पुष्परंजन
मंगलवार को पाकिस्तान के प्रमुख अख़बार ‘डान’ ने अपने सम्पादकीय में प्रदूषण के चरम पर पहुंच जाने, और सरकार की लाचारी को उजागर किया है। अख़बार लिखता है, ‘लाहौर में हवा की गुणवत्ता अब पहले से भी बदतर हो गई है, रविवार को पहली बार वायुमंडल में प्रदूषण सूचकांक 1,000 से अधिक हो गया। स्मॉग के खतरे के कारण प्रांतीय सरकार ने ग्रेड 5 तक के प्राथमिक स्कूलों को बंद कर दिया है। प्रदूषित हवा, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों से कई गुना अधिक खतरनाक रसायन होते हैं, कई श्वसन रोगों के साथ-साथ स्ट्रोक, हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकती है। हालांकि, प्रांतीय सरकार ने प्रदूषण के सभी स्रोतों पर लगाम लगाने का प्रयास किया है, जिसमें रेस्तरां के बारबेक्यू से अत्यधिक धुआं छोड़ना भी शामिल है। लेकिन, इन उपायों के सही तरीके से पालन न होने से सारे प्रयास बेकार गए हैं। पंजाब के अधिकारियों ने एक अन्य कारक को भी दोषी ठहराया है : सीमा पार से प्रदूषण, जहां से पराली जलाने और आतिशबाजी का धुआं पाकिस्तान आ रहा है। मुख्यमंत्री मरियम नवाज़ अब दोनों पंजाबों द्वारा स्मॉग संकट से निपटने के लिए संयुक्त प्रयास की मांग कर रही हैं।’
मगर, डॉन के इस सम्पादकीय को सम्पूर्ण मत मानिये। अखबार यह बताने में असमर्थ है, कि पाकिस्तान वाले पंजाब में किसान जो पराली जला रहे हैं, वो वातावरण को कितना प्रदूषित कर रहा है। आप बस, दिवाली छोड़ दें, तो मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान में उतने ही इवेंटजीवी हैं, जितने कि भारतीय। आप कराची जाएं, बाकायदा पटाखा बाजार है वहां। पटाखों से भरे बाज़ार आपको पाकिस्तान के लगभग हर बड़े शहर में मिलेंगे। रावलपिंडी, क्वेटा, कहूटा, कराची, लाहौर समेत सिंध के कई सारे शहर, पटाखे निर्माण के केंद्र हैं, जहां हर साल पांच-दस लोगों की मौत की ख़बर आम बात है। वर्ष 2022 में, पाकिस्तान ने 5.46 मिलियन डॉलर के पटाखों का निर्यात किया था, जिससे वह दुनिया में पटाखों का 16वां सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। पाकिस्तान से पटाखों के निर्यात के मुख्य गंतव्य हैं : तुर्की, नाइजीरिया, और अफ़गानिस्तान। बैन लगाने के बावजूद, पाकिस्तान में न तो पटाखों का निर्माण रुका, न ही शादी-विवाह, क्रिकेट, शबे बारात, ईद जैसे उत्सवों पर पाकिस्तानी अवाम पटाखे छोड़ने से बाज़ आया।
यों, चीनी पटाखे पूरी दुनिया के बाज़ार में घुसे हुए हैं। लेकिन, जो देश पर्यावरण को लेकर सबसे सरोकारी दिखते हैं, वो किस क़दर पटाखे के निर्यात में लिप्त हैं, आंकड़े देखकर हैरानी होती है। पिछले साल पूरी दुनिया में पटाखों का कारोबार डेढ़ अरब डॉलर का था। यह हर साल लगभग पच्चीस से तीस फीसद की दर से बढ़ रहा है। चीन, जर्मनी, नीदरलैंड, पोलैंड और स्पेन पटाखों के शीर्ष निर्यातक देश बनकर उभरे हैं, जिनका सामूहिक रूप से आतिशबाजी निर्यात से कुल अंतर्राष्ट्रीय राजस्व में 95 प्रतिशत योगदान रहा है। तो क्या इन देशों की कोई जवाबदेही नहीं बनती है?
