चुनावी ढोल-ताशे बजते ही सब कुछ सुनना बन्द हो जाता है। केवल एक ही शब्द कानों के कीड़े झाड़ता मिलता है और वह है जातिगत समीकरण। सुरक्षा, भ्रष्टाचार, कमीशन, महंगाई, बेरोजगारी आदि सारे मुद्दे नेपथ्य में चले जाते हैं। सिर्फ जातियों की बातें होती हैं। उन्हीं के ताने और उलाहने। पार्टियों का तो सिर्फ नाम है, झंडे हैं, चुनाव चिह्न हैं, चमचे हैं या फिर छोटे-बड़े नेताओं की फौज। दरअसल तो चुनाव जातियां लड़ती हैं। चुनावों का सारा गुणा-भाग और टिकटों के बंटवारे जातियों की धुरी पर जा टिकते हैं। पार्टियों के मुखिया भी बेचारे बेबस होकर इन जातियों के सामने घुटने टिकाकर बैठ जाते हैं। कई बार तो लगने लगता है कि चुनाव योग्य विधायकों का नहीं, जातियों के प्रमुखों का हो रहा है। कोई नयी शुरुआत या अलग शुरुआत करने को तैयार ही नहीं है।
पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों का बिगुल बजते ही टीवी पर बिना तर्क, विषय और मुद्दों के हो रही राजनीतिक बहस में जनमानस आनंद लेने में निमग्न हो चला है।
एक बार गालिब को वजीफा मिला। सारे धन से शराब खरीदकर ठेले पर लगवा कर घर आ रहे थे तो एक मित्र ने पूछा कि थोड़ा अनाज खरीद लेते तो गालिब का जवाब था कि रोटी देने का वादा ऊपर वाले का है, शराब का जुगाड़ तो मनुष्य को खुद करना पड़ता है। हम अपनी समस्याओं के समाधान के लिये हमेशा ही लीडरों का मुंह ताकने लगते हैं। पानी, सड़क, बिजली, स्ट्रीट लाइट, गली-मोहल्लों की सफाई आदि। लोकतंत्र भी कम खतरनाक नहीं है। आवाज़ उठाने वालों को जल्दी उठा लेता है। अधिकांश लोगों ने गांधारी की तरह आंखों पर पट्टी बांध ली है और आंख होते हुये भी उन्हें कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा। हर युग का राजनेता गड़े मुर्दे उखाड़ कर ही वोट लेता है। वर्तमान की बात करने वाला इन्हें अपना दुश्मन प्रतीत होता है। चतुर वही नेता है जो वर्तमान के विषयों को लोगों के मानस पटल पर अपना प्रभाव डालने ही नहीं देता। तुम मुझे सवाल दो, मैं तुम्हें जवाब दूंगा की तर्ज पर सारे नेता लोकलुभावन उत्तरों की झड़ी लगा देते हैं।
इंकलाब दौर की दास्तां तो देखिये
मंजिलें उन्हें मिलीं जो शरीके सफर न थे।
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एक बर की बात है अक अनपढ़ नत्थू हेल्थ मिनिस्टर बनग्या तो उसनैं अचानक एक हस्पताल का निरीक्षण करण की सोच्ची। उसनैं देख्या अक दो मरीजां कै गैस सिलेंडर लाग रह्या था पर तीसरे कै नहीं। नत्थू नैं अकड़ कै पूच्छया—ये दोन्नूं तो सीएनजी पै हैं, यो तीसरा क्यूं नीं? सुरजा डॉक्टर मंत्री ताहीं गुस्से मैं घूरता होया बोल्या—जी यो पेट्रोल तै चल रह्या है।