी अभियानों का नेतृत्व किया। लेकिन इस बार वे एक अनूठे अभियान पर निकली हैं। वे पहले महिला ट्रांस हिमालय पर्वतारोहण अभियान-2022 का नेतृत्व कर रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर शुरू हुए इस विशिष्ट अभियान की शुरुआत अरुणाचल प्रदेश से हुई है। महत्वपूर्ण यह है कि मई में 68 साल की होने वाली बछेन्द्री पाल एक ऐसे दल का नेतृत्व कर रही हैं, जिसमें बारह सदस्य पचास से 68 साल के बीच हैं। यह दल पांच माह में भारत से नेपाल के बीच हिमालय क्षेत्र में तकरीबन पांच हजार किलोमीटर की यात्रा तय करेगा। उनके रास्ते में बेहद दुर्गम पहाड़ी दर्रे चुनौती पेश करेंगे। अभियान का मकसद जहां महिला सशक्तीकरण है,वहीं फिट इंडिया का जीवंत संदेश भी है।
दरअसल, इस अभियान के बारे में बछेंद्री पाल ने तीन साल पहले सोचा था, लेकिन कोरोना संकट के चलते इसे इस साल शुरू करना पड़ा। वे बताती हैं कि टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन में पांच साल का अतिरिक्त कार्यकाल मिलने के बाद जब वह सेवानिवृत्ति की तैयारी में थीं तो उन्हें अहसास हुआ कि वे अभी भी पूरी तरह फिट हैं और अभी भी ट्रैकिंग कर सकती हैं। साथ ही उम्रदराज महिलाओं को ऐसा करने के लिये प्रेरित कर सकती हैं। उन्होंने इस योजना के बाबत टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन को बताया। कालांतर इस अभिनव योजना को लेकर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी हरी झंडी मिली। बछेंद्री का मानना था कि आमतौर पर पचास पार महिलाएं स्वस्थ जीवन व्यवहार के प्रति उदासीन हो जाती हैं। इस अभियान में पचास पार की महिलाओं को शामिल करके बछेंद्री ने संदेश देना चाहा कि शरीर को दुरुस्त रखने के लिये उम्र व लिंग बाधक नहीं बनते। साथ ही संदेश दिया कि उम्र के ढलाव के बावजूद महिलाओं को सशक्त बनाने, नेतृत्व देने, निर्णायक भूमिका निभाने व चुस्त-दुरुस्त रखने का कार्य किया जा सकता है। सही मायनों में यह व्यक्ति, समाज, देश के लिये भी हितकारी है।
इस जटिलता व जोखिम भरे ट्रांस हिमालय अभियान में दुर्गम भौगोलिक इलाकों व निरंतर परिवर्तनकारी मौसम के बीच महिला पर्वतारोहियों को सफर तय करना है। बछेंद्री पाल अभियान की सफलता को लेकर आश्वस्त हैं क्योंकि टीम में शामिल अधिकांश महिलाएं चर्चित पर्वतारोही रह चुकी हैं, जिसके जरिये दुनिया को यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि उम्र के इस पड़ाव में भावनात्मक, मानसिक व शारीरिक चुनौतियों के बीच बड़े अभियानों को अंजाम दिया जा सकता है। जाहिर बात कि इस उम्र की महिलाओं को अपने बच्चों व नाती-पोतों के बिना दुर्गम इलाकों में पांच माह का समय गुजारना आसान काम नहीं है। इतने समय घर से बाहर टेंटों में रहना, अस्थायी शिविरों में खाना खाना, स्लिपिंग बैग में सोना जीवटता का ही परिचायक है और आम महिलाओं को सशक्त बनने की प्रेरणा देगा।
यह अभियान इस मायने में भी खास है कि यह देश के हिमालयी राज्यों के अतिरिक्त नेपाल को भी जोड़ता है। अरुणाचल प्रदेश में म्यांमार की सीमा से शुरू होने वाला यह अभियान असम, बंगाल, सिक्किम, हिमाचल, उत्तराखंड, लद्दाख होते हुए कारगिल तक जायेगा। साथ ही इस अभियान के अंतर्गत करीब डेढ़ हजार किलोमीटर की यात्रा नेपाल में भी पूरी की जायेगी।
बछेंद्री पाल मानती हैं कि पचास साल से अधिक उम्र की महिलाओं का तेज धूप में कोलतार की सड़क पर रोजाना बीस से पच्चीस किलोमीटर का पैदल सफर करना कष्टप्रद है। सही मायनों में यह एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने से अधिक कठिन है। यानी हर रोज नया एवरेस्ट चढ़ने जैसा है। लेकिन रास्ते में आम लोगों द्वारा दिया जाने वाला सम्मान व संबल अभियान के सदस्यों की थकान छूमंतर कर देता है। वे भी फिट इंडिया अभियान के सहभागी बन जाते हैं। सेना व सुरक्षा बलों का संरक्षण, सहयोग व सुरक्षा लगातार अभियान दल के सदस्यों को मिल रही है। ‘फिट-फिफ्टी’ टीम की यह रवानगी लोगों में नया जोश भर रही है। लोग उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब यह अभियान दल कारगिल में टाइगर हिल की 16,608 फुट की चोटी पर अपनी यात्रा समाप्त करेगा।
निस्संदेह, देश की महिलाओं को फिट रहने का संदेश देने वाला यह मिशन उनकी इच्छाशक्ति व सामर्थ्य की असली तस्वीर दिखाने वाला भी है। यह भी उस उम्र में जब महिलाओं के जीवन में ढलान मान लिया जाता है। बहरहाल, दो बार एवरेस्ट फतह कर चुकी बछेंद्री के कीर्तिमानों का सिलसिला जारी है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में नकुरी में 24 मई, 1954 में जन्मी बछेंद्रीपाल का जीवन कष्टों की सेज रहा है। वर्ष 1984 में एवरेस्ट फतह करने पर शेष देश ने उन्हें गंभीरता से लिया। खेतिहर परिवार में जन्मी बछेंद्री के जीवन में पहाड़ की पहाड़-सी जिंदगी ने फौलादी इरादों को जन्म दिया। शिक्षा स्नातक करने के बाद जब उन्हें सम्मानजनक रोजगार नहीं मिला तो उन्होंने नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग के कोर्स के लिये आवेदन किया। फिर उन्होंने उत्तराखंड की सबसे ऊंची चोटियों पर फतह की और परिवार व रिश्तेदारों के विरोध के बावजूद पर्वतारोहण को पेशा बनाया। बारह साल की उम्र में अपनी सहपाठियों के साथ चार सौ मीटर की चढ़ाई करने वाली बछेंद्री ने कालांतर ‘सागरमाथा’ को चूमा। वहीं कालांतर 1994 में गंगा नदी में हरिद्वार से कोलकाता तक के ढाई हजार किमी लंबे नौका अभियान समेत कई साहसिक अभियानों का भी नेतृत्व किया।