यह कितना बड़ा मज़ाक़ है, दिल्ली जैसी राजधानी जहां पीएम से लेकर सारा मंत्रालय, सुप्रीम कोर्ट और पटाखों पर प्रतिबन्ध को लागू कराने वाली सारी एजेंसियां मौजूद हैं, उनके रहते अराजक लोगों ने राष्ट्रीय राजधानी को गैस चेंबर में तब्दील कर दिया। किसी से कहिये, उसका पहला रिएक्शन होगा, ‘यह कोई नई बात नहीं है। हिन्दू यदि दिवाली में आतिशबाज़ी करते हैं, तो क्रिसमस-नववर्ष समारोहों को भी देखिये।’ आप दिल्ली जैसी वास्तुकला, खानपान वाला कोई दूसरा शहर दक्षिण एशिया में ढूंढ़ेंगे, तो उसका नाम है लाहौर। यहां पटाखे से लेकर पराली तक बैन है, लेकिन लाहौर की एक करोड़ 40 लाख आबादी बेदम है। एयर क्वालिटी इस क़दर ख़तरनाक़ हो चुकी है, कि पांचवीं तक के सारे जूनियर स्कूलों के क्लास फ़िज़ां सामान्य होने तक स्थगित कर दिए गए हैं।
पर्यावरण मंत्री मरियम औरंगजेब ने कहा कि अमृतसर और चंडीगढ़ से आने वाली पूर्वी हवाएं पिछले दो दिनों से लाहौर में प्रदूषण से संबंधित वायुमंडल में प्रदूषण सूचकांक को 1,000 से अधिक तक बढ़ा रही हैं। पाकिस्तानी पंजाब इस मुद्दे को नई दिल्ली के समक्ष उठाने के लिए सोमवार को विदेश मंत्रालय को पत्र भेज चुका है। ज़रूरत पड़ने पर मुख्यमंत्री मरियम नवाज़ पंजाब के सीएम से मिलेंगी। कुछ दिन पहले, मुख्यमंत्री मरियम नवाज़ ने दिवाली के एक समारोह में संकेत दिया था कि वह धुंध के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए भारतीय पंजाब के मुख्यमंत्री से संपर्क करेंगी।
पर्यावरण मंत्री मरियम औरंगजेब ने स्वीकार किया कि हवा की दिशा नहीं बदली जा सकती, और सीमा पार धुंध के मुद्दे को केवल बातचीत के जरिए ही सुलझाया जा सकता है। उन्होंने इसे पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रहने का मामला बताते हुए इसका राजनीतिकरण किये जाने के खिलाफ चेतावनी दी है। उन्होंने ईंट-भट्ठा मालिकों और ट्रांसपोर्टरों को उत्सर्जन को बदतर बनाने के विरुद्ध चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि सरकार निर्माण परियोजनाओं को अस्थायी रूप से बंद करने और लॉकडाउन लगाने सहित सख्त कदम उठा सकती है। ‘उल्लंघन करने वालों के खिलाफ मामले दर्ज किए जा सकते हैं, उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है।’
लेकिन, सवाल है कि मरियम नवाज़ की पर्यावरण डिप्लोमेसी से दोनों तरफ के किसान पराली जलाना बंद कर देंगे? मरियम नवाज़ से लेकर मरियम औरंगजेब तक किसानों को प्रदूषण फैलाने का कसूरवार नहीं मानतीं। ठीक उसी तरह के बयान, जैसे दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय पराली जलाने वाले किसानों के विरुद्ध कुछ कहने से कतराते हैं। पंजाब के सीएम भगवंत मान ने भी ऐसा कोई बयान नहीं दिया, जिसमें पराली जलाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का संकेत हो। फिर दोनों पंजाब के सीएम आपस में बात करके निदान क्या निकालेंगे? क्या इस पर्यावरण डिप्लोमेसी में किसान प्रतिनिधियों की शिरकत होगी? और क्या उत्सवों-खुशियों में पटाखे फोड़ कर प्रदूषण फैलाने वाली पीढ़ी इससे बाज़ आएगी? केंद्र-राज्य सरकारें, अदालतें, क़ानून का पालन कराने वाली एजेंसियां क्या सचमुच पर्यावरण-अपराधियों को रोकने में सक्षम हैं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ताज़ा बयान दिया है कि इस बार जिस तरह हवा दूषित हुई है, दिल्ली-लाहौर के लोगों की आयु साढ़े सात साल कम हो चुकी है। यूनिसेफ के अनुसार, ‘दक्षिण एशिया में लगभग 600 मिलियन बच्चे उच्च स्तर के वायु प्रदूषण के संपर्क में हैं।’ पाकिस्तान प्रतिवर्ष लगभग 7.2 मिलियन मीट्रिक टन कोयले का उपयोग बिजली उत्पादन में करता है, जो देश की कुल कोयला खपत का 47.3 प्रतिशत है। ईंट-भट्ठा उद्योग में कोयले की खपत का 21.5 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि सीमेंट उद्योग और अन्य क्षेत्रों में 31.2 प्रतिशत हिस्सा है। बची-खुची एयर क्वालिटी को खटारा वाहनों ने बर्बाद कर दिया। इधर भी अराजक स्थिति, और उधर भी वैसा ही हाल, तो प्रदूषण कम कैसे करेंगे?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।