अनूप भटनागर
न्यायपालिका ने ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को भले ही गरिमा के साथ जीने सहित अनेक नागरिक अधिकार प्रदान कर दिये हैं लेकिन इस समुदाय का संघर्ष अभी भी जारी है। इसका ताजा उदाहरण सशस्त्र बल और एनसीसी में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को प्रवेश देने का कानून में कोई प्रावधान नहीं है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुये केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में केन्द्र सरकार को एनसीसी कानून की धारा छह में संशोधन करने का आदेश दिया है। यह धारा ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को एनसीसी में प्रवेश से वंचित करती है। इससे पहले, इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि पूरी दुनिया आगे बढ़ रही है और सरकार 19वीं सदी में ही नहीं रह सकती। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे ताकि समाज के सभी वर्गों को समान अवसर मिल सके।
न्यायालय की इस टिप्पणी ने ही स्पष्ट कर दिया था कि इस दिशा में कोई भी कदम उठाने के लिये सबसे पहले भारतीय सशस्त्र बलों में ट्रांसजेंडरों के प्रवेश के लिये कानूनी प्रावधान करने की आवश्यकता होगी। केरल की एक ट्रांसजेंडर छात्रा एनसीसी में महिला वर्ग में प्रवेश चाहती थी लेकिन कानूनी प्रावधान इसमें बाधा बन रहा था। हनीफा नाम की इस छात्रा ने एनसीसी कानून की धारा छह की वैधता को चुनौती दी थी। इसके जवाब में केन्द्र सरकार की दलील थी कि सशस्त्र बल और एनसीसी में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को प्रवेश देने का कानून में कोई प्रावधान नहीं है।
एक ओर केन्द्र सरकार अपने अर्द्धसैनिक बलों में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों के लिये रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के प्रयास कर रही है तो दूसरी ओर कतिपय कानून ही सशस्त्र बल और एनसीसी आदि में इस समुदाय के सदस्यों के प्रवेश में बाधक बन रहे हैं। गृह मंत्रालय ने अर्द्धसैनिक बलों में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों की सेवायें लेने की दिशा में कदम उठाया है और सीमा सुरक्षा बल ने अपने बेड़े में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को शामिल करने मे दिलचस्पी दिखाई थी। सरकार को इस प्रयास को गति प्रदान करनी चाहिए ताकि एनसीसी में ट्रांसजेंडर व्यक्ति को प्रवेश लेने में किसी प्रकार की असुविधा का सामना नहीं करना पड़े।
कितना अच्छा हो कि उच्चतम न्यायालय के अप्रैल, 2014 के फैसले के मद्देनजर कुछ अन्य कानूनों में आवश्यक संशोधन किये जायें ताकि इस समुदाय के सदस्यों को भी सशस्त्र बल सेवाओं में शामिल होने का अवसर मिल सके। न्यायालय ने फैसले में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को तीसरा लिंग घोषित करने के साथ ही ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी, दूसरे नागरिकों को मिले सभी अधिकारों और सुविधाओं को प्राप्त करने के हकदार हैं।
लेकिन एनसीसी में प्रवेश के मामले में सरकार की ओर से उच्च न्यायालय में दलील दी गयी कि तीसरे लिंग के लिये एक नई डिवीजन का गठन करना केन्द्र सरकार का विशेषाधिकार है। तीसरे लिंग के लिये एक नई डिवीजन गठित करने से पहले केन्द्र सरकार और प्राधिकारियों को संरचनात्मक सुविधाओं और मापदंड की समीक्षा के लिये व्यापक कवायद करनी होगी।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति को एक कैडेट के रूप में पंजीकृत कराने की अनुमति उक्त व्यक्ति को सर्विस सेलेक्शन बोर्ड में शामिल होने का अवसर प्रदान करेगा, जिसमें इस समय भारतीय सशस्त्र बलों में ट्रांसजेंडर के प्रवेश के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
उच्च न्यायालय की एकल पीठ केन्द्र की इन दलीलों से सहमत नहीं थी और उसका मानना था कि तीसरे लिंग के सदस्यों को सशस्त्र बलों या एनसीसी में पंजीकरण से वंचित नहीं किया जा सकता। यही नहीं, एनसीसी कानून 1948 को देश में लागू ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के (अधिकारों का संरक्षण) कानून, 2019 के अमल को अलग नहीं रख सकता है। उच्च न्यायालय ने हालांकि केन्द्र को एनसीसी कानून की धारा छह में छह महीने के भीतर आवश्यक संशोधन करने का आदेश दिया है लेकिन यह शायद इतना आसान नहीं है। निश्चित ही सरकार न्यायालय की इस व्यवस्था के खिलाफ अपील दायर करेगी ताकि इस मुद्दे पर सुविचारित निर्णय मिल सके।
ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति सरकार की चिंताओं से कोई इनकार नहीं कर सकता। इसका संकेत तो अर्द्धसैनिक बलों में इस समुदाय के सदस्यों को रोजगार देने की कवायद से मिलता है। साथ ही और जेलों में बंद ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों की सही संख्या की जानकारी रखने के इरादे से राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा तैयार की जाने वाली कारागार आंकड़ों की रिपोर्ट में एक अलग लैंगिक श्रेणी जोड़ने के फैसले से भी उसकी गंभीरता का पता चलता है।
ऐसी स्थिति में अगर सरकार को लगता है कि ट्रांसजेंडर सदस्यों के लिये सैन्य बलों में संबंधित कानूनी प्रावधानों में संशोधन करके तीसरे लिंग के रूप में एक अलग वर्ग बनाने की आवश्यकता महसूस होती है तो उसे ऐसा करना चाहिए।