आलोक पुराणिक
मसला कुछ यूं सा है कि एक कंपनी का एक इम्प्लाई छोड़कर चला जाये, कुछ महीनों बाद वह कंपनी उसी इम्प्लाई को बुलाकर दोबारा रख ले और फुल इज्जत से रख ले, तो पॉलिटिक्स में उस इम्प्लाई को नीतीश कुमार कह सकते हैं। फिर उस इम्प्लाई की तरफ से कहा जाये कि मुझे तो आपकी कॉम्पेटिटर कंपनी चेयरमैन बना रही थी। अब नीतीश कुमार के सहयोगी केसी त्यागी ने बताया कि इंडिया गठबंधन ने नीतीश कुमार को प्राइम मिनिस्टर बनाने का आफर दिया था।
नीतीश कुमार की अब पॉलिटिक्स में रेपुटेशन कुछ उस तरह के कंपनी इम्प्लाई जैसी है, जो पांच सौ रुपये के इन्क्रीमेंट के लिए कंपनी को छोड़ देता है, फिर छह महीने बाद वापस आने के लिए तैयार हो जाता है। और फिर वापस जाने को तैयार हो जाता है। अब जैसे महाराष्ट्र में चाइनीज टाइप की पॉलिटिक्स हो रही है। दो शिवसेनाओं में असली वाली कौन-सी, चाईनीज वाली कौन-सी, यह सवाल खड़ा हो गया। जिसे कानूनन असली वाली शिवसेना करार दिया गया था, उसके रिजल्ट बहुत अच्छे न आये। नेशनल कांग्रेस पार्टी किसकी असली वाली मानी जाये, चाचा शरद पवार की असली वाली है, या भतीजे अजित पवार की असली वाली है। यह सवाल पेचीदा है। खैर, रिजल्ट हर हाल में अच्छे ही आयें, इसके लिए तो नीतीश कुमार होना पड़ता है।
पॉलिटिक्स हो तो ऐसी नीतीश कुमार जैसी, हर हाल में, हर बवाल में वैल्यू और बढ़ जाये।
पॉलिटिक्स का हाल भी कुछ कुछ शेयर बाजार जैसा हो गया है, कितना ऊपर कितना नीचे चला जाये कुछ पता नहीं चलता। लग रहा था कि कइयों को कि 2024 में तो भाजपा गठबंधन बड़े आराम से 2019 से बेहतर परफॉर्मेंस कर लेगा। पर वैसा न हुआ। पॉलिटिक्स और शेयर बाजार दोनों में उम्मीदें पूरी न होतीं, कोई चाहे जितनी भी लगा ले। पॉलिटिक्स में शेयर बाजार की तरह की अनिश्चितता है। कल जो था, वह आज न होगा। यह तो कुछ गीता ज्ञान टाइप बात हो गयी। जी पॉलिटिक्स जो लगातार करता है वह ज्ञानी हो जाता है, इतने झटके लगते हैं पॉलिटिक्स में। गीता का ज्ञान शेयर बाजार में भी मिल जाता है, लाखों-करोड़ों की रकम चली जाती है, तो फिर यह ज्ञान रह जाता है कि क्या लाये थे तुम और क्या ले जाओगे। जो था, यहीं से लिया, जो था, यहीं पर दिया। पॉलिटिक्स और शेयर बाजार में झटका खाकर बंदा ज्ञानी हो जाता है। वैसे परम ज्ञानी उसे ही माना जाना चाहिए, जिसे ज्ञान के लिए किसी झटके की जरूरत न हो।